अमेरिकी सेना ने तालिबान कमांडर अख्तर मोहम्मद मंसूर पर हमला किया। अमेरिकी सेना दरअसल मंसूर के ग्रुप को ज्यादा से ज्यादा नुकसान पहुंचाना चाहती थी क्योंकि तालिबान का यह खेमा अफगानिस्तान में शांति प्रयासों को लगातार बाधित कर रहा था। पेंटागन के एक बड़े अधिकारी के अनुसार पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के अहमद वाल शहर में अमेरिका सेना के कई ड्रोन विमानों ने मंसूर के वाहन पर बमबारी की। इस अधिकारी का दावा है कि संभवतः हमले में मंसूर मारा गया और उसके साथ वाहन में सवार दूसरे आंतकी की भी मौत हो गई।
पेंटागन के प्रेस सचिव पीटर कुक ने इस हवाई हमले की घोषणा की। उन्होंने कहा कि मंसूर अमेरिका और अफगान सेनाओं के लिए खतरा बन गया था और वह लगातार अमेरिका द्वारा किए जा रहे शांति प्रयासों में बाधा डाल रहा था। कुक के अनुसार अफगान सरकार और तालिबान के बीच वह शांति वार्ता नहीं होने दे रहा था और तालिबान के दूसरे नेताओं को इस वार्ता में शामिल होने से रोक रहा था।
वैसे कमाल की बात है कि पिछले वर्ष दिसंबर में खुद तालिबान के सूत्रों के हवाले से यह खबर आई थी मंसूर की मौत हो गई है। तब बताया गया था कि चोटिल होने के कारण घावों के कारण उसकी मौत हुई है। हालांकि बाद में यह खबर झूठ साबित हुई।
अब अगर मंसूर की मौत की पुष्टि हो जाती है तो यह अफगानिस्तान में सरकारी सेनाओं के लिए एक महत्वपूर्ण बात होगी हालांकि अधिकारियों का कहना है पिछली गर्मियों में बड़े तालिबान नेता के रूप में उभरे मंसूर की मौत का देश में चल रहे संघर्ष पर क्या असर होगा यह बताना अभी जल्दबाजी होगी। दरअसर मंसूर तब लोगों के बीच तालिबान नेता के रूप में उभरा था जब यह खबर फैली कि अफगानिस्तान में तालिबान का शीर्ष नेता मुल्ला मोहम्मद उमर की 2013 में चुपचाप मौत् हो गई। पेंटागन के एक सूत्र के अनुसार राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस ऑपरेशन की इजाजत दी थी।
गौरतलब है कि अमेरिका अब पूरी तरह अफगानिस्तान से बाहर निकलना चाहता है। अमेरिका में वर्ल्ड ट्रेड टावर पर हमले के बाद अफगानिस्तान में तालिबान शासन को उखाड़ फेंकने के बाद अमेरिका को लंबे समय तक वहां रहना पड़ा। वर्ष 2014 के अंत तक वहां से अमेरिका ने अपने अधिकांश सैन्य बल को वापस बुला लिया मगर अब भी नाटो के करीब 13000 सैनिक तथा अमेरिकी सैनिकों की एक बड़ संख्या वहां मौजूद है और अफगानिस्तान में शांति स्थापना का प्रयास कर रही है। अमेरिका अब तालिबान को भी इस प्रक्रिया में शामिल करना चाहता है क्योंकि देश के एक बड़े हिस्से में आज भी तालिबान का प्रभाव मौजूद है।