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वसुधैव कुटुम्बकम

लव जिहाद के नाम पर हिन्दू और मुसलमान के बीच जहां कुछ लोग वैमनस्य फैलाने में जुटे हैं, वहीँ महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका दिनों के साथी इमाम अब्दुल कादर बवाज़िर के खानदान के सदस्य पिछली चार पीढ़ी से संप्रदाय और धर्म के बंधनों को तोड़ कर 'वसुधैव कुटुम्बकम' के सिद्धांत को अपने जीवन से प्रस्थापित कर रहे हैं।
वसुधैव कुटुम्बकम

उन्नीसवी सदी के अंत में मुंबई की जामा मस्जिद के अरब पेश इमाम का पुत्र कादर चौदह साल की उम्र में ही अपना संभ्रांत परिवार छोड़ कर अपने पैरों पर खड़े होने के दृढ़ संकल्प के साथ घर छोड़ कर निकल पड़ा था। एक जहाज में मजदूरी करते हुए वह दक्षिण अफ्रीका के जोहानसबर्ग जा पहुंचा। यहां उसने खूब मेहनत मजदूरी कर के पैसे जोड़े और अपना खुद का सफल कारोबार जमाया। उसने एक डच मुसलमान महिला से निकाह किया। यह महिला हज जा कर आई थी इसलिए लोग उन्हें हाजी साहिबा के नाम से जानते थे।

अब्दुल कादर बवाज़िर जिस समय अफ्रीका पहुंचे उसी दौरान मोहनदास करमचंद गांधी वहां वकालत करते थे। उन्हें भारतीय मूल के लोग गांधी भाई कह कर बुलाते थे। गांधी भाई की भारतीय मूल के लोगों के प्रति सेवा भावना से प्रभावित हो कर अब्दुल कादर बवाज़िर ने अपना कारोबार समेट लिया और गांधी भाई के फिनिक्स आश्रम में फकीरी का जीवन जीना शुरू कर दिया। गांधीजी उन्हें प्यार से 'इमाम साहब' बुलाया करते थे इसलिए वे इसी नाम से जाने जाते थे।

गांधीजी जब दक्षिण अफ्रीका छोड़ कर भारत आने निकले तब आयोजित विदाई समारोह में उन्होंने इमाम साहब की पहचान अपने सगे भाई के तौर पर करवाई। गांधीजी जब 1915 में भारत आए तो उनके पीछे-पीछे इमाम साहब भी अपनी पत्नी हाजी साहिबा और दो बेटियों अमीना तथा फातिमा के साथ आ गए। गांधीजी ने जब अहमदाबाद में साबरमती नदी के किनारे आश्रम की स्थापना की तो वहां इमाम साहब ने अपना भी मकान बनाया जिसे 'इमाम मंजिल' के नाम से जाना जाता था। वे आजीवन इसी 'इमाम मंजिल' में रहे। 

इमाम साहब की पुत्री अमीना के विवाह का निमंत्रण पत्र भी गांधीजी ने स्वयं अपने नाम से जारी किया था। अमीना का विवाह मुगल खानदान के गुलाम रसूल कुरैशी के साथ साबरमती आश्रम में 31 मई, 1924 के दिन संपन्न हुआ।

साबरमती आश्रम की संपत्ति एक ट्रस्ट के नाम रजिस्टर की गई जिसके प्रथम ट्रस्टी इमाम साहब थे। आज 90 साल बाद इमाम साहब के नाती हमीद कुरैशी साबरमती आश्रम सुरक्षा और स्मारक ट्रस्ट के प्रमुख ट्रस्टी हैं। इमाम साहब की पुत्री अमीना के दो पुत्र - अब्दुल हमीद और अब्दुल वहीद जो हमीद कुरैशी और वहीद कुरैशी के रूप में जाने जाते हैं। हमीद कुरैशी की शादी आश्रम निवासी स्व. हरजीवन दास कोटक और शारदाबेन कोटक की पुत्री प्रतिमा के साथ हुई। उनकी पांच संतान - दो  बेटियां शमीम और यास्मिन और तीन बेटे आबिद, मुनीर और आकिल।

बड़ी बेटी शमीम की शादी इतालवी मूल के अमेरिकी नागरिक एंटनी के साथ हुई। छोटी बेटी यास्मिन की शादी जर्मन माता और बरतानवी पिता के पुत्र स्टेफन का साथ हुई। हमीद कुरैशी के बड़े पुत्र आबिद की शादी स्विस मूल की ईसाई अमेरिकी युवती एलेन के साथ हुई। हमीद के दूसरे पुत्र मुनीर की शादी इंद्रवदन और भारती कांटावाला की पुत्री दीप्ति के साथ हुई। हमीद के भाई वहीद के एकमात्र पुत्र नासिर की शादी हेमांगिनी चोकसी के साथ हुई।

जहां एक ओर कुरैशी परिवार में हिंदू कन्याएं बहू बन कर आईं वहीँ इमाम साहब के नाती वहीद की चार कन्याओं नसीम, सोफ़िया, रुआब और शिरीन की शादी हिंदू युवकों के साथ हुई। नसीम की शादी अधिवक्ता भरत नायक से, सोफ़िया की अतुल भावसार से, रुआब की दक्षिण भारत के चंदर शर्मा से और शिरीन की जाने माने समाज सेवक हरिहर खाम्भोलजा के पुत्र अपूर्व के साथ हुई। हिन्दू परिवार से आई चारों कन्या कुरैशी परिवार में अच्छी तरह घुलमिल गई हैं वैसे ही कुरैशी परिवार की चारों कन्या हिंदू परिवार की बहू बन कर प्रसन्न हैं। 

स्वयं हमीद कुरैशी और प्रतिमा की शादी के साक्षी गुजराती के जाने माने कवि स्नेहरश्मि थे। 

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