हाल के टैक्सी बलात्कार कांड ने राजधानी दिल्ली के जेहन में निर्भया कांड के घाव फिर हरे कर दिए हैं। दरअसल, स्त्री-पुरुष समता और संबंधों के मामले में घर से सडक़, दफ्तर, मंडी और चौपाल तक अपने प्राचीन और नए किस्म के रोगाणुओं से इतना ग्रसित है कि हर नई वारदात स्त्री, और संवेदनशील पुरुष, चेतनाको किन्हीं गहरे पुराने जख्मों की पपड़ी उधेडऩे जैसा कष्टï दे जाती है। बहरहाल, भारतीय समाज के रोग जर्जर स्त्री-पुरुष समीकरण की तस्वीर आप आउटलुक के पन्नों पर पढ़ते रहे हैं। चुनांचे इस कॉलम में हम टैक्सी बलात्कार कांड से उपजे कुछ और सवालों पर निगाह डालेंगे। ये सवाल बहुराष्ट्रï्रीय यूबर टैक्सी सेवा की कुछ संदिग्ध विश्वव्यापी गतिविधियों से पैदा होते हैं, लेकिन इन सवालों का दायरा इस कंपनी के कार्यकलापों से ज्यादा बड़ा है।
हमारी चिंताएं दरअसल अंतरराष्ट्रï्रीय पूंजी प्रवाह और किसी भी तरह की सार्वजनिक जवाबदेही और राजकीय नियमन केे प्रति उसके प्रतिरोध तथा आधुनिक टेक्नोलॉजी में निहित दोमुंहे उपयोग के खतरों और इसलिए उसकी जवाबदेही सुनिश्चित कराने वाले नियमन को लेकर है। सार्वजनिक जवाबदेही लागू करने वाले राजकीय नियमन के प्रति यूबर का अहंकारी प्रतिरोध ऐसा है कि दिल्ली के पहले कई देशों में उसकी सेवाएं या तो प्रतिबंधित हो चुकी हैं अथवा कानूनी कार्रवाई झेल रही हैं। ताजा-ताजा इस कंपनी पर थाईलैंड ने पाबंदी लगाई है। इसके पहले बिना लाइसेंस संचालन के स्पेन यूबर को प्रतिबंधित कर चुका है। बेल्जियम में अदालत ने यूबर कंपनी पर इसलिए रोक लगा दी कि लाइसेंसिंग नियमों को धता बताकर वह अनुचित प्रतियोगी गतिविधियों और भाड़े से छेड़छाड़ के जरिये लाइसेंसशुदा टैक्सी सेवाओं और चालकों की रोजी-रोटी काट रही थी। इंडोनेशिया भी यूबर से ऐसी ही वजहों से खफा हुआ। यूबर कंपनी खुद को टैक्सी कंपनी नहीं कहती। वह स्मार्ट फोन के ऐप आधारित उपयोग के जरिये विभिन्न जरूरतमंद ग्राहकों को अपने अलग-अलग साझीदार टैक्सी चालकों से संपर्क कराकर उनकी सेवाएं मुहैया करा उसकी एवज में अपना शुल्क लेने का दावा करती है। इसलिए अपने को एग्रीगेटर कहने वाली यह कपंनी टैक्सी लाइसेंसिंग प्रणाली की जवाबदेहियों और नियमन से खुद को मुक्त मानती और रहती है। इसलिए वह कर्मचारियों की मौलिक उपस्थिति और 24 घंटे कॉल सेंटर की जिम्मेदारियों से मुक्त सिर्फ ट्वीटर और व्हाट्स ऐप के जरिये ऑपरेट करती है यानी ग्राहकों के लिए इस कंपनी की छाया (वर्चुअल) उपस्थिति मात्र है, ठोस भौतिक उपस्थिति नहीं। छाया उपस्थिति का छाया आवरण कई तरह के अपराधों के लिए माकूल प्रलोभन पैदा कर सकता है।
आश्चर्य नहीं कि अपने जन्मस्थान अमेरिका के कई राज्यों में यूबर कंपनी प्रतिबंध, कानूनी कार्रवाई या जनाक्रोश झेल रही है। बल्कि वहां एक जगह तो दिल्ली के बलात्कार कांड जैसे कांड में ही उसका एक ड्राइवर फंसा है। जिस तरह दिल्ली कांड के पूर्व यहां एक महिला यात्री बलात्कार के आरोपी ड्राइवर शिव यादव के असहज करने वाले व्यवहार के प्रति यूबर प्रबंधन के पास अपनी शिकायत दर्ज करा चुकी थी, जिस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई, उसी तरह अमेरिका में भी एक महिला यात्री पर यौन आक्रमण के पूर्व अनेक औरतें कुछ यूबर चालकों की शिकायत बिना नतीजा कर चुकी थीं। जाहिर है कि सार्वजनिक जिम्मेदारी से ज्यादा यूबर प्रबंधन के सिर चढक़र मुनाफा और पैसा बोलता है। और मुनाफाखोरी के साथ अगर स्त्री को दोयम और इस्तेमाल की चीज मानने वाली पुरुषसत्ता वाली मानसिकता जुड़ जाए तो फिर एक तो करेला, दूजे नीम चढ़ा वाली बात ही होगी। अमेरिका में सिलिकॉन वैली की टेक्नोलॉजी पत्रकार और खबरिया वेबसाइट की संपादक सरा लेसी ने यूबर को स्त्री-असम्मान की मानसिकता से ग्रस्त बताया है जो यौन आक्रमण और बलात्कार जैसे कांडों के लिए माकूल है। महिला यात्रियों की शिकायत के प्रति अमेरिका में यूबर प्रबंधन का एक ही रुख होता है: वे उत्पीडि़ता को ही दोष देते हैं। उनके तर्क भारतीय पुलिस और संस्कृति के स्वयंभू ठेकेदारों जैसे ही होते हैं: औरतें भडक़ीले कपड़े पहने थी या नशे में थी या ज्यादा ही हंस-बोल रही थी, आदि। यहां तक कि लेसी के अनुसार यूबर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ट्रैविस कालानिक ने एक बार कथित टिप्पणी की थी कि वह अपनी कंपनी को ‘बूबर’ (स्तनों वाली) कहते हैं क्योंकि उसकी सफलता से प्रभावित होकर ढेर सारी औरतें उनके साथ सोना चाहती हैं।
यूबर को आड़े हाथों लेने वाले लेसी जैसे अमेरिकी पत्रकारों के खिलाफ कंपनी का क्या रुख है ? वह उन्हें धमकाती है कि उसके पास इन पत्रकारों के खर्च, बातचीत, मुलाकातों और दौरों आदि से संबंधित सारे निजी ब्योरे रेकॉर्डेड हैं जिनका वह पर्दाफाश कर देगी। यह धमकी टेक्नोलॉजी की धमकी है। दरअसल, जब कोई ऐप के जरिये यूबर से कनेक्ट करता है तो उसके स्मार्ट फोन पर के सारे कॉल रेकॉड्र्स और इंटरनेट गतिविधियों तक कंपनी टेक्नोलॉजी महारथियों की पहुंच बन जाती है। इसी तरह कंपनी का जीपीएस आपके सारे यात्रा मार्गों और गंतव्यों के रेकॉड्र्स उपलब्ध करा देता है। टेक्नोलॉजी का यह दोमुंहापन ही उसके सार्वजनिक नियमन और जवाबदेही प्रणाली की जरूरत रेखांकित करता है। यूबर ही क्यों, फेसबुक और गूगल जैसे तमाम इंटरनेट माध्यमों के पास हमारे निजी जीवन के आंकड़े और उनकी निगरानी एवं दुरुपयोग के रास्ते उपलब्ध हैं। जो लोग जैविक आंकड़ों (बायोमेट्रिक्स) और डिजिटल आधारित प्रणालियों में टैक्सी बलात्कार कांड और अन्य सुरक्षा संबंधी समस्याओं का समाधान देख रहे हैं, उन्हें टेक्नोलॉजी के दुरुपयोग को लेकर भी चौकस होना चाहिए। टेक्नोलॉजी की जवाबदेही और सार्वजनिक नियमन की प्रणालियां विकसित करनी जरूरी हैं।
लेकिन भारत अपने हुक्मरानों और न्यस्त आभिजात्य हितों का क्या करे ? अभी ही जिस तरह यूबर के पक्ष में सत्ताधारियों और मीडिया के एक तबके से महीन स्वर उभर रहे हैं उससे लगता है कि प्रभुता पैसे और मुनाफे के तर्क यूबर और वैसी कंपनियों ही नहीं, भारत और इतर जगत में बहुतों के सिर चढक़र बोलते हैं। इस जादू के आगे हमारी नीतियां अवश हो जाएं तो आश्चर्य नहीं।