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ममता की मूरत मदर टेरेसा को अब दुनिया के हर चर्च में पूजा जाएगा

पोप फ्रांसिस ने मदर टेरेसा को संत घोषित करते हुए उन्हें ममता की मूरत और दीन दुखियों का प्रबल हिमायती बताया। पोप ने कहा कि भले ही हमें उन्हें संत टेरेसा कहने में कुछ मुश्किल रही हो, लेकिन उनकी पवित्रता हमारे इतने करीब, इतनी करूणामय और सार्थक है कि हम स्वभाविक रूप से उन्हें मदर कहना जारी रखेंगे।
ममता की मूरत मदर टेरेसा को अब दुनिया के हर चर्च में पूजा जाएगा

पोप ने कहा कि उन्होंने इस दुनिया की शक्तियों के समक्ष अपनी आवाज उठाई, ताकि वे अपने उन अपराधों के लिए दोष को स्वीकार कर सकें, जो गरीबी के जरिए उन्होंने पैदा की है। पोप फ्रांसिस ने वेटिकन के सेंट पीटर्स स्कवायर में एक लाख श्रद्धालुओं और 13 राष्ट्राध्यक्षों और सैकड़ों की संख्या में ननों की मौजूदगी में उन्हें संत की उपाधि दी। इस मौके पर स्पेन की रानी सोफिया और 1500 बेघर लोग भी मौजूद थे। पोप ने भारतीय महानगर की झुग्गी बस्तियों में टेरेसा के कार्य को दीन दुखियों के पास ईश्वर के मौजूद होने के साक्ष्य के रूप में जिक्र किया।

टेरेसा की सराहना करते हुए पोप ने कहा, मदर टेरेसा यह कहना पसंद करती, शायद मैं उनकी भाषा नहीं बोलती लेकिन मैं मुस्कुरा सकती हूं। उन्होंने कहा, उनकी मुस्कुराहट को हमें दिलों में संजोए रखने दीजिए और उन्हें देने दीजिए जिनसे अपने सफर में मिलेंगे, खास कर दीन दुखियों से। उन्होंने लैटिन भाषा में कहा कि वह कलकत्ता (कोलकाता) की टेरेसा को संत घोषित करते हैं और उन्हें संतों की सूची में शामिल करते हैं और अब से वह सभी चर्चों के लिये श्रद्धेय हैं। कल मदर टेरेसा की 19वीं बरसी थी। 1997 में कोलकाता में उनका निधन हो गया था। 20 वीं सदी की महानतम हस्तियों में शामिल मदर टेरेसा करीब चार दशकों तक कोलकाता में रहीं और वहां बीमार और दीन दुखियों की सेवा में जीवन गुजार दिया। इस कार्यक्रम को शांतिपूर्ण बनाने के लिए करीब 3,000 अधिकारियों को तैनात किया गया था। एकत्र भीड़ में शामिल रहे करीब 1,500 गरीब लोगों की देखभाल टेरेसा की मिशनरी आफ चैरिटी की इतालवी शाखाएं कर रही हैं।

 संत की उपाधि दिए जाने के बाद फ्रांसिस के अतिथियों के लिए वेटिकन में पिज्जा भोजन कराया गया जिसे 250 सिस्टर और 50 पुरूष सदस्यों ने परोसा। टेरेसा युवावस्था में भारत में रहीं, इस अवधि के दौरान पहले उन्होंने शिक्षण किया और फिर दीन दुखियों की सेवा की। दीन दुखियों की सेवा करने को लेकर वह धरती पर सबसे मशहूर महिला बन गईं।

टेरेसा का जन्म स्कोप्जे (जो कभी ऑटोमन साम्राज्य का हिस्सा रहा है और अब मकदूनिया की राजधानी है) में हुआ था। उनके माता-पिता कोसोवो अल्बानियाई मूल के थे। उन्हें 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्हें ईसाई मूल्यों के लिए आत्म बलिदान और परमार्थ सेवा के पथ प्रदर्शक के रूप में दुनिया भर में जाना जाता है। हालांकि, धर्मनिरपेक्ष आलोचकों का उन पर आरोप है कि उन्होंने दीन दुखियों की सेवा करने से कहीं अधिक ईसाई धर्म के प्रचार पर ध्यान दिया। उनके निधन के बाद भी उनकी विरासत को लेकर बहस जारी है। अध्ययन करने वाले उनके मिशन के संचालन में अनियमिता होने की बात उजागर कर रहे हैं और रोगियों की अनदेखी करने, अस्वास्थ्यकर स्थितियां तथा उनके मिशन में धर्मांतरण किए जाने के साक्ष्य पेश कर रहे हैं। वहीं, वेटिकन में लेकिन कोई संशय नहीं था क्योंकि क्योंकि पोप एक ऐसी महिला को श्रद्धांजलि अर्पित करने वाले थे जिन्होंने गरीबों के प्रति उनके सपनों को साकार किया था।

टेरेसा को इस मुकाम तक पहुंचाने में पूर्व पोप जान पॉल द्वितीय का काफी योगदान रहा है। वह टेरेसा के मित्र थे और उन्होंने साल 2003 में टेरेसा को संत की उपाधि हासिल करने के प्रथम चरण को पार करने में मदद की थी। गौरतलब है कि संत की उपाधि हासिल करने के लिए दो चमत्कारों को वेटिकन की मंजूरी मिलनी जरूरी है। टेरेसा के प्रथम चमत्कार को 2002 में मंजूरी मिली थी। दरअसल, मोनिका बेसरा नाम की एक भारतीय महिला ने कहा था कि टेरेसा के निधन के साल बाद उनका गर्भाशय का कैंसर ठीक हो गया। उनके दूसरे चमत्कार को पिछले साल मंजूरी मिली, जब ब्राजीलियाई नागरिक मारसीलो हद्दाद एंडरीनो ने कहा कि उनकी पत्नी द्वारा टेरेसा से प्रार्थना करने के चलते उसका ब्रेन ट्यूमर खत्म हो गया।

मदर टेरेसा के लिए ननों ने भी देखा टीवी

जीवन भर टीवी सेटों से दूर रहने वाली मिशनरीज आफ चैरिटी की सैंकड़ों ननों ने आज उस समय अपवादस्वरूप टीवी देखा जब मदर टेरेसा को संत घोषित किए जाने के कार्यक्रम का सीधा प्रसारण हो रहा था। कोलकाता में संस्था के मुख्यालय मदर हाउस में तीन विशाल स्क्रीन लगाए गए थे ताकि लोग एक स्थान पर एकत्रा होकर कार्यक्रम का प्रसारण देख सकें। मदर हाउस में एक नन ने पीटीआई से कहा, हम यहां टीवी या मोबाइल फोन नहीं रखते। जब हमें आंगुतकों को कोई डाक्यूमेंट्री दिखानी होती है तो स्क्रीन लगायी जाती है। कोलकाता नगर निगम ने आम लोगों के लिए बाहर पंडाल में चौथा स्क्रीन लगाया था। ननों ने कहा कि यह दुर्लभ मौकों में से एक है जब उन लोगों ने टीवी कार्यक्रम देखा। उन्होंने कहा कि हमारा ध्यान निर्धनों की सेवा पर रहता है और वे टीवी आदि नहीं देखतीं। लेकिन यह खास मौका था और हम सब काफी खुश थे। वह हमारी मां हैं और इसलिए हमें इसे देखना था। उनमें से कोई भी मोबाइल फोन का उपयोग नहीं करतीं। एक नन ने कहा कि हमें फोन और टीवी की जरूरत नहीं है। हमारे यहां लैंडलाइन फोन है और वह पर्याप्त है।

 

1,500 बेघर लोगों को पिज्जा भोज दिया

मदर टेरेसा के पद्चिन्हों का अनुसरण करते हुए पोप फ्रांसिस ने करीब1,500 लोगों को पिज्जा भोज दिया। टेरेसा को संत घोषित किए जाने के कार्यक्रम से पहले पोप ने इन लोगों के लिए दोपहर के भोज का आयोजन किया। इन लोगों में अधिकतर वे लोग थे जो मदर टेरेसा के सिस्टर्स ऑफ चैरिटी द्वारा संचालित आश्रय स्थलों में रहते हैं। नियोपोलिटन पिज्जा बनाने वाले ने पिज्जा तैयार करने में 20 लोगों की सेवा ली और तीन पिज्जा ओवेन भी लिए थे। ये पिज्जा सिस्टर्स ऑफ चैरिटी से जुड़ी करीब 250 सिस्टर्स और पादरियों को भी परोसे जाएंगे।

मुंबई में कैथोलिक चर्च का नाम अब सेंट मदर टेरेसा चर्च

मदर टेरेसा को संत घोषित किए जाने के बीच उन्हें समर्पित एक कैथोलिक चर्च का नाम बदल कर आज सेंट मदर टेरेसा चर्च कर दिया गया वहीं खुशी के इस माहौल में पूरे महाराष्ट्र में प्रार्थनाएं आयोजित की गयीं। पोप फ्रांसिस ने आज वैटिकन में मदर टेरेसा को संत घोषित किया। इस खुशी में मुंबई, ठाणे और पालघर जिलों के चर्चों में समारोहों का आयोजन किया गया। मुंबई से करीब 60 किलोमीटर दूर स्थित विरार के मदर टेरेसा चर्च का नाम बदलकर सेंट मदर टेरेसा चर्च कर दिया गया। इस मौके पर आयोजित समारोह ने अप्रैल 1986 की उनकी विरार यात्रा की यादों को ताजा कर दिया।

मदर टेरेसा को संत घोषित किए जाने की खुशी में राज्य के विभिन्न चर्चों में विशेष समारोह आयोजित किए जाने की खबरें हैं। पड़ोसी राज्य गोवा में भी विभिन्न चर्चों और चैपल में मदर टेरेसा के सम्मान में विशेष समारोह आयोजित किए गए। गोवा और दमन के आर्कबिशप रेव फादर फिलिप नेरी फेरो अभी वैटिकन में हैं। उन्होंने एक परिपत्र जारी कर मदर टेरेसा के सम्मान में समारोह आयोजित करने को कहा है।

 मदर टेरेसा को संत की उपाधि गौरव का क्षण : मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि मदर टेरेसा को संत की उपाधि से विभूषित किया जाना एक यादगार और गौरवपूर्ण क्षण है। जी-20 शिखर-सम्मेलन में भाग लेने के लिए पूर्वी चीनी शहर की यात्रा पर आये मोदी ने एक ट्वीट में कहा, मदर टेरेसा को संत की उपाधि दिया जाना यादगार और गौरवपूर्ण क्षण है।

 कार्यक्रम में शामिल हुईं सुषमा-ममता

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने सेंट पीटर्स स्क्वायर में मदर टेरेसा को संत की उपाधि प्रदान किए जाने के कार्यक्रम में भारत का प्रतिनिधित्व किया। सुषमा दो राज्य स्तरीय प्रतिनिधिमंडलों सहित 12 अन्य लोगों के साथ यहां पहुंचीं। पश्चिम बंगाल के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व ममता बनर्जी और दिल्ली के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व अरविंद केजरीवाल ने किया। विदेश मंत्री के साथ खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री हरसिमरत कौर बादल, लोकसभा सदस्य प्रोफेसर केवी थॉमस, जोस के. मणि, एंटो एंथनी और कोनराड के शर्मा तथा गोवा के उप मुख्यमंत्री फ्रांसिस डिसूजा भी वेटिकन पहुंचे।

 डाक टिकट जारी

मदर टेरेसा को औपचारिक रूप से संत घोषित किए जाने की खुशी में भारतीय डाक ने उनपर स्मारक डाक टिकट जारी की। सरकारी विग्यप्ति के अनुसार केन्द्रीय संचार राज्यमंत्री मनोज सिन्हा ने डिवाइन चाइल्ड हाई स्कूल में आयोजित एक समारोह में डाक टिकट जारी किया।

 भुवनेश्वर में मदर टेरेसा के नाम पर सड़क का नाम

भुवेनश्वर में एक महत्वपूर्ण सड़क का नाम मदर टेरेसा के नाम पर रखा गया है। संयोग से यह फैसला वेटिकन में मदर टेरेसा को संत की उपाधि दिए जाने के समारोह के साथ हुआ। सत्यनगर और कटक-पुरी राजमार्ग को जोड़ने वाले मार्ग का नाम टेरेसा के नाम पर रखते हुए मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने कहा कि यह मार्ग संत मदर टेरेसा मार्ग के नाम से जाना जाएगा। पटनायक ने कहा कि वह मदर टेरेसा को संत की उपाधि दिये जाने पर दिल से श्रद्धांजलि देते हैं। वह 1929 में भारत आईं और इस देश को अपना घर बनाकर गरीबों और वंचितों की सेवा की।यह फैसला ओडिशा कैथोलिक बिशप्स काउंसिल के चेयरमैन आर्कबिशप जॉन बारवा के आग्रह पर किया गया।

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