अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हाल में प्रिस्क्रिप्शन दवा कीमत 30-80 फीसदी तक कम करने का संकेत दिया है। हालांकि, अपनी आदत के मुताबिक उन्होंने इसकी बारीकियां नहीं बताईं। समूचे दवा उद्योग में इससे हड़कंप है। ट्रुथ सोशल पोस्ट में उन्होंने कहा कि अमेरिका कई प्रिस्क्रिप्शन दवाओं के लिए अधिक कीमत चुकाता है, जो अन्य विकसित देशों की तुलना में लगभग तीन गुना अधिक है। ट्रम्प कीमतें कम करने की क्या योजना बना रहे हैं या अमेरिकी दवा बाजार के कौन से हिस्से उनकी मूल्य निर्धारण नीतियों के दायरे में आ सकते हैं, इस पर अनिश्चितता से भारतीय फार्मा कंपनियों और निवेशकों में बेचैनी है।
भारत को ‘दुनिया की फार्मेसी’ कहा जाता है। अमेरिका में भारतीय दवाओं की सबसे ज्यादा खपत है। कई प्रमुख दवा निर्माताओं की कमाई का 47 फीसदी हिस्सा अमेरिका में बिक्री से आता है। इसमें सन फार्मा, सिप्ला, डॉ रेड्डीज और ल्यूपिन हैं।
भारतीय कंपनियों की यह कमाई अमेरिकी दवाओं से कम कीमत के कारण होती है। अगर अमेरिकी फार्मा कंपनियों को कीमतें कम करने के लिए मजबूर किया जाता है, तो भारतीय फर्मों की बढ़त खत्म हो सकती है। सवाल यह है कि क्या संभावित मूल्य कटौती व्यापक होंगी या ब्रांडेड दवाओं, विशेष इलाज या जेनेरिक जैसे विशिष्ट क्षेत्रों तक सीमित रहेंगी।
मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज के फार्मा विश्लेषक तुषार मनुधाने का कहना है कि घोषणा में अस्पष्टता के कारण संभावित असर का अनुमान लगाना जल्दबाजी होगी। उन्होंने कहा, ‘‘हमें अभी तक ब्यौरे नहीं पता हैं। यह अंतरराष्ट्रीय मूल्य निर्धारण से जुड़ा है या जेनेरिक दवाएं भी इसके दायरे में आएंगी, अभी सब अस्पष्ट है।’’
अगर ट्रम्प के आदेशों का दायरा प्रिस्क्रिप्शन या ब्रांडेड जेनेरिक दवाओं के मामले में आता है, तो भारत में सबसे ज्यादा नुकसान सन और बायोकॉन को होगा। उसके बाद सिप्ला, जाइडस लाइफ, ग्लेनमार्क और अरबिंदो का नंबर आएगा। उद्योग की अग्रणी कंपनी सन फार्मा का ब्रांडेड स्पेशियलिटी सेगमेंट पर खासा ध्यान है। इसके अलावा उसकी प्रमुख दवा लेक्सेलवी और इस साल लॉन्च होने वाले दो उत्पाद भी इसी श्रेणी में आते हैं। सन फार्मा के अलावा, बायोकॉन भी ब्रांडेड बायोसिमिलर में उच्च जोखिम के कारण प्रभावित हो सकती है।
सिप्ला की भी अमेरिकी ब्रांडेड जेनेरिक बाजार में अच्छी पकड़ है, जिसमें बड़ी कमाई लैनरियोटाइड (ट्यूमर की दवा) में होती है। जाइडस लाइफ भी ब्रांडेड उत्पादों में ही है, लेकिन उसमें जोखिम अपेक्षाकृत कम है।
ग्लेनमार्क ने अपने नेजल स्प्रे रयालट्रिस के जरिए अमेरिकी ब्रांडेड में मजबूत पकड़ बनाई हुई है। अरबिंदो को स्पेक्ट्रम फार्मा में विलय की वजह से न्यूनतम जोखिम है। डॉ रेड्डीज लैबोरेटरीज, मार्कसन्स फार्मा और ग्रैन्यूल्स फार्मा जैसी कंपनियों के लिए भी असर न्यूनतम माना जा रहा है। ये सभी ओवर द काउंटर (ओटीसी) जेनेरिक क्षेत्र में काम करती हैं। ओटीसी जेनेरिक सेगमेंट ऑफ पेटेंटेड दवाओं से भरा हुआ है, जिसका अर्थ है, होड़ की ज्यादा संभावना। इसमें अधिक कंपनियां अपनी दवाइयां उतारती हैं। इससे कीमतों में कमी व्यवसाय का अंग बन जाती है।
इसके अलावा, पेटेंट दवाओं की तुलना में जेनेरिक दवाएं पहले से ही भारी छूट पर बेची जा रही हैं, जिससे विश्लेषकों को उम्मीद है कि ट्रम्प की नीतियां बाजार के इस हिस्से को नहीं छूएंगी। नाम न छापने की शर्त पर एक भारतीय दवा कंपनी के सहयोगी ने आउटलुक बिजनेस को बताया कि भारतीय कंपनियां नई दवाइयों के बजाय आपूर्ति शृंखला का हिस्सा हैं, इसलिए यह देखना होगा कि क्या उन पर ट्रम्प की मूल्य निर्धारण कार्रवाई का असर होगा। नुवामा इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के फार्मा विश्लेषक श्रीकांत अकोलकर का मानना है कि ट्रम्प की सोच पूरी तरह लागू होती है, तो यह जेनेरिक (ब्रांडेड और अनब्रांडेड दोनों) और बायोसिमिलर सहित सभी फार्मा कंपनियों के लिए बुरा होगा। हालांकि, अकोलकर को लगता है कि ब्रांडेड पर असर ज्यादा होगा, क्योंकि जेनेरिक की कीमतें पहले से कम हैं।
इस वजह से फार्मा शेयरों में मंदी है। पिछले हफ्ते निफ्टी फार्मा इंडेक्स शुरुआती कारोबार में 2 फीसदी तक लुढ़क गया। उद्योग की अग्रणी कंपनी सन फार्मा को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। कंपनी के शेयर अमेरिकी ब्रांडेड जेनेरिक क्षेत्र में मजबूत उपस्थिति के कारण 7 फीसदी तक गिर गए। बायोकॉन, ल्यूपिन, ग्लेनमार्क और अजंता फार्मा जैसी अन्य दवा निर्माता कंपनियों के शेयरों में भी गिरावट आई। मैनकाइंड, अरबिंदो, डॉ रेड्डीज लैब्स, टोरेंट और जेबी केम जैसे अपेक्षाकृत सुरक्षित नामों में 2-4 फीसदी की वृद्धि हुई।
विश्लेषक, दवा निर्माता सभी दवा मूल्य निर्धारण योजनाओं का पूरा ब्यौरा जानने के लिए उत्सुक हैं ताकि भारतीय फार्मा पर असर का आकलन किया जा सके। इस बीच, शेयर बाजार में निवेशकों ने दांव उन फार्मा कंपनियों पर लगाना शुरू कर दिया है, जिनकी देसी बाजार में मजबूत मौजूदगी है।