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बच्चों क्यों देखोगे झांकी हिंदुस्तान की?

न जाने बच्चों की कितनी पीढ़ियां 1952 में आई फिल्म जागृति के गाने 'आओ बच्चो, तुम्हें दिखाएं...’ की समधुर धुन सुनकर देश को जाना होगा और शायद भूगोल और इतिहास की किताबों की तुलना में इन गानों के जरिये ज्यादा आसानी से अपने राष्ट्र पर गर्व महसूस किया होगा। ट्रेन यात्रा बच्चों के लिए हमेशा रोमांचक रही है।
बच्चों क्यों देखोगे झांकी हिंदुस्तान की?

लेकिन सरकार ने अप्रैल 2016 से बच्चों की ट्रेन यात्रा के लिए किराया दोगुना कर उनके हिंदुस्तान की झांकी देखने के अरमानों पर पानी फेर दिया है। रेल मंत्रालय ने फरमान जारी किया है कि अप्रैल से बच्चों को दी जाने वाली रियायत खत्म कर दी जाएगी। बच्चे तभी रियायत पा सकते हैं जब उन्हें अनारक्षित सीट या बर्थ पर यात्रा करनी होगी।

मंत्रालय ने ऐसा कोई आंकड़ा पेश नहीं किया है कि बच्चों पर पूरा किराया नियम लागू करने से वह कितनी बचत कर लेगा। निश्चित रूप से यह इस बात पर निर्भर करेगा कि बच्चों के लिए कितने टिकट बर्थ या सीट के अनुरोध के साथ और कितने उसके बिना आरक्षित हुए। क्या यह बचत इतनी ज्यादा है कि रेलवे ने यह छूट खत्म करने का फैसला कर लिया? इसके अलावा जब रेलवे इतनी सारी अलग-अलग छूटें देता है तो फिर बचत के लिए बच्चों को मिलने वाली छूट पर ही गाज क्यों गिराई गई? अन्य सीट या बर्थ के लिए जब इतनी तरह की छूट दी ही जा रही है तो फिर रेलवे ऐसा क्यों सोचता है कि अपनी सीट या बर्थ छोड़ने वाले बच्चों को ही किराये में छूट दी जाए? रेलवे को ऐसे कुछ सवालों के जवाब देने होंगे।

ये सवाल इस संदर्भ में अधिक प्रासंगिक हैं कि क्या सरकार ने बच्चों के अधिकारों से जुड़े कार्यक्रमों के बजट आवंटन में भी कटौती कर चुकी है। इतना ही नहीं, महिला एवं बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी ने हाल ही में रायटर्स को दिए इंटरव्यू में भी कहा है कि उनके मंत्रालय के बजट में की गई 50 प्रतिशत की कटौती से कुपोषण से लड़ने की उनकी योजना को धक्का लगा है। वहीं दूसरा लाजमी सवाल यह है कि जब पहले से ही भारतीय रेल सरकार को मुनाफा दिला रहा है तो सरकार क्यों हर तरह का रेल किराया बढ़ाने पर अड़ी हुई है जबकि एयर इंडिया हर साल घाटे में जाने के बावजूद हवाई किराया में सब्सिडी देना चाहती है।

पांच से 11 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों के लिए लाए गए इस प्रावधान पर यात्री किस तरह प्रतिक्रिया देंगे? वे या तो 5-11 आयु वर्ग के बच्चों के लिए बिना बर्थ सीट की बुकिंग की यात्रा करना चुन सकते हैं या अपनी यात्रा और विशेष तौर पर बच्चों के संग यात्रा कम करना चुन सकते हैं। अगर वे बच्चों के लिए बर्थ या सीट बुकिंग के बिना यात्रा करना चुनते हैं तो इसका प्रभाव न केवल बिना सीट या बर्थ के यात्रा कर रहे बच्चों पर पड़ेगा बल्कि उस कोच या डिब्बे में यात्रा कर रहे दूसरे अन्य यात्रियों पर भी पड़ेगा। अब जरा सोचें, यदि दो-दो बच्चों के साथ तीन परिवार एसी थ्री टीयर या शयनयान कोच में हों, जहां केवल तीन लोगों के लिए बनाई गई बेंच पर 6 लोग बैठे हों। कल्पना करें, परिवार का बड़ा सदस्य अपनी सीट अपने ग्यारह वर्षीय लड़के या लड़की के साथ साझा कर रहे हों। आरएसी टिकट की स्थिति में उस बर्थ पर यात्रा करने वाले यात्री का क्या होगा जब दो बच्चों के संग एक परिवार के दो वयस्क सदस्यों को सिर्फ एक साइड लोवर बर्थ मिलेगा?  साफ तौर पर यह मध्य वर्गीय परिवार पर असर डालेगा जो एक सालाना छुट्टी पर जाने के लिए पूरे साल बचत करते हैं। अब उन्हें 25 प्रतिशत कटौती करने की आवश्यकता पड़ेगी। यह है झांकी हिंदुस्तान की। जहां यह निर्णय छुट्टियों पर जाने वाले परिवारों को प्रभावित करेगा वहीं रोजगार की तलाश में दूसरे राज्यों में जाने वाले परिवारों पर इसका प्रभाव ज्यादा पड़ेगा। सीटें नहीं खरीद पाने की वजह से क्या बच्चों के लिए ट्रेन की फर्श पर मजबूरन खड़े होकर या बैठकर यात्रा करना दुर्घटना की स्थिति में और अधिक असुरक्षित नहीं होगा? अपनी क्षमता से दोगुनी यात्रियों को ले जाते हुए क्या वातानुकूलित प्रणाली सुचारु रह पाएगी?

इंग्लैंड में रेल किराये में बच्चों के लिए 50 फीसदी की रियायत है जो पांच से 15 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों के लिए लागू है। यूरोप में इससे और अधिक,16 से 25 वर्ष तक के युवा 35 फीसदी की छूट पा सकते हैं। वहीं चीन में बच्चों को रेल किराये में छूट उनकी लंबाई के अनुसार दी जाती है। 120 से 150 से.मी. यानी 4-5 फुट लंबाई वाले बच्चों को 50 प्रतिशत की रियायत मिलती है। यदि इसकी तुलना उम्र के हिसाब से की जाए तो चीन के 12 वर्ष से कम उम्र की 75 फीसदी लड़कियां और 90 फीसदी लडक़े 250 सेमी से कम लंबे हैं। निस्संदेह भारतीय रेल में बहुत सारी अन्य रोचक रियायतें जारी हैं और ऐसे में बच्चों को मिलने वाली रियायत को खत्म करने के फैसले को असंवेदनशीलता के तौर पर देखा जा सकता है। लोकसभा का एक पूर्व सदस्य किसी भी ट्रेन में एक सहयोगी के साथ एसी द्वितीय श्रेणी में और अकेले एसी प्रथम श्रेणी में लोकसभा सचिवालय द्वारा निर्गत किए गए पूर्व सांसद के पहचान पत्र के बल पर यात्रा करने का हकदार है ।

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