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ममता का असमंजस और आत्मविश्वास

पंद्रह साल पहले। 13 मार्च, 2001 का बहुचर्चित स्टिंग `ऑपरेशन वेस्ट एंड'। सीडी में फर्जी हथियार डीलर बनकर गए एक व्यक्ति से एक लाख रुपए लेते दिखाए गए थे भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण। तब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल थी तृणमूल कांग्रेस और इस पार्टी की सुप्रीमो ममता बनर्जी अटल बिहारी वाजपेयी की तत्कालीन सरकार में रेल मंत्री थीं। उस वक्त ममता बनर्जी ने बंगारू लक्ष्मण और तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस के इस्तीफे की मांग उठाई थी। इस्तीफा न होने पर समर्थन वापसी की धमकी दी थी।
ममता का असमंजस और आत्मविश्वास

डेढ़ दशक के बाद इसी तरह के अभियोग के दलदल में ममता बनर्जी की वही पार्टी धंसी दिख रही है। तृणमूल कांग्रेस के सांसद, मंत्री और पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारी स्टिंग ऑपरेशन में घूस लेते दिखाए गए हैं। स्टिंग ऑपरेशन कितना असली है और कितना फर्जी- यह तो जांच का विषय है। लेकिन घूस कांड का वही शूल तृणमूल कांग्रेस को बेध चुका है। माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी स्वाभाविक अंदाज में सवाल उठाते हैं, अब ममता बनर्जी क्या करेंगी? राजनीतिक मंच पर शुचिता की जो पहचान उन्होंने बनाई थीं, अब उसका क्या होगा?
माकपा के नेता अब नंदीग्राम के सीपीआई विधायक मुहम्मद इलियास का उदाहरण सामने रख रहे हैं। स्टिंग ऑपरेशन में वे घूस लेते दिखाए गए थे। ममता बनर्जी ने उन्हें पार्टी से निकालने की चुनौती वाममोर्चा को दी थी। बंगाल विधानसभा अध्यक्ष ने उनके खिलाफ जांच बिठाई, दोषी ठहराया गया और उनकी विधायकी खारिज कर दी गई। वाममोर्चा भी संसद में तृणमूल के 11 सांसदों के खिलाफ भी इसी तरह की कार्रवाई की मांग कर रही है।
इस कांड के चलते राजनीतिक गलियारों में ममता बनर्जी की स्वच्छ सवाल उठने लगे हैं। अग्निकन्या कही जाने वाली ममता बनर्जी सकते में बताई जा रही हैं। वे गर्जन नहीं कर रही हैं। वे गरजते हुए न तो यह कह पा रही हैं कि आरोप सच साबित हुए तो नेताओं को कड़ी से कड़ी सजा देंगी, न ही यह कह पा रही हैं कि सभी आरोप झूठे हैं और ऐसा हो ही नहीं सकता। उत्तर बंगाल के दौरे पर गईं ममता बनर्जी वहां की एक जनसभा में बस हल्के अंदाज में यह कहकर रह गईं कि चुनाव के मौके पर राजनीतिक साजिश रची गई है।
दरअसल, स्वच्छ छवि और दुर्नीति मुक्त शासन के वादे के साथ वे 2011 में बंगाल की सत्ता में आई थीं, इस सीडी कांड के चलते उस छवि को धक्का लगा है। जनता के बीच वे कहती रही हैं कि आरोप लगने के साथ ही पद थोड़कर जांच के नतीजों का इंतजार करना चाहिए। छवि बचाने के लिए अगर वे अपने नेताओं पर किसी तरह की कार्रवाई करती हैं तो उनकी पार्टी ही ताश के पत्तों की तरह बिखर सकती है। ऐसे में ममता बनर्जी के सामने अपनी कही बातों के उलट चलने की मजबूरी है। उनके सामने दोधारी तलवार पर चलने की मजबूरी है। न तो उन्होंने पार्टी के भीतर कोई जांच कमेटी बनाई है, न ही पार्टी की कोई बैठक अब तक बुलाई है।
यह जरूर है कि अपने नेताओं को मीडिया में सिर्फ यही कहने की इजाजत दी है कि विधानसभा चुनाव में लोगों का जनमत ही हमें सही या गलत साबित कर देगा। राजनीतिक तौर पर बंगाल में ममता बनर्जी मजबूत ताकत हैं। ठीक वाममोर्चा की तरह, जिसने 34 साल बंगाल पर राज किया। 2011 में ममता बनर्जी में जनता को वाममोर्चा का विकल्प दिखा था। इस बार वामो-कांग्रेस और भाजपा विकल्प की बात उठा रहे हैं, लेकिन राजनीतिक पकड़ के मामले में तृणमूल से कोसों पीछे हैं। क्या इसी राजनीतिक पकड़ को ध्यान में रखकर ममता बनर्जी और उनके साथी नेता इस आत्मविश्वास में हैं कि विधानसभा चुनाव में लोगों का जनमत ही हमें सही या गलत साबित कर देगा।

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