भूमि अध्यादेश के जरिये विवादास्पद भूमि अधिग्रहण अधिनियम के महत्वपूर्ण सुरक्षा उपायों को ध्वस्त कर देना एक और मुद्दा है। हाल ही मेंए भारतीय खाद्य निगम में सुधार के लिए एक समिति का गठन किया गया है । समिति ने अपने कार्यभार से परे, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसएद्ध 2013 के बारे में सुझाव दे डाले, जिसमें मुख्य सुझाव है कि एनएफएसए 2013 में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के द्वारा 66 प्रतिशत जनसंख्या कवरेज को घटाकर 40 प्रतिशत किया जाये।
रिर्पोट में कवरेज घटाने का एकमात्र आधार था कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली में चोरी का कम न होना है। बाद में पाया गया कि समिति के चोरी के अनुमान गलत हैं। सही अनुमान के अनुसार कई राज्यों में चोरी में कमी आई है। मिसाल के तौर पर बिहार में 24 फीसदी अनाज चोरी होता है जबकि समिति ने 60 फीसदी बताया है। बिहार में सुधार की यह कहानी कई अध्ययनों से बयां होती है।
भाजपा शासित राजस्थान में राज्य सरकार सामाजिक सुरक्षा को मिटाने के लिए अपना पूरा जोर लगा रही है। एक ओर आठ वर्ष से कम की शिक्षा प्राप्त किए लोगों को पंचायत चुनावों में भाग लेने पर रोक लगा रहा है, तो दूसरी तरफ 17,000 सरकारी विद्यालयों को बंद कर दिया है।
भाजपा ने बड़ी होशियारी से यह झूठा प्रचार किया है कि भारत की नीतियां ज़्यादा ही जनहितवादी हैंए कि उसने सामाजिक लक्ष्यों को ज़्यादा अहमियत दी जा रही है और वह तेजी से गरीबों के लिए एक पालनहार राज्य बन रहा है। किसी को यह खयाल नही आया कि देश में सामाजिक सुरक्षा पर खर्च को देख लें। देखते तो यह पाते कि भारत कम खर्च में मानो विश्व चैंपियन है। स्वास्थ्य और शिक्षा पर सार्वजनिक खर्च जीडीपी का 5 फीसदी से कम है, जो कि सबसे कम विकसित देशों (6 फीसदी) और उप.सहारा क्षेत्र अफ्रीका (7 फीसदी) से भी कम है।
सच्चाई तो यह है कि भारत धनिकों का पालनहार बन जाने का खतरा ज्यादा है। 25 फीसदी ग्रामीण जनसंख्या को रोजगार प्राप्त कराने वाले मनरेगा का बजट जब 33,000 रुपये था तब कुल कार्यबल के 1 फीसदी से भी कम को रोजगार देने वाले स्वर्ण और हीरा उद्योग पर कर माफी 65,000 करोड़ रुपये थी।
हाल ही में विकास पर भाजपा के खोखलेपन का मजाक उड़ाया गया कि मोदी सरकार का नवां महीना चल रहा है, विकास किसी भी समय पैदा हो सकता है। दिल्ली के जनादेश ने इस चुटकुले को कुछ इस तरह से आगे बढ़ाया, मुबारक हो, विकास पुरुष अरविंद पैदा हुआ हैं।
भाजपा के विपरीत, आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में अपने मुख्य एजेंडे में आम लोगों की रोजमर्रा की समस्याओं (बस्तियों में बाधित जल आपूर्ति, पुलिस का शोषण आदि) को शामिल किया। यह उनको भारी पड़ सकता था क्योंकि मुख्यधारा का मीडिया लोकप्रिय जनवादी चिंताओं को पौप्यूलिस्ट कहकर दरकिनारे करने कि कोशिश करता है। वर्ग विभाजन को दरकिनार करते हुए दिल्ली में आम आदमी पार्टी को मिले बहुमत ने दर्शा दिया है कि राजनीतिक दल यदि गरीबों की अनदेखी करेंगेए तो उन्हें इसकी कीमत चुकानी होगी।
संयोग से, आने वाला बजट सरकार के लिए एक अच्छा अवसर है जिसमें वह सामाजिक कल्याण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दर्शा और बजट में पर्याप्त प्रावधान करे। सरकार को यह समझने की जरूरत है कि विकास का मतलब केवल उन्नति नही है । विकास का मतलब सभी लोगों के लिए बेहतर जीवन।