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मई दिवस: नरेगा पर नौ खतरे

मई दिवस के मौके पर क्‍यों जरूरी है नरेगा पर उत्‍पन्‍न संकट की चर्चा
मई दिवस: नरेगा पर नौ खतरे

 सितंबर 2005 में बने राष्‍ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (नरेगा) के तहत हरेक ग्रामीण परिवार से एक व्‍यक्ति को साल में कम से कम 100 दिनों के रोजगार का वादा किया गया था। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाला कोई भी व्‍यक्ति हक से काम मांगता और 15 दिन के अंदर उसे काम दिए जाने का प्रावधान था। अगर सरकार किसी व्‍यक्ति को काम देने में नाकाम रहती तो उसे बेरोजगार भत्‍ता मिलने का प्रावधान था। लेकिन पिछले कुछ समय से मनरेगा को कमजोर किया जा रहा है। श्रमिकों के लिए चलाई जा रही देश की सबसे बड़ी योजना पर मंडराते इस खतरे पर मई दिवस के दिन चर्चा की कई अहम वजहें हैं, जो इस प्रकार हैं-

 

1. बजट में लगातार कटौती

नरेगा पर केंद्र सरकार का खर्च वर्ष 2010-11 के 40,100 करोड़ रुपये से घटकर 2014-15 में 38,597 करोड़ रुपये रह गया है। देश के सकल घरेलू उत्‍पाद के अनुपात के लिहाज से देखें तो केंद्र सरकार का नरेगा पर खर्च 2009'10 में जीडीपी के 0.6 फीसदी से घटकर 2014-15 में 0.3 फीसदी रह गया है।

 

2. रोजगार की संख्‍या में कमी

नरेगा के बजट के साथ-साथ इसके जरिये मिलने वाले रोजगार में भी कमी आई है। वर्ष 2009-10 में नरेगा के जरिए 284 करोड़ दैनिक मजदूरी का काम निकला जबकि 2014-15 में यह संख्‍या घटकर सिर्फ 155 करोड़ रह गई है। यानी रोजगार में करीब 50 फीसदी की कटौती। अगर अगले पांच साल के दौरान नरेगा के जरिये मिलने वाले रोजगार में और 50 फीसदी की कमी आई तो यह योजना पूरी तरह बर्बाद हो जाएगी। 

 

अधिकारों में कटौती का‍ सिलसिला

पिछले दो साल के दौरान नरेगा के तहत श्रमिकों के अधिकारों में लगातार कटौती हो रही है। इसके कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं-

3. नरेगा को न्‍यूनतम मजदूरी कानून से अलग किया गया। 

4. नरेगा के तहत न्‍यूनतम मजदूरी से कम भुगतान की गारंटी को खत्‍म कर दिया गया है।

5. मजदूरी के भुगतान में देरी के लिए मुआवजे की मांग को वेतन भुगतन संबंधी कानून के दायरे से बाहर कर दिया है।

6. नरेगा की गाइडलाइन से विकलांगों से जुड़े कई अहम प्रावधान भी हटा दिए गए हैं।

7. अब नरेगा के तहत दैनिक भुगतान की स्‍वीकृति नहीं है।

 

8. भुगतान में देरी

केंद्र सरकार की ओर से चलाई जा रही नरेगा की वेबसाइट के अनुसार, वर्ष 2014-15 के दौरान लंबित भुगतान का आंकड़ा 70 फीसदी तक पहुंच गया है, जो इससे पहले साल करीब 50 फीसदी था। भुगतान में देरी होने पर पहले वेतन भुगतान कानून के तहत मुआवजा पाने का हक दिया गया था लेकिन अब सिर्फ रोजाना 0.05 फीसदी जितनी मामूली दर पर मुआवजा देने की व्‍यवस्‍था की गई है।

 

9. आधार की मार

साल की शुरुआत में ग्रामीण विकास मंत्रालय ने ऐलान किया कि सभी नरेगा मजदूरों के लिए आधार कार्ड को एक अप्रैल, 2015 से अनिवार्य किया जा सकता है। मतलब आधार नहीं तो काम नहीं। जबकि यह सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का सरेआम उल्‍लंघन है, जिसमें कहा गया था कि किसी भी व्‍यक्ति को आधार की वजह से सरकारी सेवाओं से वंचित नहीं रखा जा सकता। इस बीच, 15 अप्रैल, 2015 को एक स्‍पष्‍टीकरण जारी करते हुए ग्रामीण विकास मंत्रालय ने कहा कि कुछ मामलों में आधार कार्ड से छूट दी जाएगी। जबकि ऐसी जानकारियां मिल रही हैं कि नरेगा मजदूरों पर आधार लागू करने का लगातार दबाव बनाया जा रहा है। जिन मजदूरों के आधार नहीं है, उनके जॉब कार्ड रद्द करने और काम न देने की रिपोर्ट मिल रही हैं।

 

(ज्‍यां द्रेज जाने-माने विकास अर्थशास्‍त्री और राष्‍ट्रीय सलाहकार परिषद के पूर्व सदस्‍य हैं ) 

 

 

 

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