आप सूखे के सामने जायें और पहले दिन ही आप की मुलाकात बारिश से हो जाये तो आप इसे क्या कहेंगे, संयोग? छलावा? आशीर्वाद?
यही हमारे साथ हुआ। गांधी जयंती पर देश के सूखाग्रस्त इलाकों की 'संवेदना यात्रा' हमने यादगिर जिले के हंचिनाला गांव से की। जिसे गांधी जी अंतिम व्यक्ति कहते थे उसके दर्शन करने हो तो कर्नाटक के छोर पर स्थित इस गांव में आईये। मुख्य सड़क से कोई 8 किलोमीटर दूर उबड़-खाबड़ टूटी-फूटी सड़क पर चलते-चलते रात 11 बजे उस गांव पहुंचे थे। ज्यादातर घर टीन के बने हुए, जिस तरह तक की झोपड़पट्टी अक्सर आप को गांव में भी दिखाई नहीं देती, कर्नाटक में तो लगभग कभी नहीं, उस गांव में दरिद्रनारायण के बीच में बैठ कर गांधी जी का प्रिय भजन वैष्णव जन को विद्या शाह की गंभीर पर सुरीली आवाज में सुनना एक अनूठा अनुभव था। शायद इसलिए भी अनूठा था कि गाना बजाने की कोई सुविधा वहां पर उपलब्ध नहीं थी, इसलिए एक साथी की गाड़ी के स्पीकर में लगा कर इस भजन को सुनाया।
यहां गरीबी में आंटा गीला वाली स्थिति थी, एक तो यूहीं ही बदहाली ऊपर से सूखे की मार। देविका अम्मा की फटी साड़ी को देख करके कौन कह सकता था कि वो तीन एकड़ की मालकिन है और इस मौसम के बाद वह 50 हजार के कर्ज की मालकिन भी हो गई है। कपास बोई, कुछ नहीं उगा फिर दोबारा बोई वो भी लगभग सूख चुकी है। देविका अम्मा के पास दो बैल थे, चारा खिलाने की क्षमता नहीं थी तो उन्हें बेच दिया। अब बंगलुरू में मजदूरी करके बेटा कुछ पैसे भेजता है दूसरा बेटा गांव में लकड़ी बेचता है ।
दिन भर यादगिर जिले और रायचूर में ऐसी ही कहानियां सुनने को मिलती रहीं। ज्यादातर कहानियों के केंद्र में बीटी काॅटन नामक कपास थी। पहले यहां के किसान कपास की देसी किस्म लगाते थे जिसमे कपास कम होती थी, गांठदार होती थी लेकिन वह सूखें का सामना कर सकती थी। बीटी काॅटन आया, ज्याद मुनाफे का लालच आया, ज्यादा पानी की मजबूरी आई और साथ में आया कर्ज। जगह-जगह यही कहानी थी। मई में चार बूंद पड़ गई, उत्साह में किसान ने खूब खर्चा कर कपास लगाई, सूखने के बाद दोबारा हिम्मत करके किसान ने फिर कपास लगाई लेकिन इतना सब करने के बाद उसे मिला सिर्फ कर्ज।
ये सब कहानियां सुनते-सुनते शाम को हमारी मुलाकात लौटते हुए मानसून से हुई। पिछले 10-15 दिन से इस इलाके में बारिश हुई है, लेकिन फसल को फायदा नहीं हुआ। कहीं-कहीं तो फसल को नुकसान भी हो गया। लेकिन लौटते मानसून की इस बारिश से चारो तरफ हरियाली का एक आभास-सा हो गया। सूखी फसल का मुहं चिढ़ाती यह घास सूखे के सच को छुपाती है। कई जगह किसान इस छलावे से चिढ़ते हैं लेकिन इंद्र देवता से झगड़ा करके क्या फायदा। मैंने तो इस वर्षा को आशीर्वाद की तरह ग्रहण किया। शायद उपर वाला भी इस सूखे में किसान के साथ संवेदना व्यक्त कर रहा था।
योगेन्द्र यादव की डायरी - 2 : संवेदना यात्रा
3 अक्टूबर 2015
दो दिन में चार आत्महत्या की परछाई को छूना अंदर से सूखा देता है। पिछले दो दिन में आत्महत्या के शिकार चार परिवारों से मिला। हर बार लगा जैसे शब्द सूख गए हों। वैसे भी गमी के मौके पर क्या बोलना चाहिए मुझे कभी समझ नहीं आया। इतना बेदर्द नहीं हूं कि चटर-पटर बतियाना शुरू कर दूं। इतना सहृदय भी नहीं हूं कि दो आंसू बहा सकूं। इसलिए बस दर्शक बन के देखता रहता हूं।
देखता हूं कैसे आत्महत्या सहज बातचीत के मुहावरे का हिस्सा बन गई है, जैसे - सूखा, अप्रवास, बेरोजगारी। परिवार भी बिना झेंप के आत्महत्या के बारे में बोलते हैं। सरकार का कलेक्टर पुराने जमाने के अधिक अनुपजाऊ वाले विज्ञापनों की शैली में 'अब आत्महत्या न करो' वाले विज्ञापन लगाता है।
देखता हूं आत्महत्या के इर्द-गिर्द कुटीर उद्योग पनप रहा है। गांव के बाहर टूरिस्ट गाइड खड़ा मिलता है - साब! स्यूसाइड फैमली से मिलना है न, मैं ले जाता हूं। कैमरा, फ्लैश, माइक, सब तैयार है। अम्मा! इधर चेहरा करो, साब के साथ फोटो खिंचवाओ। हर प्रश्न का 'गेसपेपर' और 'कुंजी' तैयार है। कितनी जमीन थी, कितना लोन लिया था, किस तारीख को फांसी लगाई, पुलिस कब आई, कौन अफसर आया, कौन नहीं आया - सब रटा रहता है।
अपने गिरेबान में भी झांक के देखता हूं, इंसान न बन जाऊं इस डर से कभी जासूस तो कभी मनोवैज्ञानिक बन जाता हूं। एक ही घर में आठ साल में चार आत्महत्या कैसे संभव है? आखिर नौ एकड़ के मालिक के बच्चे उसे छोड़कर बंगलुरू में मजदूरी करने क्यों गए थे? घर पर इतने सारे बड़े लोगों को देख के इस बच्चे के मन में क्या हो रहा है? मेरे मन में कुछ हो भी रहा है या नहीं?
देखता हूं पार्वती अम्मा का चेहरा - सीधा, सपाट, सख्त, सूखा। बात करते-करते उसे रुलाई आई लेकिन आंसू नहीं आए। देखता हूं, इस सूखे ने आंख के आंसू भी सूखा दिए हैं।
(राजनीतिशास्त्री और स्वराज अभियान के नेता योगेंद्र यादव 2 अक्टूबर से जय-किसान आंदोलन की संवेदना यात्रा पर हैं जो कर्नाटक, तेलंगाना, मराठवाडा, बुदेलखंड और उत्तर प्रदेश के सूखाग्रस्त इलाकों से होते हुए 15 अक्टूबर को दक्षिण हरियाणा में समाप्त होगी)