विधि कंपनी मिशकॉन डी रेया के वकीलों ने दलील दी कि ब्रितानी सरकार संसदीय बहस के और इस प्रक्रिया के लिए मतदान के बिना यूरोपीय संघ को छोड़ने की कानूनी प्रक्रिया यानी अनुच्छेद 50 को लागू नहीं कर सकती। मिशकॉन डी रेया में एक साझेदार कासरा नौरूजी ने एक बयान में कहा कि जनमत संग्रह के परिणाम पर कोई संदेह नहीं है लेकिन इसे लागू करने के लिए हमें एक ऐसी प्रक्रिया की जरूरत है, जो ब्रितानी कानून के अनुरूप हो।
उन्होंने कहा कि जनमत संग्रह का परिणाम कानूनी तौर पर बाध्यकारी नहीं है और मौजूदा या भावी प्रधानमंत्री की ओर से संसद की मंजूरी के बिना अनुच्छेद 50 को लागू किया जाना अवैध है। चूंकि अधिकतर ब्रितानी सांसद 28 सदस्यीय ब्लॉक यानी यूरोपीय संघ में ब्रिटेन के बने रहने के पक्ष में हैं, ऐसे में यह कानूनी चुनौती इस प्रक्रिया को जटिल बना देती है। मिशकॉन डी रेया ने किसी का नाम लिए बिना कहा कि कानूनी प्रक्रिया के पीछे ‘क्लाइंट समूह’ है। वहीं ‘द लॉयर’ पत्रिका ने कहा कि ये क्लाइंट दरअसल ‘कारोबारों का एक समूह’ है।
अनुच्छेद 50 लागू हो जाने के बाद ब्रिटेन के पास अपनी निकासी की शर्तों पर मोल-तोल करने के लिए दो साल का समय है। कैबिनेट कार्यालय की प्रवक्ता ने कहा कि हमें विस्तृत व्यवस्थाओं पर गौर करना है। उन्होंने कहा कि आगे के लिए सर्वश्रेष्ठ रास्ता चुनने में संसद की एक भूमिका रहेगी।