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नाइजीरिया में महिलाओं के हक में ऐतिहासिक फैसला

नाइजीरिया में आधी आबादी के हक में एक ऐतिहासिक फैसला लिया गया है। वहां वर्षों पुरानी प्रथा ‘महिलाओं के खतने’ (एफजीएम) पर कानूनी रोक लगा दी गई है। प्रचलित भाषा में इसे ‘एफजीएम’ कहते हैं यानी कि महिलाओं की योनि का संवेदनशील हिस्सा ब्लेड के जरिये काट कर हटा देना जिससे महिलाएं यौन सुख से वंचित रहें।
नाइजीरिया में महिलाओं के हक में ऐतिहासिक फैसला

 

मानवाधिकारों पर काम कर रहे तमाम लोगों ने इस फैसले का स्वागत किया है। नाइजीरिया के राष्ट्रपति गुडलक जोनाथन ने आधिकारिक तौर पर इस कुप्रथा पर पाबंदी लगाने के लिए विधेयक पर हस्ताक्षर किए। इससे पहले मई में नाइजीरियन सीनेट में ‘लोगों के खिलाफ हिंसा (निवारण) विधेयक 2015’ पारित किया गया था। नाइजीरिया में लंबे अरसे से महिला अधिकार संस्थाएं और नागरिक स्वास्थ्य समुदाय इसका विरोध कर रहे थे। वहां बहुत कम उम्र में लड़कियों के साथ यह अमानवीय कृत्य किया जाता था। जिस वजह से लड़कियों को स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें आ रहीं थीं।   .

 

एक खबर के अनुसार अफ्रीका और मध्य एशिया के 29 देशों की 13 करोड़ से ज्यादा लड़कियों का खतना हो चुका है। अब नए कानून के तहत नाइजीरिया में इसे कानूनी अपराध घोषित कर दिया गया है। महिला संगठनों ने उम्मीद जताई है कि नया कानून इस अमानवीय कृत्य पर रोक लगा सकने में सफल रहेगा।

 

विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से बताया गया है कि एफजीएम की वजह से लड़कियों की योनी से ज्यादा मात्रा में खून निकल आता है, उनमें बेक्टीरिया इंफेक्शन हो जाता है, खुला जख्म होने की वजह से कई तरह की अन्य बीमारियां हो जाती हैं। अंतरराष्ट्रीय सेंटर फॉर रिसर्च, महिला हिंसा और अधिकार की निदेशक स्टेला मुक्कासा ने नए कानून के लागू होने में जटिलताओं का जिक्र किया। महिला वकीलों ने राष्ट्रपति जोनाथन का धन्यवाद करते हुए इसका स्वागत किया। एमनेस्टी इंटरनेशनल यूएसए की वरिष्ठ निदेशक ताराह डीमैंट का कहना है कि अब देखना यह है कि दूसरे देश जहां आज भी यह प्रथा कायम है वहां इस पर रोक लगाने का फैसला कब लिया जाता है।

 

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