वादी के लोग आए दिन हो रहे बंद और हमलों से अब ऊब चुके हैं और वह शान्तिपूर्ण जीवन जीना चाहते हैं लेकिन कुछ शरारती तत्वों के कारण वह अब भी सुकून की जिन्दगी नहीं जी पा रहे हैं।अलगाववादियों द्वारा कश्मीर में बंद का आह्वान करके कश्मीर घाटी को फिर से सुलगाने की कोशिश की जा रही है। इसी कड़ी में अलगाववादियों के आह्वान पर कश्मीरी पंडितों एवं सैनिकों के लिए प्रस्तावित कॉलोनी के खिलाफ कश्मीर में पूर्ण बंद रहा। इस दौरान सुरक्षा बलों ने एहतियात बरतते हुए सुरक्षा के कड़े प्रबंध किए थे। इसी का असर था कि बंद के दौरान कहीं कोई प्रदर्शन या हिंसक झड़पें नहीं हुईं। अलगाववादियों के धरने-प्रदर्शन के मंसूबों को भांपते हुए पुलिस ने कई अलगाववादी नेताओं एवं कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया था। जिससे कि स्थिति को संभाला जा सके और अलगाववादी अपने नापाक हरकतों में कामयाब न हो सकें।
महबूबा की अलगाववादियों को फटकार
जम्मू कश्मीर में पीडीपी और भाजपा की गठबंधन सरकार बनने के बाद लोगों के बीच एक उम्मीद की नई किरण देखने को मिल रही है। इस सरकार से लोगों को काफी आशाएं हैं। आन्तरिक सुरक्षा को लेकर गठबंधन सरकार के सामने अनेक चुनौतियां खड़ी हैं जैसे सीमापार घुसपैठ, अलगाववादियों से निपटना और आतंकी हमलों को काबू करना प्रमुख हैं। जब तक इन चुनौतियों पर काबू नहीं पाया जाएगा तब तक कश्मीर घाटी के लोगों का जीवन स्तर नहीं सुधर सकता है।
अलगाववादियों द्वारा जुम्मे के दौरान बंद का आह्वान करने पर मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने इन्हें कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि पहले जुम्मे की नमाज का लोगों को बेसब्री से इंतजार होता था। अब पवित्र जुम्मे पर नमाज अता करने की जगह मस्जिदों से पत्थर बरसाए जाते हैं। यह बड़े अफसोस की बात है। उन्होंने कहा कि अब लोग जुम्मे को मस्जिद जाने से भी डरते हैं कि पता नहीं कहां से पत्थर आ जाएगा। उन्होंने कहा कि कश्मीरियत तो आपस में मिलकर रहने की बात करता है और इस्लाम भी इसी की पैरवी करता है। महबूबा ने आगे कहा कि कश्मीरी पंडितों को अपने घरों में आने से कोई नहीं रोक सकता। उन्होंने लोगों से मिलजुल कर रहने की अपील की ताकि जम्मू कश्मीर से विश्व को अच्छा संदेश जाए। पीडीपी को शुरू से ही अलगाववादियों का हिमायती माना जाता था लेकिन मुख्यमंत्री ने यह बयान देकर सब लोगों को चौंका दिया है। अगर राज्य में अमन शान्ति कायम करना है तो मुख्यमंत्री को ऐसे फैसले लेने ही होंगे।
वादी में आतंकवादियों के घुसपैठ और हमलों की तादाद भी बढ़ रही है। अभी हाल ही में आतंकियों ने दक्षिण कश्मीर के पुलवामा में सैन्य शिविर पर ग्रेनेड हमला किया, जिसमें एक सैन्यकर्मी घायल हो गया। इससे कुछ दिन पहले ही कश्मीर के लाइन ऑफ कंट्रोल के पास पीओके की तरफ से घुसपैठ की कोशिश कर रहे चार आतंकियों से लोहा लेते हुए हंगपान शहीद हो गए। जब हंगपान ने एलओसी पर आतंकी मूवमेंट देखी तो उन्होंने बिना समय गंवाए आतंकवादियों को सबक सिखाना शुरू कर दिया। हंगपान ने घायल होने के बावजूद मोर्चा नही छोड़ा और चारों आतंकियों को मार गिराया। हंगपान मातृभूमि की रक्षा करते हुए शहीद हो गए। घाटी में पिछले कुछ महीनों के दौरान आतंकी हमलों में वृद्धि देखी गई है लेकिन सुरक्षा बलों को आतंकवादियों के खिलाफ बड़ी कामयाबी हासिल हुई। सुरक्षा बलों द्वारा अब खुफिया आधारित अभियानों में शीर्ष आतंकियों को ढेर करने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। इस साल जनवरी से अब तक 52 आतंकियों को मार गिराया गया है जिनमें हिजबुल मुजाहिदीन कमांडर आशिक हुसैन भट्ट और लश्कर-ए-तैयबा कमांडर अबु हाफिज जैसे नाम भी शामिल हैं। हिजबुल के कमांडर तारीक पंडित जिसको हिजबुल के शीर्ष कमांडर बुरहान वानी का करीबी सहयोगी माना जाता है, की गिरफ्तारी एक बड़ी सफलता थी। सूत्रों के अनुसार इस साल नियंत्रण रेखा के पास से कश्मीर घाटी में घुसपैठ करने वाले 15 शीर्ष आतंकी कमांडरों में से 10 को मार गिराया गया है।
जम्मू कश्मीर में पीडीपी शुरू से ही राज्य के कई इलाकों से अफस्पा हटाने की बात करती रही है। अभी हाल ही में रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने एक साक्षात्कार में माना कि जम्मू कश्मीर में सेना के लिए अफस्पा जरूरी है। जब उनसे पूछा गया कि जम्मू-कश्मीर सरकार में आपकी सहयोगी पीडीपी चाहती है कि सेना को विशेषाधिकार देने वाला अफस्पा कानून हटाया जाए? तो उन्होंने कहा कि यह सवाल आपको राजनाथ सिंह जी से पूछना चाहिए। मेरे मंत्रालय की भूमिका तब शुरू होती है, जब सेना को आगे बढ़ कर किसी खास क्षेत्र में कार्रवाई करने को कहा जाता है। ऐसे समय में सेना को अफस्पा के तहत सुरक्षा चाहिए। अगर यह कानून नहीं रहेगा तो सेना वहां कार्रवाई नहीं कर पाएगी। आतंकवाद रोधी ऑपरेशन में सेना की ताकत लगती है। वह ताकत ऐसे अलग-अलग कानूनों से आती है। उनमें अफस्पा प्रमुख है। वह नहीं रहेगी तो सेना नागरिक इलाकों में ऑपरेशन के लिए नहीं जाएगी। जवानों को सामान्य कानूनों का सामना करने के लिए नहीं कहा जा सकता। सेना को ऐसे इलाकों में तभी बुलाया जाता है जब वहां की स्थिति काफी बिगड़ जाती है और पुलिस एवं अर्द्धसैनिक बलों द्वारा स्थिति पर काबू नहीं किया जा रहा हो। उस समय अगर सेना के पास कोई ताकत नहीं होगी तो सेना उस स्थिति में उसका मुकाबला कैसे कर सकती है। इसीलिए आतंकवाद रोधी आपरेशन और कई अन्य आपरेशनों के लिए सेना को अफस्पा जैसे कानून की सख्त जरूरत है। जम्मू कश्मीर और उत्तर पूर्व में आतंकवाद के खिलाफ लड़ने के लिए अफस्पा कानून बहुत जरूरी है। इसी कानून के कारण आज जम्मू कश्मीर और उत्तर पूर्व में सेना ने आतंकवाद पर काफी हद तक काबू पा लिया है।
अब एक महीने बाद अमरनाथ यात्रा शुरू हो रही है जो कि 2 जुलाई से प्रारम्भ होगी और 18 अगस्त तक चलेगी। यात्रा में अवरोध पैदा करने के लिए अलगाववादी और आतंकवादी अभी से ही जम्मू कश्मीर का माहौल बिगाड़ने में लगे हुए हैं। पिछले कुछ सालों से अमरनाथ यात्रा में श्रद्धालुओं की भारी संख्या देखने को मिल रही है जो कि शरारती तत्वों को रास नहीं आ रही है। कुछ अलगाववादी तत्व इस यात्रा में हमेशा अवरोध डालने की कोशिश करते रहे हैं लेकिन अमरनाथ यात्रा के दौरान सुरक्षा के चाक चौबंद प्रबंध होने के कारण आतंकी कभी अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो सकते।
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