दक्षिण चीन सागर के मुद्दे पर भारत के सैद्धांतिक रुख को रेखांकित करते हुए प्रधानमंत्री ने 11वें पूर्व एशिया सम्मेलन (ईएएस) में अपने संबोधन में कहा कि मुद्दे के हल के लिए ताकत की धमकी या इस्तेमाल से मामला जटिल हो जाएगा और शांति एवं स्थायित्व पर असर पड़ेगा। इसके पहले दिन में, मोदी की लाओस के प्रधानमंत्री थोंगलोउन सिसोउलिथ के साथ द्विपक्षीय वार्ता के दौरान यह मुद्दा उठा था और दोनों देशों का दक्षिण चीन सागर पर समान रूख था।
मोदी ने कहा कि दक्षिण चीन सागर में आवागमन के समुद्री लेन वैश्विक व्यापार के मुख्य मार्ग हैं तथा विवादों के समाधान के लिए ताकत की धमकी या इस्तेमाल से मामला बिगड़ेगा एवं शांति एवं स्थायित्व पर असर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश के साथ समुद्री सीमा के समाधान में भारत का अपना इतिहास उदाहरण के रूप में काम आ सकता है।
मोदी का बयान ऐसे समय में आया है, जब विवादास्पद दक्षिण चीन सागर में चीन की जोर अजमाइश चल रही है और क्षेत्रीय चुनौतियां उभर रही हैं। चीन दक्षिण चीन सागर में क्षेत्रीय स्वामित्व को लेकर फिलीपिन, वियतनाम, ताइवान, मलेशिया और ब्रूनेई के साथ विवाद में उलझा हुआ है। यह एक ऐसा जलमार्ग है, जहां से भारत का आधा व्यापार होता है। पहले भी दक्षिण चीन सागर में वियतनाम के न्यौते पर गए भारत के तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग द्वारा उत्खनन पर चीन एतराज कर चुका है। दक्षिण चीन सागर में तेल एवं गैस के भंडार हैं।
उधर, लाओस की दो दिवसीय यात्रा के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वदेश रवाना हो गये। इस दौरान उन्होंने आसियान-भारत और पूर्वी एशियाई सम्मेलनों में हिस्सा लिया। इसके अलावा प्रधानमंत्री अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा समेत पांच देशों के नेताओं के साथ द्विपक्षीय बैठकों में शामिल हुए। इस यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री ने जापान, दक्षिण कोरिया, लाओस, म्यांमा के नेताओं के साथ द्विपक्षीय वार्ता की और अपने चीनी और रूसी समकक्षों के साथ अलग से चर्चा की।