ईरानी जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या के बाद विदेशी सेनाओं को वापस भेजने के इराकी संसद के फैसले पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भड़क उठे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि अगर इराक ने अमेरिकी सेनाओं को वापस जाने के लिए बाध्य किया तो हम उसके खिलाफ इतने कड़े प्रतिबंध लगाएंगे जिसका उसने अब तक कभी सामना नहीं किया होगा। ट्रंप ने ईरान को भी चेतावनी दी और कहा कि यदि इस्लामिक देश ने हमला किया तो हम उसका बहुत 'जोरदार पलटवार' करेंगे।
डोनाल्ड ट्रंप का बयान ईरान द्वारा यह घोषित किए जाने के कुछ घंटों बाद आया है कि वह 2015 के परमाणु समझौते में निहित सीमाओं का पालन नहीं करेगा। ट्रंप ने कहा, 'हमारा इराक में एक असाधारण और बेहद कीमती एयरबेस है। इसे बनाने में हमारा अरबो डालर खर्च हुआ है। हम उसे तब तक नहीं छोड़ने जा रहे हैं जब तक कि वे इस एयरबेस के बदले हमें पैसा नहीं दे देते हैं। यदि उन्होंने हमें यह हवाई अड्डा छोड़ने के लिए मजबूर किया तो हम उनके खिलाफ ऐसे कड़े प्रतिबंध लगाएंगे जिनका अब तक उन्होंने सामना नहीं किया गया होगा।' बता दें कि ट्रंप का इशारा बलाद सैन्य ठिकाने की ओर था जो उत्तरी बगदाद से 50 मील दूर है।
इससे पहले इराक की संसद ने विदेशी सेनाओं को वापस लौटने के विधयेक के पक्ष में वोट किया था। यही नहीं इराकी संसद ने कहा था कि वह अमेरिका के नेतृत्व वाले अंतरराष्ट्रीय गठबंधन से अलग होगा।
ईरान को धमकी
उधर, बगदाद में अमेरिकी दूतावास के पास लगातार दूसरे दिन रॉकेट हमले के बाद ट्रंप ने ईरान को एक बार फिर से धमकी दी। उन्होंने कहा कि अमेरिकी लोगों या ठिकानों पर किसी भी ईरानी हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा।
कल्चरल साइट्स पर क्या बोले ट्रंप?
ईरान के कल्चरल साइट्स पर हमले की धमकी को लेकर हो रही आलोचना पर ट्रंप ने कहा, 'उन्हें (ईरान) हमारे लोगों को मारने की अनुमति है। उन्हें हमारे लोगों को टार्चर करने की इजाजत है। उन्हें सड़क किनारे बम लगाने और हमारे लोगों को उड़ा देने की अनुमति है और हमें उनके कल्चरण साइट्स को छूने की अनुमति नहीं है? यह उस तरीके से काम नहीं करेगा।' बता दें कि शनिवार रात को डॉनल्ड ट्रंप ने चेतावनी दी थी कि अगर ईरान अमेरिकी जवानों या सम्पत्ति पर हमला करता है तो अमेरिका 52 ईरानी स्थलों को निशाना बनाएगा और उन पर ‘बहुत तेजी से और जोरदार हमला’ करेगा। ट्रंप ने अपने ट्वीट में कहा, '52 अंक उन लोगों की संख्या को दर्शाता है, जिन्हें एक साल से अधिक समय तक तेहरान में अमेरिकी दूतावास में 1979 में बंधक बनाकर रखा गया था।'