भले ही ब्रिटेन के चुनाव में दो कहानियां यानी दो रुझान चले हों, असली कहानी तो दूसरे रुझान की ही है। यह दरअसल ब्रिटेन की तमिलनाडु घड़ी है। जैसे भारत में 1967 में तमिलनाडु में द्रविड मुनेत्र कषगम ने पहली बार उस जमाने में देश की एकछत्र पार्टी कांग्रेस की जड़ उखाड़ दी थी। हालांकि, 1967 में कांग्रेस देश के नौ राज्यों में हारी थी, लेकिन तमिलनाडु में द्रविड राजनीति की जीत का प्रभाव सबसे अहम और दूरगामी साबित हुआ। तब से आज तक तमिलनाडु में हमेशा द्रविड राजनीति का ही बोलबाला रहा, चाहे वह द्रविड मुनेत्र कषगम हो या उससे निकली हुई अन्ना द्रमुक मुनेत्र कषगम। यह इसलिए कि द्रविड राजनीति ने भारतीय राष्ट्र के प्रचलित मुख्यधाराई आख्यान यानी एकछात्र भारतीय राष्ट्रवाद की विचारधारा को ही वैचारिक चुनौती दी और कोरोमंडल तट तथा कावेरी की घाटी में एकछात्र भारतीय राष्ट्रवाद की विचारधारा को धूल चटा दी। बदले में एक बहुराष्ट्रीय भारत की वैकल्पिक परिकल्पना भारतीय राजनैतिक विमर्श में प्रतिष्ठित हुई।
यह वैकल्पिक परिकल्पना देश के अन्य हिस्सों में धीरे-धीरे परवान चढ़ती हुई स्थापित हुई अौर इसकी वजह से आज भारतीय राजनीति में एक बड़े भू-भाग में क्षेत्रीय दलों का वर्चस्व कायम हुआ है। इसी की वजह से केंद्र में भी गठबंधन की सरकारों का दौर आया। और यदि बहुमत की भी सरकार आई जैसे कि इस बार आई है तो उसे बहुमत लाने के लिए क्षेत्रीय दलों से गठजोड़ करना पड़ा। इसी की शुरुआत हम ब्रिटेन में देख रहे हैं। कई वर्ष पहले लेबर पार्टी के विभाजन के बाद से ब्रिटेन की राजनीति में कंजरवेटिव पार्टी के वर्चस्व का एक दौर रहा। लेकिन बाद में लेबर पार्टी के वामपंथी झुकाव में नरमी और उससे निकली नई छवि के बाद लेबर पार्टी पुन: सत्ता में आ पाई थी। तब से ब्रिटेन की राजनीति में भी गठजोड़ों का एक दौर आया और पिछली दो सरकारें वहां गठबंधन की सरकार रहीं। पहले लेबर पार्टी की, फिर कंजरवेटिव पार्टी की।
गठबंधनों के इस दौर के पीछे भी अगर गौर से देखें तो विकेंद्रीकरण का रूझान दिखेगा। यह रूझान धीरे-धीरे इतना बलवान हुआ कि पिछले वर्ष स्काॅटलैंड में जनमत संग्रह कराना पड़ा कि वह ब्रिटेन के साथ रहे या एक अलग देश के रूप में उसका अवतरण हो। ब्रिटेन और स्कॉटलैंड का एकीकरण विश्व का सबसे पुराना राजनीतिक जीवित एकीकरण है। स्कॉटिश नेशनल पार्टी स्कॉटलैंड की पुन: उभरी राष्ट्रवादी भावना को प्रतिबिंबित करती है। पिछले जनमत संग्रह में भले ही स्कॉटलैंड ने ब्रिटेन के साथ रहना स्वीकार किया लेकिन ताजा चुनाव बताते हैं कि अब भी एसएनपी क्षेत्रीय भावनाओं की वाहक है। पिछले जनमत संग्रह में स्कॉटलैंड ब्रिटेन के साथ रहने को इस शर्त पर राजी हुआ कि सत्ता के ढांचे का और विकेंद्रीकरण कर उसे और संघीय बनाया जाएगा।
इसी बात को सुनिश्चित करने के लिए स्कॉटलैंड की जनता ने एसएनपी में इस चुनाव में इतना घनघोर विश्वास व्यक्त किया है। अब इतने दिनों बाद बहुमत से सत्ता प्राप्त करने वाली कंजरवेटिव पार्टी को स्कॉटिश जनता की इन भावनाओं से सामंजस्य बिठाना पड़ेगा। बाकी ब्रिटेन की जनता ने कंजरवेटिव पार्टी को अस्थिरता का दौर खत्म करने के लिए पूर्ण बहुमत दिया है। लेकिन स्थिरता के लिए ही यह जरूरी है कि स्कॉटलैंड और वेल्स की क्षेत्रीय या उप-राष्ट्रीय भावनाओं के साथ ब्रिटेन की राष्ट्रीय कदमताल कर सके। अभी तो ब्रिटेन को विकेंद्रीकरण का आगे का भी एक दौर देखना है जब आप्रवासी एथनिक समूहों की राजनीतिक एवं सांस्कृतिक आकांक्षाओं के साथ भी वहां की तालमेल बिठाना पड़ेगा।