वैसे भी ईरान से हमारे पुराने और बहुत मजबूत रिश्ते रहे हैं। हमारी विरासत भी सांझी रही है। मराठी जुबान के तो आज भी बहुत से शब्द परशियन जुबान के हैं। मुगल राज में अकबर के बाद हुए मुगल शासकों पर परशियन जुबान का असर देखा जा सकता है। दोनों देशों के बीच पहले से ही व्यापारिक रिश्ते भी रहे हैं। इसलिए प्रधानमंत्री उन्हीं रिश्तों और मजबूत करने गए हैं।
व्यापारिक दृष्टि से इस समय तेल, गैस, बंदरगाह, रेलवे और सड़क निर्माण के संदर्भ में ईरान देश में बहुत गुंजाइश है। प्रधानमंत्री से पहले सुषमा स्वराज और नितिन गडकरी भी ईरान की यात्रा करके आ चुके हैं। खासकर तेल और गैस के मामले में ईरान की रईसी किसी से छिपी नहीं है। वैसे भी ईरान पर से अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध हटने के बाद प्रधानमंत्री का यह दौरा और अहम है। ईरान के साथ हमेशा ज्यादती हुई है। उसने बहुत दफा मार खाई है। यूरोपियन देशों ने जो ईरान के साथ किया है, उसके मद्देनजर शायद अब उसका पश्चिमी देशों के प्रति रुख पहले जैसा नहीं रहे और एशिया में भारत ही एक ऐसा शक्तिशाली देश है जिससे ईरान अपनी नजदीकियां बढ़ाना चाहेगा। जिसपर ईरान भरोसा कर सकता है। भारत चाहेगा कि ईरान के साथ तेल, गैस, बंदरगाह, सड़क, रेलवे विकास के संदर्भ में अहम समझौते हों। भारत ईरान में चाबहार बंदरगाह विकसित कर रहा है। इसके विकसित होने से दोनों देशों के व्यापार को और मजबूती मिलेगी।
जहां तक ईरान के साथ कूटनीतिक संबंधों का सवाल है तो हमें पाकिस्तान के पड़ोसी देशों से अपने कूटनीतिक रिश्ते मजबूत करने ही चाहिए। इससे पाकिस्तान खुदब खुद कमजोर महसूस करेगा। पाकिस्तान को कमजोर करने के लिए उसके पड़ोसियों से अच्छे संबंध रखने होंगे। अफगानिस्तान से हमारे पहले से अच्छे संबंध हैं और हम चाहते हैं कि ईरान से भी हमारे संबंध अच्छे हों। इसलिए पाकिस्तान से संदर्भ में भी यह एक अहम यात्रा है।
(लेखक, मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी, हैदराबाद के वाइस चांसलर हैं।)
(आउटलुक की विशेष संवाददाता मनीषा भल्ला से बातचीत पर आधारित)