रूहानी को गुरुवार को उनके दूसरे कार्यकाल के लिए ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खमेनी ने शपथ दिलाई थी। लेकिन संसद में शनिवार का समारोह बहुत ही शानदार रहा, समारोह में यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख फेडेरिका मोगरिनी भी शामिल थे, मोगरिनी ने लगातार ईरान के साथ अपने संबंधों को जारी रखा है, अमेरिका के इस इस्लामी गणराज्य को अलग-थलग रखने के दबाव के बावजूद भी। इस मौके पर ईरान के कुछ पुराने मित्र भी तेहरान आए, जिनमें ज़िम्बाब्वे के राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे भी शामिल थे। हालांकि कतर के अमीर जो ईरान के साथ अपने संबंधो को लेकर खाड़ी के अपने सहयोगियों के साथ झगड़ा भी कर चुके हैं इस मौके पर नहीं आये। जबकि वह 2013 में रूहानी के आखिरी उद्धाटन में मौजूद रहें थे।
कैबिनेट में कौन-कौन रहेगा
इस वक्त ईरानियों का ध्यान इस बात पर है कि रूहानी की नई कैबिनेट में कौन-कौन शामिल होगा। संकेतों के आधार पर ही उनकी इस बात पर आलोचनाएं हो रही हैं कि एक बार फिर से उनकी कैबिनेट में महिलाएं नहीं होगी। साथ ही उनके सुधारवादी सहयोगियों को भी बमुश्किल ही प्रतिनिधित्व मिलेगा। गौरतलब है कि उनकी पिछली सरकार में उपाध्यक्षों के बड़े दल में तीन महिलाएं थीं लेकिन कोई भी महिला मंत्री नहीं थी। महिलाओं को मंत्री पद देने के लिए संसद के अनुमोदन की आवश्यकता होगी। सुधारवादी नेशनल कॉन्फिडेंस पार्टी के रॉसल मॉन्टजैनिआ ने कहा, "यह सुधारवादी ही थे जिन्होंने उन्हें 2013 और 2017 के चुनावों में उन्हें जीताया, इसलिए उन्हें इन लोगों की बात सुननी चाहिए"। रूहानी ने मई में राष्ट्रपति चुनाव के दौरान कट्टरपंथी मौलवी इब्राहिम रासी पर एक शानदार जीत हासिल की है। सुधारवादी पीपुल्स यूनिटी पार्टी के प्रमुख अली शोकूरिराद ने कहा, "रूहानी ने लोगों में बहुत उम्मीदें जगाई थी लेकिन अब लग रहा है कि वह अपने वादों से पीछे हट रहे हैं। महिलाओं की अनुपस्थिति के पीछे धार्मिक रूढ़िवादियों का ही दबाव था। रूहानी अपने काम को और अधिक जटिल नहीं बनाना चाहते हैं। हंगामे के बावजूद, फेरबदल में कई बड़े नामों जैसे कि विदेश मंत्री मोहम्मद जावद जारिफ और तेल मंत्री बीजन नमदार जांगनेह को छूने की उम्मीद नहीं है। ईरान के विश्लेषक हेनरी स्मिथ ने कहा कि बड़े मंत्रियों के बने रहने की ही संभावना है।
संसद के अध्यक्ष ने कहा कि रूहानी को अपने लोगों की नियुक्ति को संसद से स्वीकृति दिलाने में अभी वक्त लगेगा, अभी तो वह शक्ति केंद्रों के साथ ही परामर्श कर रहे हैं। साथ ही उनका कहना है कि मुझे नहीं लगता कि आर्थिक या सामाजिक नीतियों में कोई महत्वपूर्ण बदलाव दिखेंगे। चुनाव के बाद से ही सुधारवादियों ने उनके लिए परेशानियां पैदा करनी शुरू कर दी थी, शायद वे कट्टरपंथियों की बढ़ती ताकत से चिंतित हैं। रूहानी क्रांतिकारी सैनिकों को पूरी तरह से अर्थव्यवस्था से बाहर नहीं करना चाहते हैं। वह केवल विदेशी निवेश और नई तकनीक को ईरान लाना चाहते हैं। हालांकि 2015 के परमाणु समझौते के बाद निवेश आने की शुरुआत हो गई है, पिछले दिनों फ्रांस और चीन के साथ अरबों डॉलर के गैस सौदे हुए हैं। हालांकि अमेरिका ने इस हफ्ते ही ईरान पर और अधिक प्रतिबंध लगाएं है। स्मिथ कहतें है कि समस्या यह है कि ईरान को अमेरिका की इन चालों पर प्रतिक्रिया देने की जरूरत महसूस होती है, लेकिन ये प्रतिक्रियाएं अमेरिका को ही ज्यादा ईंधन देती है। इसलिए बिना मतलब की प्रतिक्रियाएं देना जरूरी नहीं है, लेकिन राजनीतिक करना भी तो काफी चुनौतिपूर्ण होता है।