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चीन से संबंधों में लगाएं रेशमी गांठ

भारत में कभी भी किसी प्रधानमंत्री ने अपनी पहली पारी में ही इतने कम समय में इतने अधिक देशों का दौरा नहीं किया जितना नरेंद्र मोदी ने पिछली मई से अब तक एक साल के वक्त में किया है। पूरी दुनिया के अपने दौरों में मोदी ने सभी बड़े नेताओं के सामने भारत को निवेश के लिहाज से आकर्षक जगह के रूप में पेश किया मगर इन सभी नेताओं से बातचीत में एक विषय जरूर उठा और वह ये कि हठधर्मी चीन से कैसे निपटा जाए।
चीन से संबंधों में लगाएं रेशमी गांठ

एक ऐसे पड़ोसी के रूप में जिसका 4000 किलोमीटर से अधिक का सीमा क्षेत्र चीन के साथ विवाद में उलझा हो और ‌जिस मुद्दे पर दोनों देश 1962 में युद्ध भी कर चुके हों, भारत की कुछ चिंताएं समझी जा सकती हैं। मगर मोदी चीन को भारत के आधारभूत ढांचे के विकास के लिए एक बड़े निवेश स्रोत के रूप में भी देखते हैं। वह वैश्विक उत्पादन हब के रूप में चीन की सफलता को भारत में भी दोहराना चाहते हैं खासकर अपने चर्चित जुमले मेक इन इंडिया को सच करने के लिए। अंत में, मोदी अपनी इस चीन यात्रा से भविष्य के संबंधों के लिए एक रणनीतिक जगह भी बनाना चाहते हैं।

इस लिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि 14 मई से शुरू हो रही उनकी तीन दिनी चीन यात्रा ने इसने बड़े स्तर पर दिलचस्पी जगा दी है। भारत के सुरक्षा हितों से कोई समझौता किए बगैर वह आर्थिक मोर्चे पर चीन के साथ भारत की जरूरत का संतुलन कैसे साधेंगे इस पर भारत ही नहीं दुनिया की सभी राजधानियों की पैनी निगाह टिकी है। दिल्ली के रणनीतिज्ञ सी. उदय भाष्कर कहते हैं, ‘चीन का दौरा मोदी के विदेश नीति एजेंडे में सबसे महत्वपूर्ण घटना होगी।’

मोदी चीन या इसके राष्ट्रपति शी चिनफिंग, जिनके बारे में माना जाता है कि वे माओ के बाद चीन के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक हैं, के लिए अजनबी नहीं हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में मोदी चार बार चीन की यात्रा कर चुके हैं और अतीत में शी चिनफिंग के साथ कई बार मिल चुके हैं खासकर पिछले वर्ष सितंबर में जब चीन के राष्ट्रपति भारत के दौरे पर आए थे। मोदी जब तीन देशों की पूर्वी एशिया यात्रा पर चीन पहुंचेंगे तो प्रधानमंत्री के रूप में यह उनकी पहली चीन यात्रा होगी। अपने इस दौरे में मोदी मंगोलिया और दक्षिण कोरिया भी जाएंगे।

मोदी की चीन यात्रा के संदर्भ ने इसे महत्वपूर्ण बना दिया है। अमेरिका, जापान, आस्ट्रेलिया और वियतनाम जैसे देशों के नेताओं के साथ बातचीत में दक्षिण चीन सागर या हिंद-प्रशांत क्षेत्र में तनाव की चर्चाएं मोदी करते रहे हैं। कुछ लोग इसमें उम्मीद देखते हैं जबकि कुछ शंका जताते हैं कि चीन को अलग-थलग करने की कुछ देशों की रणनीतिक में शामिल होने की हिचक भारत तोड़ने तो नहीं लगा है? चीन का नेतृत्व भी एशिया में एक संतुलनकारी शक्ति के रूप में भारत की भूमिका को स्वीकार करने लगा है। भले ही चीन भारत को पूर तरह अपने पाले में न कर पाए मगर वह भारत को अपने विरोधियों के खेमे में जाता भी नहीं देखना चाहता। साथ ही चीन भारत में विशाल कारोबारी अवसर भी देख रहा है, खासकर ‘कारोबारी मित्र’ मोदी के तहत, वह इस विशाल बाजार का बड़ा हिस्सा हासिल करना चाहता है।

इसलिए चीन मोदी के उस स्वागत की तैयारी कर रहा है जो वह कुछ चुनिंदा विश्व नेताओं के लिए सुर‌क्षित रखता है। यही नहीं जैसे मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी चिनपिंग की भारत यात्रा की शुरुआत अपने गृह प्रदेश गुजरात के अहमदाबाद से करवाई थी वैसे ही अब शी मोदी की यात्रा की शुरुआत अपने गृह प्रांत शांक्सी की राजधानी शियान से करवा रहे हैं।

शियान अपने वाइल्ड गूज पैगोडा के लिए भी प्रसिद्ध है जो कि प्राचीन सिल्क मार्ग से 7वीं सदी के बौद्ध दार्शनिक ह्वेनसांग की भारत यात्रा की यादगार के रूप में बनाया गया था। बीजिंग में चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग टैंपल ऑफ हैवन में मोदी की मेजबानी करेंगे जहां भारतीय योग और चीनी ताई ची का सार्वजनिक प्रदर्शन किया जाए जाएगा। शिन्हुआ विश्वविद्यालय में मोदी चीनी छात्रों को संबोधित करने के अलावा चीनी कारो‌बारियों से भी मुखातिब होंगे। चीन के युवाओं से जुड़ने के लिए मोदी चीन की माइक्राब्लॉगिंग साइट वाइबो पर अपना एकाउंट खोल चुके हैं। यह टि्वटर जैसे साइट है।

मोदी की यात्रा के लेकर चीन के भारतीय समुदाय में बेहद उत्साह है। शंघाई के इंडियन एसोसिएशन के अध्यक्ष अमित वाइकर कहते हैं कि भारतीय में अपने प्रधानमंत्री से मिलने को लेकर जो उत्साह है वैसा पहले कभी नहीं दिखा। उनका एसो‌सिएशन शंघाई वर्ल्ड एक्स्पो एंड कन्वेंशन सेंटर में एक कार्यक्रम आयोजित कर रहा है जिसमें मोदी करीब 5000 भारतीयों को संबोधित करेंगे। इनमें चीन में पढ़ रहे भारतीय छात्र भी शामिल हैं।

इस दौरे में दोनों देशों के बीच प्राचीन संबंधों की प्रतीकात्मकता तो दिखेगी मगर मूल सवाल यही रहेंगे कि अहम मसलों पर क्या हुआ? दिल्ली के साउथ ब्लॉक के आधिकारिक सूत्र बताते हैं कि भारत-चीन के बीच संबंधों को लेकर पिछले एक दशक में एक तय सांचा बना है और उसी पर सरकारें चलती रही हैं। इस सांचे के तहत अधिकतम लाभ हासिल किया जा चुका है इसलिए अगर मोदी कुछ ज्यादा हासिल करना चाहते हैं तो उन्हें संबंधों को अगले चरण में ले जाना होगा।

तो क्या यह भारत-चीन संबंधों में बड़े बदलावों का संकेत है? भारतीय प्रतिष्ठान में कई लोग हैं जो मानते हैं पहले से बने सांचे को छेड़े बिना मोदी के पास चीन से बातचीत के लिए कई मुद्दे हैं। इनमें सीमा पर दोनों देशों के सैनिकों के बीच झड़पें, पाकिस्तान के साथ बढ़ता चीन का सहयोग जिसे भारत में इस रूप में देखा जा रहा है कि चीन भारत को सिर्फ दक्षिण एशिया तक सीमित कर देना चाहता है, और अंत में दि्वपक्षीय आर्थिक संबंधों का चीन के पक्ष में बुरी तरह झुका होना शामिल है।

चीन में भारत की राजदूत रहीं और भारत की पूर्व विदेश सचिव निरुपमा राव कहती हैं, ‘ दोनों देशों के बीच विश्वास बहाली के उपाय करने के लिए कई कदम उठाने के अवसर मौजूद हैं। उदाहरण के लिए सीमा पर जिन जगहों पर ज्यादा विवाद हो रहे हों वहां दोनों देशों के कमांडरों के बीच सीधी हॉट लाइन सेवा शुरू की जा सकती है। इसी प्रकार आर्थिक मसलों पर जल्दी बात हो इसकी व्यवस्‍था की जा सकती है।’ इसके बावजूद जैसा की रणनीति विशेषज्ञ उदय भाष्कर कहते हैं, अगर चीन भारत को अपने साझेदार के रूप में देखना चाहता है तो उसे भारत की कुछ चिंताओं का निराकरण गंभीरतापूर्वक करना पड़ेगा। खासकर वो चिंताएं जो चीन के परमाणु प्रतिष्ठान और पाकिस्तान के बीच सहयोग से पैदा हुई हैं। 

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