मुझे भी जब सोशल मीडिया पर गैंग रेप की धमकी मिली थी तो मैंने एफआईआर दर्ज करवाई थी। ये लोग इतना गिर चुके हैं कि इन्होंने मेरी बेटी तक के साथ गैंगरेप की धमकी दी है। हालांकि ऐसी ट्रोलिंग पुरुषों के बारे में भी होती है लेकिन पुरुषों के बारे में ज्यादा से ज्यादा ये लिखेंगे कि फलां दलाल है, भ्रष्ट है...और महिलाओं के बारे में तो वैश्या, रं...आदि-आदि। ये सब औरतों के खिलाफ एक वर्ग की मानसिकता दिखाता है।
मेरा कहना है कि मैं पत्रकारिता के जरिये और मेरे जैसी दूसरी महिलाएं अपने-अपने कामों के जरिये जिन मुद्दों को उठा रही हैं, उनपर हमसे बहस किजिए, हमारे चरित्र और शरीर को गाली क्यों देते हो? जब मैं बहस करती हूं, गाली नहीं देती तो तुम मुझे गाली क्यों देते हो। आप अंबेडकर, मुसलमानों को विशेष दर्जा दिए जाने और आरक्षण जैसे मुद्दों पर हमारे विचारों से सहमत नहीं हैं तो हमसे राजनीतिक तौर पर बहस करें, बहस से भांगे नहीं। हालांकि इन लोगों के गाली देने से मुझे अपने उद्देश्य से कतई हटना नहीं है, मुझे कोई रोक नहीं सकता है, हम ऐसे लोगों की वजह से चुप क्यों रहें क्योंकि ये लोग तो चाहते ही हैं कि हम औरतें राजनीतिक बहस से निकल जाएं। हमारा हौसला दम तोड़ दे लेकिन ऐसा नहीं होगा। आप अगर महिलाओं से स्वस्थ बहस करेंगे तो हो सकता है कि कुछ नया निकल कर आए। स्वस्थ बहस से हम जहां गलत हैं वहां अपने को सुधारेंगे लेकिन विचारों में असहमत होने पर भद्दी गालियां देना, बलात्कार की धमकी देना, विरोध जताने का कौन सा तरीका है ? हालांकि ऐसी गालियों और धमकियों से असहज लगता है। गुस्सा भी आता है लेकिन ये मुट्ठी भर लोगों की करतूत है। इनसे कहीं ज्यादा लोग हमें पसंद करते हैं, प्रेम करते हैं, उन्हें देखकर हमारा हौसला बना रहेगा।
(लेखिका टाइम्स ऑफ इंडिया की कंस्लटिंग एडिटर हैं।)
(आउटलुक की विशेष संवाददाता मनीषा भल्ला से बातचीत पर आधारित)