डब्लूएचओ ने पेरिस में कहा है कि इबोला का प्रोटोटाइप टीका इस आत्मघाती बीमारी फैलाने वाले वायरस से लड़ने में शत-प्रतिशत सक्षम साबित हो सकता है।
एक प्रमुख क्लीनिकल परीक्षण में पिछले साल गिनी के 6,000 लोगों को इबोला की घातक महामारी के अंतिम चरण में यह परीक्षण टीका दिया गया था और इनमें से एक को भी यह बीमारी नहीं हुई।
चिकित्सकीय पत्रिाका द लैंसेट में अनुसंधानकर्ताओं ने बताया है कि स्वयंसेवकों के एक नियंत्राण समूह का टीकाकरण नहीं किया गया जिस कारण इनमें से 23 लोगों को इबोला हो गया।
डब्ल्यूएचओ के सहायक महानिदेशक और अध्ययन की प्रमुख लेखक मैरी-पॉले कैनी ने कहा, अगर हम शून्य की तुलना 23 से करें तो हमारी यह सलाह है कि यह टीका काफी प्रभावशाली है और इसके नतीजे शत-प्रतिशत भी हो सकते हैं।
दक्षिणी गिनी में वर्ष 2014 की शुरुआत में इस वायरस के गिने-चुने मामलों ने तेजी से एक व्यापक बीमारी का रूप ले लिया था। इसके बाद अगले दो साल में गिनी, लाइबेरिया और सिएरा लियोन में 28,000 लोग इसकी चपेट में आए जिनमें से 11,300 लोगों की मौत हो गई थी। एक सत्य यह भी है कि संबधित देशों से आने-जाने का संबंध होने के नाते भारत पर भी इसका खतरा मंडराने लगा था।