मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए उज्जवल भविष्य का आशीर्वाद लेने 16 जुलाई 2013 को भी जगन्नाथ मंदिर में पहुंचे थे। उनकी मनोकामना पूरी हुई। उनकी तरह हर साल लाखों लोग जगन्नाथ मंदिर के दर्शन के लिए आते हैं। सब नहीं, लेकिन पंडों के निर्देश अथवा भाव से हजारों लोग मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना करते हैं। कितनों की इच्छा पूरी होती है - इसका हिसाब कहीं नहीं लगता। जब भगवान सबकी मनोकामनाएं पूरी नहीं कर सकते, तो भला मोदी, पटनायक, केजरीवाल, बादल या राहुल गांधी से रखी जाने वाली उम्मीदों के पूरा न होने पर नाराजगी क्यों होनी चाहिए ? मंदिर हो या सरकार- मीठे वचनों के साथ मुफ्त या जेब से दान-दक्षिणा देकर 'प्रसाद’ तो मिलता है।
फिर भी मात्र आशीर्वाद और फूल-प्रसाद-चरणामृत से कितनी तृप्ति होगी ? भगवान जगन्नाथ की कृपा चाहने वालों को श्रीकृष्ण - श्रीराम - महादेव शिव के परम भक्तों की सरकार से अवश्य अपेक्षाएं होती हैं। मोदीजी की यात्रा से पहले हमें भी पुरी जाने का अवसर मिला। अवसर था पारिवारिक विवाह कार्यक्रम का। बहुराष्ट्रीय कंपनियों में काम करने वाले युवा मयंक और सुश्री पहले गोवा के समुद्रतट पर विवाह करना चाहते थे। लेकिन उड़िया परिजनों की सुविधा देखते हुए भुवनेश्वर-पुरी के पावन क्षेत्र में मंगल परिणय का आयोजन किया। मयंक और परिवार के बंधु-बांधव और मित्रजन विभिन्न राज्यों के अलावा यूरोप-अमेरिका से भी पहुंचे। मुझे लगभग तीस वर्षों के बाद पुरी के समुद्रतट पर टहलने का अवसर मिला। सचमुच पुरी का समुद्र तटीय क्षेत्र (सी बीच) बहुत सुंदर है। सूरज की किरणों से पानी की लहरों का रंग नीला और गर्जन के बावजूद संयम के साथ आने-जाने का क्रम रहता है। तीस साल में भारत कितनी प्रगति कर चुका है। हवाई सेवा सीमित होने के कारण उन दिनों रेल-यात्रा सुविधाजनक लगती थी। इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और नरसिंह राव के साथ बीजू पटनायक के नेतृत्व और लगाव के कारण ओडिशा की भी प्रगति हुई। अब तो नए हवाई अड्डे का नाम ही 'बीजू पटनायक हवाईपत्तन’ हो गया है और रेल-बस-कार परिवहन व्यवस्था से पर्यटकों की संख्या लगातार बढ़ती गई है। पुरी की करीब 80 प्रतिशत अर्थव्यवस्था पर्यटकों पर निर्भर है। समुद्र तट पर होटलों की कतार लंबी होती जा रही है। लेकिन पुण्य नगरी और सुंदर तट के बावजूद यहां घूम रहे लोगों की बातों और पर्यटन की दृष्टि से कोई प्रयास नहीं देखकर निराशा होती है। गोवा या मुंबई के किनारों की सुविधाओं से तो कोई तुलना नहीं हो सकती है। तट पर बेहद बेतरतीब खोखे जैसी दुकानों में चाय-पानी, मछली, पुराने बिस्कुट-नमकीन, सामने कतार से शराब की छोटी दुकानें, सस्ती मूर्तियां-नकली मोती मालाओं की फुटपाथी दुकानें और प्रदूषण फैलाते ऑटो रिक्शा और गाड़ियां। भारत सरकार या पंद्रह वर्षों से एकछत्र राज कर रहे पटनायक पुत्र नवीन पटनायक उड़िया भाषा का प्रयोग भले ही न करते हों, ओडिशा की खातिर पर्यटकों के लिए पुरी में आकर्षक व्यवस्था क्यों नहीं कर सकते हैं ? समुद्र तट पर ओडिशा के नृत्य-संगीत, पारंपरिक, आधुनिक कलाकृतियों से सजे बैठने के स्थल, तटों पर रोशनी की व्यवस्था, दारू के बजाय अच्छे नारियल पानी के बिक्री केंद्र बनाने से क्षेत्र की आमदनी में बढ़ोतरी ही होगी। बीजू जनता दल से राजनीतिक बैर है, लेकिन अयोध्या, काशी, मथुरा के उद्धार का शंखनाद करने वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार विष्णु के अवतार जगन्नाथजी के आंगन को तो साफ सुथरा रख सकती है। देशभर में स्वच्छता अभियान चल रहा है, लेकिन पुरी में मंदिर के प्रवेश द्वार के आसपास से दो-तीन किलोमीटर गंदगी ही गंदगी दिखती है। सड़कों पर अतिक्रमण है। मंदिर के बाहर जूते जमा करने वाले सेंटर पर भारी धक्का-मुक्की, अंदर किसी तरह का प्रसाद या कोई सामान ले जाने पर पूरा प्रतिबंध। पैरों में जुराब नहीं पहन सकते, दिख जाने पर गेटकीपर जुराब निकालकर जेब में रखने का निर्देश देते हैं। जेब में गंदी जुराबें रहने पर मंदिर अपवित्र नहीं होगा? मंदिर परिसर के बाहर से अंदर तक पंडों का वर्चस्व। गर्भगृह फिलहाल दूर रखा है। लेकिन दूर से दर्शन के लिए भी पैसों और पंडों के बिना अगली पंक्ति में नहीं पहुंचा जा सकता है। प्रसाद की व्यवस्था भी पंडों के मार्फत संभव है। वैसे जगन्नाथ मंदिर की प्रसाद बनाने वाली पाकशाला दुनिया में सबसे बड़ी मानी जाती है। मंदिर में 6 बार भगवान को भोग लगाया जाता है। करीब चार सौ रसोइये दिन रात भोजन-प्रसाद बनाते हैं। मंदिर में 6 हजार कर्मचारी हैं और पंडों को मिलाकर 20 हजार लोगों की आजीविका यहां से चलती है। फिर भी मंदिर की सुंदर प्राचीन दीवारों के आसपास बंदरों के साथ गंदगी के दर्शन होते हैं। हमारी और मोदीजी की यात्रा के कुछ दिन बाद पुरी से ही लगे प्रसिद्ध कोणार्क मंदिर (सूर्य मंदिर) के परिसर में बंदरों और मधुमक्खियों के उत्पात से 23 देशी-विदेशी पर्यटक घायल हो गए। चार को अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। कोणार्क मंदिर तो भारत सरकार की व्यवस्था के तहत है। जगन्नाथ पुरी मंदिर परिसर की आमदनी भी उड़ीसा सरकार के खजाने में जाती है। खजाना भरा हुआ है और भक्तों और पर्यटकों के पैर कीचड़ में सने हुए हैं। राजनीतिक विकल्प के अभाव में पटनायक राज में रहने-सहने वाले हमारे मित्र महापात्रजी कहते हैं कि कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा और शिक्षा स्थली उज्जैन में भी नदियों का पानी ज्यादा प्रदूषित और कीचड़ भरा हुआ है। इसीलिए उम्मीद करते रहिये - कीचड़ में कभी तो फूल खिलेंगे।