प्रधानमंत्री के विशेष सहायक तारिक फातमी ने डॉन न्यूज से कहा कि सिंधु नदी जल समझौते के नियमों में किसी भी बदलाव को पाकिस्तान स्वीकार नहीं करेगा। हमारा रुख समझौते के सिद्धांतों पर आधारित है। इस समझौते का ईमानदारी से सम्मान किया जाना चाहिए। सिंधु नदी जल समझौते के क्रियान्वयन में पाकिस्तान के साथ मतभेदों को मिलकर दूर करने पर भारत के जोर देने के बाद उनकी यह टिप्पणी आई है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने गुरुवार को कहा था कि इच्छाशक्ति हो तो ऐसी कोई वजह नहीं है कि किशनगंगा जैसी परियोजनाओं की तकनीकी डिजाइन के मापदंडों पर पाकिस्तान की आपत्तियों का दोनों पक्षों के विशेषज्ञ समाधान ना निकाला जा सके।
स्वरूप के मुताबिक भारत का मानना है कि इस तरह के विचार-विमर्श को पर्याप्त समय दिया जाना चाहिए। डॉन की खबर के मुताबिक भारत द्वारा और समय दिए जाने के अनुरोध से पाकिस्तान के कान खड़े हो गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि इस्लामाबाद का कहना है कि भारत इस रणनीति को पहले भी अपना चुका है। विवाद के दौरान परियोजना को पूरा कर लो और फिर यह दबाव बनाओ की चूंकि परियोजना पहले ही पूरी हो चुकी है इसलिए इसमें कोई बदलाव नहीं किया जा सकता।
वर्ष1950 में हुए इस समझौते में सिंधु नदी घाटी में स्थित तीन पूर्वी नदियों ब्यास, रावी और सतलुज का नियंत्रण भारत को दिया गया है जबकि तीन पश्चिमी नदियों सिंधु, चेनाब और झेलम पाकिस्तान को मिलीं।
आईडब्ल्यूटी के तहत स्थायी सिंधु आयोग की व्यवस्था बनाई गई जिसमें दोनों देशों का एक-एक आयुक्त है। वर्तमान विवाद किशनगंगा (330 मेगावॉट) और राटले (850 मेगावॉट) जलविद्युत संयंत्रों को लेकर है। भारत किशनगंगा और चेनाब नदियों पर संयंत्रों का निर्माण कर रहा है जिसे पाकिस्तान आईडब्ल्यूटी का उल्लंघन बताता है।
पिछले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान की ओर होने वाले जल बहाव को रोकने की धमकी दी थी जिसके बाद जल विवाद को ले कर तनाव और बढ़ गया था। सिंधु नदी जल समझौते में प्रस्तावित प्रक्रिया को दोनों पक्ष पहले ही पूरा कर चुके हैं। आयोग से इसे विवाद घोषित किए जाने के बाद ही दोनों ने विश्व बैंक का दरवाजा खटखटाया था। एक विशेषज्ञ ने कहा, पहले से चूक चुकी प्रक्रिया में इसे फिर से घसीटने का कोई मतलब नहीं है।
डॉन न्यूज के मुताबिक, पाकिस्तान इसमें पंचाट का दखल चाहता है क्योंकि विवाद के तकनीकी और कानूनी पहलुओं पर विचार करने का अधिकार केवल उसी अदालत को है। निष्पक्ष विशेषज्ञ केवल तकनीकी पहलुओं पर ही विचार कर सकेंगे।
पाकिस्तान का कहना है कि भारत की दोनों परियोजनाओं की डिजाइन समझौते के कानूनी और तकनीकी पहलुओं का उल्लंघन करती है। हालांकि भारत ने मध्यस्थता अदालत के गठन के पाकिस्तान के प्रयासों का विरोध किया है। (एजेंसी)