हरिद्वार में दो सप्ताह लंबी कांवड़ यात्रा के पहले सप्ताह में करीब 50 लाख से अधिक यात्रियों की आमद दर्ज की गई है। शेष बचे दिनों में यह संख्या और बढ़ेगी। औसनत 10 लाख कांवड़िये रोजाना हरिद्वार पहुंच रहे हैं। इस संख्या की तुलना हरिद्वार शहर की दो लाख की आबादी से करें तो सहज अंदाजा लगा सकते हैं कि यह शहर और यहां के लोग किस तरह की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। कांवड़ियों की भीड़ ने हरिद्वार की आम जिंदगी को बुरी तरह प्रभावित किया है। शहर के भीतर लोकल ट्रांसपोर्ट की दरें दोगुनी हो गई हैं। दस दिन पहले खुला दूध 40 रुपये लीटर था अब वो बढ़कर 60 रुपये हो गया है। यात्रा खत्म होते-होते ये रेट 80 रुपये लीटर तक पहुंच जाएगा। यही स्थिति फल और सब्जियों की है। रसोई गैस की उपलब्धता प्रभावित हुई है। पैट्रोल पंपों पर लंबी लाइन लगी हुई है और शहर के बाहर-भीतर हजारों वाहनों की रेलम-पेल ने पूरे माहौल को घुटनभरा बना दिया है। हरिद्वार शहर और जिले में सभी स्कूल-काॅलेजों को यात्रा समाप्त होने तक बंद कर दिया गया है। जिले का पूरा सरकारी अमला यात्रा संभालने में लगा है इसलिए सरकारी दफ्तर खाली हो गए हैं और सारा कामकाज बंद हो गया है।
कांवड़ यात्रा में पिछले दस साल के दौरान चिंताजनक स्तर तक बढ़ोत्तरी हुई है। जबकि, इस यात्रा का धार्मिक-पौराणिक आधार इतना व्यापक नहीं है कि यह उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से तक फैल जाए और आम जिंदगी को काबू कर ले। इस वक्त जिस प्रकार के लोग यात्रा का हिस्सा हैं, उनके बारे में पुलिस में दर्ज मामलों को लेकर आसानी से धारणा बनाई जा सकती है। यात्रा शुरू होने के बाद से कांवड़ियों के खिलाफ हरिद्वार शहर में शराब पीने, भांग-गांजा पीने, पुलिस पर हमला करने, सार्वजनिक स्थानों पर उत्पात मचाने, छेड़छाड़ करने के मामले दर्ज हो चुके हैं। संभव है कि सभी कांवड़िये ऐसी प्रवृत्ति के न हों, लेकिन भीड़ का चरित्र अलग होता है। वह आसानी से चिंताजनक गतिविधियों का हिस्सा बन सकती है। साल 2014 में अंतिम दो दिनों में हरिद्वार शहर पूरी तरह कांवड़ियों के रहमो-करम के भरोसे था। सारी व्यवस्थाएं पुलिस-प्रशासन के दायरे से बाहर हो गईं थी। शहर का सौभाग्य था कि तब कोई बड़ा हादसा नहीं हुआ था, लेकिन ये सौभाग्य हमेशा ही साथ देगा, इस बात पर यकीन नहीं किया जा सकता।
इस वक्त पैदल यात्रियों की तुलना में उन लोगों के कारण अधिक दिक्कत हो रही है जो ट्रैक्टरों, जुगाड़ वाहनों, ट्रकों में भरकर हरिद्वार पहुंच रहे हैं। इसका परिणाम यह है कि देहरादून-दिल्ली, ऋषिकेश-दिल्ली, हरिद्वार-बिजनौर, हरिद्वार-कुरुक्षेत्र, हरिद्वार-चंडीगढ़ समेत ज्यादातर राजमार्गाें पर ट्रैफिक को डायवर्ट करना पड़ा है। अंतिम तीन-चार दिनों में कई राजमार्ग पूरे तौर पर बंद करने पड़ेंगे। रूट डायवर्जन के कारण यात्रा की अवधि में 50 फीसद तक की बढ़ोत्तरी हो गई है। हरिद्वार से दिल्ली की पांच घंटे की यात्रा अब आठ घंटे में हो रही है। इसी अनुपात में किराये भी बढ़ गए हैं। हरिद्वार तक पहुंचने वाला कोई भी राजमार्ग अभी तक फोर-लेन नहीं है। टू-लेन राजमार्गाें पर हर रोज 50 हजार से अधिक वाहन हरिद्वार आ-जा रहे हैं। ऐसे में लंबे जाम लग रहे हैं और शहर के एक हिस्से के लोग आसानी से दूसरे हिस्से में नहीं पहुंच पा रहे हैं। स्थानीय प्रशासन द्वारा वाहनों का आंकड़ा और भी बड़ा बताया जा रहा है। ऐसे में, हरिद्वार में वायु प्रदूषण का स्तर दिल्ली से भी खराब स्थिति में पहुंच गया होगा। चूंकि, धार्मिक यात्राएं हल्ले-गुल्ले और शोर-शराबे के बिना पूरी नहीं होती इसलिए कावंड़ यात्रा में चारों तरफ लाउडस्पीकरों पर कानफाडू़ं आवाजों में गाने गाये-बजाये जा रहे हैं।
साल भर पहले डेरा सच्चा सौदा के करीब दस हजार लोगों ने हरिद्वार की यात्रा की थी। ये सभी अपने साथ झाडू़ और साफ-सफाई का सामान लेकर आए थे। इन श्रद्धालुओं ने दिन भर में पूरे हरिद्वार शहर को साफ कर दिया था और शहर से इतना कूड़ा एकत्र किया था कि उसे हटाने में नगर निगम को एक सप्ताह से ज्यादा लग गया था। क्या ऐसी ही उम्मीद कांवड़ियों से की जा सकती है? इस सवाल का जवाब नहीं में है। कांवड़िये हरिद्वार को साफ करने की बजाय इसे गंधाते शहर में तब्दील कर देते हैं। गंदगी के संदर्भ में अभी कोई ऐसा आंकड़ा उपलब्ध नहीं है जिससे यह पता चले कि कांवड़ यात्रा के दौरान हरिद्वार में कितनी गंदगी जमा हुई। लेकिन, एक मोटा अनुमान जरूर लगाया जा सकता है। हरेक कांवडि़या अपनी यात्रा के दौरान औसतन तीन दिन हरिद्वार में रुकता है। इस दौरान यदि वह महज एक किलो गंदगी भी छोड़कर जाए तो कांवड़ यात्रा के पहले सप्ताह में 50 लाख किलो यानि 5 हजार टन गंदगी अब तक शहर में जमा हो चुकी है। यात्रा खत्म होने तक यह गंदगी दस हजार टन से भी ज्यादा हो जाएगी। हरिद्वार शहर के आसपास ऐसा कोई ट्रैंचिंग ग्राउंड नहीं है, जहां 10 हजार टन कूड़े-कचरे को ठिकाने लगाया जा सके। इससे कहीं बुरी स्थिति मल-विसर्जन को लेकर होती है। ज्यादातर कांवड़िये गंगा किनारे और सड़कों के आसपास ही निवृत्त हो रहे हैं। दो साल पहले कांवड़ यात्रा के दौरान आखिरी दिनों में बारिश नहीं हुई थी। इसके चलते कई दिन तक पूरा शहर मल की गंदगी और बदबू से दो-चार रहा था। अलबत्ता, पिछले साल कावंड़ के आखिरी दिनों में तेज बारिश ने कांवड़ियों के मल को गंगा में धकेल दिया था।
सरकार और स्थानीय प्रशासन चाहे तो इस यात्रा को आसानी से व्यवस्थित किया जा सकता है। बशर्ते इसे अमरनाथ यात्रा की तर्ज पर संचालित किया जाए। इसके लिए प्रदेश सरकार के स्तर पर ही निर्णय लिया जा सकता है। यात्रा में आने से पहले हरेक व्यक्ति के लिए पंजीकरण अनिवार्य हो और संबंधित लोगों को अलग-अलग तिथियों में हरिद्वार में प्रवेश के लिए अनुमति दी जाए। इनसे पंजीकरण शुल्क भी वसूला जाए। शुल्क के एवज में इन्हें स्वास्थ्य और जीवन बीमा का लाभ दिया जा सकता है। गौरतलब है कि अब तक सड़क हादसों में दस कांवड़ियों की मौत हो चुकी है। इन्हें किसी प्रकार का मुआवजा नहीं मिला क्योंकि इस प्रकार का कोई प्रावधान उपलब्ध ही नहीं है। पंजीकरण के दौरान यह स्पष्ट हो कि इस यात्रा को पैदल ही पूरा किया जाएगा। वाहनों की अनुमति न दी जाए। पंजीकरण के साथ पुलिस-वैरीफिकेशन की व्यवस्था भी होनी चाहिए। वैसे, सरकार और स्थानीय प्रशासन हर साल घोषणा करता है कि दुपहिया वाहनों, ट्रैक्टर-ट्राॅलियों और जुगाड़ वाहनों पर यात्रा की अनुमति नहीं दी जाएगी और डीजे-लाउडस्पीकर भी बैन रहेंगे, लेकिन हकीकत यह है कि इनमें से किसी पर भी कोई रोक नहीं लग सकी है। फिलहाल, हरिद्वार शहर के लोगों को पूरा एक सप्ताह अराजक माहौल में दिन गुजारने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।