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हरियाणवी बाउंसरों से परहेज करें राहुल

राहुल गांधी की सक्रियता ने भारतीय राजनीति का मौसम तो गर्म कर ही दिया है। अचानक राहुल गांधी विपक्ष के नेता की भूमिका में नजर आने लगे हैं। आजकल राहुल गांधी की भाषण शैली में आक्रामकता है, सरकार पर हमले कर रहे हैं। कांग्रेस भी और कांग्रेसी भी आशान्वित हो उठे हैं कि पार्टी फिर खड़ी हो उठेगी। प्रश्न ये है क्या, राहुल गांधी के सक्रिय हो जाने मात्र से पार्टी हाशिये से बाहर निकल पायेगी?
हरियाणवी बाउंसरों से परहेज करें राहुल

बात करते हैं अमेठी की, जहां पर राहुल गांधी 18 से 20 मई को  तीन दिवसीय दौरे पर थे। भीषण गर्मी और चिलचिलाती धूप में किसानों से भेंट करना अथवा जनता से मिलने का  कार्यक्रम कांग्रेस से विमुख हुए वोटरों को क्या वापस कांग्रेस की ओर खींच पाएगा? राहुल इन्हौना, जगदीशपुर से अमेठी क्षेत्र में प्रवेश करते हैं और स्वागत कार्यक्रम के बाद वह मोदी सरकार के झूठे आश्वासनों की बात करते हैं, महंगाई की बात करते है, भूमि अधिग्रहण बिल की बात करते हैं। इस बार उन्होंने संग्रामपुर ब्लॉक से कई सड़कों का लोकार्पण किया। गौरीगंज में जनप्रतिनिधियों से मिलकर कलेक्ट्रेट में विकास समिति की बैठक की। इस बार लोगों को उत्साह से लबरेज एक नया राहुल गांधी देखने को मिलता है।

 

अमेठी के वे दिन याद आते हैं जब संजय गांधी और राजीव गांधी ने अमेठी क्षेत्र की गली-गली घूम कर भावनात्मक संबंधों की डोर से पूरे क्षेत्र को बांध लिया था जिसका लाभ आज तक कांग्रेस को मिल रहा है। ये सब यू ही संभव नहीं हो पाया था इसमें उनके निजी सहायकों की भी महती भूमिका थी, चाहे वह कैप्टन सतीश शर्मा हों, वी॰ जार्ज हों,  जे॰ एन॰ मिश्रा हों, किशोर उपाध्याय हों या के॰ एल॰ शर्मा हों। अब हालात बदल गए है, राहुल गांधी के पास व्यक्ति तो है किंतु व्यक्तित्व नहीं है जिनसे अमेठी जैसा महत्वपूर्ण संसदीय क्षेत्र संचालित हो सके। इसका राहुल गांधी को खामियाजा विगत चुनावों में देखने को मिला कि जीत का अंतर चार लाख से घट कर एक लाख तक पहुंच गया और इससे उत्साहित होकर चुनावों में पराजित भाजपा प्रत्याशी स्मृति ईरानी फिर लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए अमेठी को ही अपने संसदीय क्षेत्र के रूप मे तैयार कर रही है, उनके प्रभारी उमाशंकर पांडेय आजकल दिल्ली से सीधे संपर्क में हैं। स्मृति ईरानी की अमेठी में सक्रियता के कारण अमेठी की राजनीति में अब भी चुनावी सरगर्मी सी बनी हुई है।

 


राहुल गांधी के पास अमेठी में उनके पूर्वजों की लंबी राजनीतिक विरासत है, साथ ही, वह स्वयं भी तीन बार से अमेठी लोकसभा से ही सांसद हैं। लेकिन ये राहुल गांधी के लिए तभी संभव हो पाया कि जब अमेठी की जनता का राजीव गांधी से एक भावनात्मक रिश्ता कायम हुआ। अमेठी के सभी विधानसभा चुनावों में विभिन्न दलों के नेता भी लोकसभा चुनावों में गांधी परिवार को ही अपना प्रतिनिधि चुनते रहे है किंतु अब हालात बदल रहे हैं। राहुल गांधी को अमेठी में स्मृति ईरानी से चुनौती मिल रही है, अगर गांवों में आग लगती है तो स्मृति ईरानी पहले पहुंच जाती हैं और राहत सामग्री बांटने लगती हैं, फिर राहुल पहुंचते हैं। इसी प्रकार फूड पार्क रद्द होने के मुद्दे पर स्मृति ईरानी पहले अमेठी पहुंचीं फिर राहुल गांधी। दिल्ली के रामलीला मैदान में किसान रैली में जहां रायबरेली से लगभग 400 कांग्रेसी कार्यकर्ता पहुंचे वहीं अमेठी से 30-35 लोग आए। अमेठी में राहुल गांधी के सहयोगी के रूप  में प्रियंका गांधी की अहम भूमिका रही है। प्रियंका गांधी को अमेठी लाने के लिए बार-बार मांग उठती रहती है। 

 


यह कटु सत्य है कि विवाह और राजनीति के दायित्वों का निर्वाह कभी दूसरों के सहारे नहीं किया जा सकता। राहुल गांधी को अमेठी में तैनात  हरियाणा के बाउंसर टाइप वेतनभोगी कॉर्डिनेटर के भरोसे अपना राजनीतिक कॅरियर दांव पर नहीं लगाना चाहिए। उनका बोलने का लहजा कुछ खास को छोड़ कर आम कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को हजम नहीं हो रहा है, वैसे भी हरियाणवी शैली और अवध के नजाकत भरे अंदाज में जमीन-आसमान का अंतर है। अमेठी में  आज राहुल गांधी को समर्पित कार्यकर्ताओं की आवश्यकता है न कि वेतनभोगी कथित कांग्रेसियों की, जिनके कारण अमेठी का एक असंतुष्ट वर्ग निरंतर क्षेत्र में बैठकें कर रहा है और राहुल गांधी से अपना विरोध दर्ज करवा कर रहा है। राहुल को अमेठी में  विरोध की  इस सुलगती चिंगारी को रोकना होगा। अभी आगामी चुनाव में समय है उन्हें अपने सहयोगियों के वृत को ठीक कर लेना चाहिए।

 

 
राहुल गांधी की अपनी निजी छवि तो साफ सुथरी है किंतु उनके हंटर बने वेतनभोगी कारिंदे अमेठी में उनकी बनी बनाई जमीन को खोखला कर रहे हैं। वे राहुल को अमेठी का वही परिदृश्य दिखाते है जिससे उनकी नौकरी कायम रहे। इसका हल राहुल गांधी को निकलना होगा। उनकी सभाओं से गायब होते पुराने हतोत्साहित कार्यकर्ता अब कहां हैं? राहुल गांधी को अपनी मां सोनिया गांधी से सीखते हुए उन बिसरते चेहरों को खोजना होगा। सूत्रों के अनुसार सोनिया गांधी अपने रायबरेली दौरे में यदि किसी वरिष्ठ कार्यकर्ता को नहीं देखतीं तो अपने सहयोगियों से पूछती हैं कि अमुक कार्यकर्ता नहीं दिख रहा है। इसका कार्यकर्ताओं पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। याद  रहे सोनिया गांधी अपना चुनाव लगभग चार लाख से जीती थीं। अमेठी अब भी राहुल को चाहती है बस उन्हें दिखाना होगा कि वो भी अमेठी को चाहते हैं।

 

(राकेश पांडेय जननायक राहुल गांधी पुस्तक के लेखक हैं)

 

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