अजीत झा
अपने रूढ़िवादी समर्थकों को खुश करने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने गर्भ-निरोधक कानून बदल दिया है। कंपनियां अब अपनी महिला कर्मचारियों को मुफ्त गर्भ-निरोधक मुहैया कराने को बाध्य नहीं होंगी। इस फैसले पर विवाद भी शुरू हो गया है। नागरिक संगठन सिविल लिबर्टीज यूनियन और नेशन वीमेन लॉ सेंटर ने इसे अदालत में चुनौती देने का ऐलान किया है।
कंपनियों के लिए कर्मचारियों को गर्भ-निरोधक मुहैया कराना पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अनिवार्य किया था। उस समय चर्च ने इस पर आपत्ति जताई थी। 'द लिटिल सिस्टर्स' नामक संगठन से जुड़ी ननों ने विरोध में प्रदर्शन किया था। चुनाव के दौरान ट्रंप ने इस कानून में बदलाव का वादा किया था। ताजा फैसले के बाद कंपनियां जन्म नियंत्रण के लिए मुहैया कराई जाने वाली गर्भनिरोधक गोलियों और दूसरे तरीकों से धार्मिक और नैतिक आधार पर छूट पा सकेंगी। इससे करीब छह करोड़ महिलाएं प्रभावित होंगी। धार्मिक संस्थानों को यह छूट पहले से थी।
कुछ अनुमानों के मुताबिक ओबामा ने जब ये नियम लागू किया था तब पहले साल में ही गर्भ निरोधकों पर होने वाले खर्च में 1.4 अरब डॉलर की बचत महिलाओं को हुई थी। हालांकि ट्रंप प्रशासन का दावा है कि इस बदलाव के बावजूद ज्यादातर महिलाओं की गर्भनिरोधक तक पहुंच बनी रहेगी। केवल एक लाख बीस हजार महिलाएं ही इस फैसले से प्रभावित होंगी। रिपब्लिकन नेता और सदन के अध्यक्ष पॉल रायन ने फैसले की तारीफ करते हुए इसे धार्मिक स्वतंत्रता के लिए ऐतिहासिक दिन बताया है।
बदलाव की घोषणा करते हुए स्वास्थ्य विभाग ने एक शोध का हवाला दिया है। इसके मुताबिक गर्भनिरोधक तक आसान पहुंच की वजह से लोग सेक्स के दौरान जोखिम उठा रहे हैं। दूसरी ओर, स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि गर्भनिरोधकों पर पैसा खर्च करने से बचने के लिए कंपनियां नए नियमों का फायदा उठाएंगी। इससे मरीजों के हित प्रभावित होंगे। वित्तीय नुकसान की भी आशंका है। राष्ट्रपति के विरोधी इसे महिला अधिकारों पर हमला भी बता रहे हैं। उल्लेखनीय ही कि अमेरिका में गर्भनिरोधकों को कई कारणों से इस्तेमाल किया जाता है। अनचाहा गर्भ रोकना इनमें से एक है। इनका इस्तेमाल एंडोमेट्रियोसिस या पोलिसिस्टिक ओवोरियन सिंड्रोम जैसी बीमारियों के इलाज के लिए भी किया जाता है।