अमेरिका पिछले कुछ दिनों से भारत को आंख दिखा रहा है। इसकी वजह से भारत के अन्य देशों से संबंध भी प्रभावित हो रहे हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच अब तक संबंध दोस्ताना रहे हैं लेकिन लगता है अब रिश्तों में कुछ खटास आई है। अमेरिका कभी रूस के साथ भारत के विमान सौदे पर आपत्ति जताता है तो कभी भारत की इलेक्ट्रॉनिक कंपनियों को चेतावनी देता है। अमेरिकी हस्तक्षेप की वजह से ही ईरान के साथ व्यापार को लेकर भारत ने अपने कदम पीछे खींच लिए थे, जिससे लगता है कि कई मामलों में मोदी सरकार ट्रंप प्रशासन के सामने झुक रही है। ऐसे ही तीन मामलों पर हम नजर डालेंगे-
हुवावे से बिजनेस न करें भारतीय कंपनियां
ताजा मामले में अमेरिका ने कहा है कि अगर कोई भारतीय कंपनी हुवावे या उसकी सहयोगी कंपनियों को अमेरिका में बने पार्ट्स या प्रॉडक्ट्स सप्लाई करती है तो उसके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। इसे भारत पर चाइनीज टेलीकॉम इक्विपमेंट कंपनी के खिलाफ कार्रवाई के लिए दबाव बनाने की पहल माना जा रहा है। अमेरिकी सरकार का पत्र मिलने के बाद विदेश मंत्रालय ने हुवावे पर लगे अमेरिकी प्रतिबंधों के भारतीय कंपनियों पर पड़ने वाले असर पर डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्युनिकेशंस, नीति आयोग, मिनिस्ट्री ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स, मिनिस्ट्री ऑफ कॉमर्स और प्रिंसिपल साइंटिफिक एडवाइजर की राय मांगी है।
इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक, एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘विदेश मंत्रालय की तरफ से तीन काम करने के लिए कहा गया है- हुवावे को अमेरिका में बने सॉफ्टवेयर/इक्विपमेंट मुहैया कराने वाली इंडियन कंपनियों के खिलाफ उसकी तरफ से प्रतिबंध लगाए जाने की संभावना सहित उसकी तरफ से मुहैया कराई सूचना की जांच कराई जाए, प्राग में हालिया 5जी सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस की सिफारिशों पर राय मुहैया कराई जाए और पूरे मामले में राय दी जाए।'
हालांकि जिस क्लॉज के जरिए भारतीय कंपनियों को हुवावे या उसकी सहयोगी कंपनियों को अमेरिकी सॉफ्टवेयर सप्लाई करने पर कार्रवाई की चेतावनी दी जा रही है, उससे हालात बेकाबू हो सकते हैं। सूत्र ने कहा, 'सबसे ज्यादा 5जी पेटेंट्स हुवावे के पास हैं। उसे इस टेक्नोलॉजी में बढ़त हासिल है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि अगर हम अपनी कंपनियों हुवावे के इक्विपमेंट यूज करने देते हैं और समूची सप्लाई चेन या नेटवर्क में अगर कुछ अमेरिकी उपकरण पाए जाते हैं, जिसकी काफी संभावना है तो उसका हमारी कंपनियों पर क्या असर होगा?'
ईरान के साथ व्यापार में अमेरिका ने लगाया अड़ंगा
अमेरिका ने पिछले साल ईरान पर परमाणु कार्यक्रम की जानकारी छिपाने का आरोप लगाकर उस पर प्रतिबंध लगा दिए थे। इसके बाद लगभग सभी देशों ने ईरान के साथ व्यापार बंद कर दिया। कुछ देशों को व्यापार खत्म करने के लिए 6 महीने की छूट दी गई थी, ताकि वे लेन-देन से जुड़े समझौते जल्द खत्म कर सकें। हालांकि, अब भारत ने ईरान से तेल खरीदना पूरी तरह बंद कर दिया है। अमेरिका में स्थित भारतीय राजदूत हर्षवर्धन श्रृंगला ने यह जानकारी दी थी।
हर्षवर्धन ने कहा कि अप्रैल के खत्म होते ही भारत ने ईरानी तेल पर अपनी निर्भरता 2.5 अरब टन महीने के आयात से घटाकर 10 लाख टन पहुंचा दी। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि भारत के लिए ये एक बड़ी कीमत है, क्योंकि अब हमें ऊर्जा के स्रोत ढूंढने होंगे। भारत ने हाल ही में वेनेजुएला से भी तेल आयात करना बंद किया है।
ईरान भारत की करीब 10% तेल जरूरत पूरी करता था। अमेरिकी प्रतिबंध में छूट खत्म होने के बाद करीब पांच देश ईरान से तेल आयात बंद कर चुके हैं। इसमें भारत समेत ग्रीस, इटली, ताईवान और तुर्की शामिल हैं।
रूस से विमान सौदे पर अमेरिका ने जताई आपत्ति
अमेरिका भारत की सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए तैयार है लेकिन रूस से एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम सौदे को लेकर उसे आपत्ति है। अमेरिका इस सौदे को भारत के साथ अपने रक्षा सहयोग में सीमा के तौर पर देख रहा है। ट्रंप प्रशासन की ओर से यह बयान अमेरिकी विदेश मंत्रालय के अधिकारी के उस वक्तव्य के हफ्ते भर बाद आया है जिसमें कहा गया था- एस-400 सौदा भारत-अमेरिका रक्षा सहयोग पर गंभीर असर डाल सकता है।
एस-400 रूस का अत्याधुनिक एयर डिफेंस सिस्टम है जिसमें दुश्मन की मिसाइल या विमान को 400 किलोमीटर दूरी पर ही नष्ट किया जा सकता है। चीन इस सिस्टम की खरीद के लिए 2014 में ही सौदा कर चुका है जबकि भारत ने पांच अरब डॉलर का सौदा 2018 में किया है। अमेरिकी विदेश विभाग की वरिष्ठ अधिकारी एलिस जी वेल्स ने एशिया मामलों की उप संसदीय समिति को बताया कि हाल के वर्षो में अमेरिका ने भारत के साथ अन्य देशों की तुलना में सबसे ज्यादा सैन्य अभ्यास किए हैं।