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एनएसजी में भारत की सदस्‍यता पर चीन पुराने रुख पर कायम

एनएसजी में भारत की पूर्ण सदस्यता के मुद्दे पर समर्थन करने में चीन ने असमर्थता व्‍यक्‍त की है। हालांकि इस शक्तिशाली एशियाई देश का कहना है कि वह इस मसले पर 'संभावनाओं' को लेकर भारत के साथ आगे बातचीत करने के लिए तैयार है।
एनएसजी में भारत की सदस्‍यता पर चीन पुराने रुख पर कायम

 

गोवा में होने जा रहे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में शामिल होने चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग की भारत यात्रा से पहले चीन ने अपनी असमर्थता के संकेत दिए हैं। चीन के विदेश उपमंत्री ली बाओडॉन्ग ने कहा कि एनएसजी में नए सदस्यों को शामिल करने के लिए उनके नाम पर सभी मौजूदा सदस्यों को सहमत होना होता है, तथा ये नियम चीन ने नहीं बनाए हैं।

हालांकि उन्होंने कहा, एनएसजी में शामिल होने के मुद्दे पर भारत और चीन के बीच अब तक बहुत अच्छी बातचीत हुई है, तथा सहयोग दिशा में बढ़ने के लिए चीन भारत के साथ बातचीत करने पर राजी है। भारत एनएसजी के अन्य सदस्य देशों के पास भी जा सकता है।

ली ने कहा, फैसला एनएसजी के नियमों के तहत ही किया जाना चाहिए। कुछ नियमों का पालन सभी पक्षों को करना होगा। एनएसजी के नियमों के मुताबिक किसी भी ऐसे देश को एनएसजी की सदस्यता नहीं दी जा सकती, जिसने परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर दस्तखत नहीं किए हैं।

एनपीटी के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन तथा फ्रांस  को ही परमाणु शक्तियों के रूप में स्वीकार किया जाता है। किसी भी अन्य देश को नहीं। भारत ने एनपीटी पर दस्तखत करने की संभावना को नकार दिया है, लेकिन उसका कहना है कि अप्रसार के क्षेत्र में भारत के ट्रैक रिकॉर्ड के आधार पर उसे एनएसजी का सदस्य बना लिया जाना चाहिए।

वर्ष 2008 में भारत को परमाणु संबंधी व्यापार में शामिल होने के लिए एनएसजी से छूट मिल गई थी, लेकिन संगठन के फैसलों में वोट देने का अधिकार भारत के पास नहीं है।

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