वाशिंगटन। अमेरिका के प्रभावशाली सांसदों ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से अनुरोध किया है कि आम चुनाव खत्म होने तक भारत का प्रिफरेंशियल ट्रेड स्टेटस खत्म करने का फैसला टाल दिया जाए। यह मांग उठाने वाले सांसदों में डेमोक्रेट की राष्ट्रपति उम्मीदवार तुलसी गैबार्ड भी शामिल हैं।
ट्रंप ने इस महीने अमेरिकी कांग्रेस को बताया था कि वह भारत का प्रिफरेंशियल स्टेटस खत्म करेंगे क्योंकि यह सुविधा ऐसे विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था को समर्थन देने के लिए दी जाती है जो अभी तक अल्प विकसित हैं। जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रिफरेंसेज (जीएसपी) प्रोग्राम के तहत अमेरिका ऐसे देशों को शुल्क मुक्त आयात की सुविधा देता है। इस प्रोग्राम के तहत ऑटो कंपोनेंट व टेक्सटाइल मेटीरियल समेत करीब 2000 उत्पादों का अमेरिका में शुल्क मुक्त आयात हो सकता है। यह सुविधा उन्हीं देशों को मिलती है जो कांग्रेस द्वारा तय शर्तें पूरी करते हैं। कांग्रेस की रिसर्च सर्विस की जनवरी में जारी रिपोर्ट के अनुसार इस प्रोग्राम में 2017 के दौरान भारत सबसे बड़ा लाभार्थी रहा। भारत से 5.7 अरब डॉलर की वस्तुओं का अमेरिका में शुल्क आयात किया गया।
भारत मूल की पहली हिंदू सांसद गैबार्ड ने यूएस-इंडिया पार्टनरशिपः इकोनॉमिक, इमीग्रेशन एंड स्ट्रैटजिक इश्यूज पर आयोजित एक कांफ्रेस में कहा कि हमें उम्मीद है कि भारत का दर्जा खत्म करने का फैसला लोकसभा चुनाव होने तक फिलहाल टाला जा सकता है ताकि इस बारे में हम गैर राजनीतिक वार्ता कर सकें। उन्होंने कहा कि कारोबार के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय भागीदारी में चुनौतियां सामने आ रही हैं।
गैबार्ड ने कहा कि हमें कारोबारी मतभेदों को शांति के साथ निपटाना होगा। हर देश अपने हित में वकालत करता है। लेकिन हमारे पास तमाम क्षेत्रों में अवसर हैं। जीसपी की सुविधा खत्म करने की घोषणा करने के साथ हमें मतभेद दूर करके दूसरे क्षेत्रों में अवसरों पर बात करनी चाहिए। कांग्रेस में भारत समर्थक रिपब्लिकन सांसद जॉर्ज होल्डिंग ने भी गैबार्ड से सहमति जताते हुए कहा कि भारत जीएसपी में तीन दशकों से है। इस प्रोग्राम के बारे में कोई फैसला करने का यह सही समय नहीं है। हालांकि उन्होंने कहा कि अब भारत अल्प विकसित देश नहीं रह गया है। तीन दशकों में काफी कुछ बदल चुका है। यूएस-इंडिया फ्रेंडशिप काउंसिल के प्रमुख स्वदेश चटर्जी ने कहा कि भारत के लिए जीएसपी खत्म करने से उसका 5.6 अरब डॉलर का निर्यात प्रभावित होगा। यह भारत-अमेरिका के कुल कारोबार का दस फीसद से ज्यादा है। दस फीसद निर्यात प्रभावित होने से निश्चित ही दोनों देशों के बीच समस्या पैदा होगी।