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जून तक ग्रे लिस्ट में बना रहेगा पाकिस्तान, एफएटीएफ की बैठक में फैसला

फाइनैंशल ऐक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) ने टेरर फंडिंग पर काबू पाने में नाकामी के कारण पाकिस्तान को जून तक...
जून तक ग्रे लिस्ट में बना रहेगा पाकिस्तान, एफएटीएफ की बैठक में फैसला

फाइनैंशल ऐक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) ने टेरर फंडिंग पर काबू पाने में नाकामी के कारण पाकिस्तान को जून तक ग्रे लिस्ट में ही रखने का फैसला किया है। साथ ही पाकिस्तान को चेतावनी दी है कि अगर वह आतंकवाद समेत 27 सूत्री ऐक्शन प्लान को पूरा नहीं करता है तो उसे 'काली सूची' में डाल दिया जाएगा।

यह फैसला एफएटीएफ के अंतरराष्ट्रीय सहयोग समीक्षा समूह (आईसीआरजी) की पेरिस के पूर्ण सत्र की बैठक में लिया गया। बैठक में राजनायिक और एफएटीएफ के सदस्यों ने इस बात पर ध्यान देने को कहा है कि किस तरह पाकिस्तान एफएटीएफ की तकनीकी प्रक्रिया का राजनीतिकरण करने की कोशिश कर रहा है। इसके अलावा एफएटीएफ ने अपने सदस्यों से पाकिस्तान के तमाम कारोबारी रिश्ते और वित्तीय लेन-देन पर नजर रखने को भी कहा है।

आठ क्षेत्रों पर कार्रवाई करनी होगी

पाकिस्तान को अब जून में ग्रे लिस्ट से बचने के लिए आठ क्षेत्रों पर कार्रवाई करने के लिए कहा गया है। इसके लिए उसे सभी 1267 वित्तीय संस्थानों और 1373 आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करनी होगी। इस्लामाबाद को इन आंतकियों और संगठनों को टेरर फंड जुटाने से रोकना होगा साथ ही उन्हें ऐसा करने से रोकने के लिए उनकी संपत्तियों को भी जब्त करना होगा।

पाकिस्तान ने ग्रे लिस्ट से निकलने की थी पूरी कोशिश

बता दें कि पाकिस्तान की इमरान खान सरकार ने वादा किया था कि वह फरवरी में एफएटीएफ की 'ग्रे लिस्ट' से बाहर निकल जाएगा। मलयेशिया और तुर्की की मदद से पाकिस्तान 'काली सूची' में जाने से तो बच गया, लेकिन उस ग्रे लिस्ट से बचने के लिए जितने देशों के समर्थन की दरकार थी, वो उसे नहीं मिला। पाकिस्तान ने 'ग्रे लिस्ट' से बचने के लिए पूरी कोशिश की और कई देशों ने उसके समर्थन में बोला भी। लेकिन तकनीकी ग्राउंड और सबूतों ने उसकी कोशिश को नाकाम कर दिया और एफएटीएफ ने पाया कि पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट से बाहर नहीं रखा जा सकता है।

जून 2018 में पाकिस्तान को ‘ग्रे लिस्ट’ में डाल दिया था। एफएटीएफ पेरिस स्थित अंतर-सरकारी संस्था है। इसका काम गैर-कानूनी आर्थिक मदद को रोकने के लिए नियम बनाना है। एफएटीएफ की ग्रे या काली सूची में डाले जाने पर देश को अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से कर्ज मिलने में काफी कठिनाई आती है।

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