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‘विचार एबीवीपी से न मिलें तो देशद्रोही हो गए क्या?’

हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहे दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या के संदर्भ में बात करें तो इस वक्त केंद्रीय संसाधन मंत्रालय द्वारा विश्वविद्लायों में एक विचारधारा थोपने की बात चल रही है। रोहित का लेना-देना सिर्फ हैदराबाद विश्वविद्लाय या वहां के प्रशासन मात्र से नहीं है बल्कि एक बड़े मसले से है। देश की विश्वविद्यालय व्यवस्था में इस समय वैचारिक हस्तक्षेप चल रहा है। वहां राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े लोगों की नियुक्तियां की जा रही हैं। देखा जाए तो जब से भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई है तब से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) सोचने लगी है कि कानून उनकी जेब में है।
‘विचार एबीवीपी से न मिलें तो देशद्रोही हो गए क्या?’

मैं फिर कह रहा हूं कि यह कहना गलत है कि रोहित की आत्महत्या का सिर्फ हैदराबाद विश्वविद्यालय से लेना-देना है। इस पूरे मामले में देखा जाए तो एबीवीपी को एक केंद्रीय मंत्री का समर्थन मिला। जबकि जांच में दलित छात्रों को दोषमुक्त कर दिया गया था लेकिन केंद्रीय राज्य मंत्री बंडारु दत्तात्रेय ने केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय को पत्र लिखा कि जांच फिर से होनी चाहिए। केंद्रीय मंत्रालय ने फिर से मामले को खोला और इन दलित छात्रों को विश्वविद्यालय से निकाल दिया गया। यह कहने में कोई दो राय नहीं है कि अंबडेकर छात्र संस्था से जुड़े दलित छात्रों का विश्वविद्यालय में उत्पीड़न होता रहा है। मुझे समझ में नहीं आता है कि केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय विश्वविद्यालयों में शिक्षा परोस रहा है या संकीर्ण विचारधारा। विश्वविद्यालयों में संघ की विचारधारा का खुलकर हस्तक्षेप हो रहा है। खराब व्यवस्था के खिलाफ बोलने वालों को जो लोग राष्ट्रविरोधी या आतंकवादी बता रहे हैं, ये वही लोग हैं जिन्होंने कुलबर्गी, दाभोलकर और पासांरे को मार डाला। अब खुले विचारों और खुली बहस की गुंजाइश कम होती जा रही है।

 

मेरा कहना है कि एबीवीपी की विचारधारा से असहमत होने का मतलब देशद्रोही या आतंकवादी होना नहीं है। प्रशासनिक बल का दुरुपयोग हो रहा है। उपकुलपति की रिपोर्ट बदल दी गईं। मैं समझा ही नहीं पा रहा हूं कि एबीवीपी किसी का इस कदर और इस हद तक उत्पीड़न करे कि कोई आत्महत्या कर ले। यह छात्र अंबेडकर के नाम से एक संस्था से जुड़े हुए थे न कि किसी देशविरोधी संस्था से। मैं पूछना चाहता हूं कि अगर किसी कि विचारधारा एबीवीपी से न मिले तो वह देशद्रोही हो गया क्या?

 

(लेखक राज्यसभा सांसद हैं)

 

 

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