वांग क्वी (77) नामक इस चीनी सैनिक को लेने के लिए उसके करीबी चीनी संबंधियों के अलावा चीनी विदेश मंत्रालय और भारतीय दूतावास के अधिकारी भी पहुंचे। वांग दिल्ली से बीजिंग आने वाले विमान में अपने बेटे, बहू और पोती के साथ आए हैं। पांच दशक से भी अधिक समय पहले सीमा पार कर जाने वाले वांग जब पहली बार अपने चीनी संबंधियों से वापस मिले तो उनसे गले लगकर भावुक हो उठे।
बीजिंग हवाईअड्डे पर मौजूद एक अधिकारी ने बताया कि यह एक भावनात्मक पुनर्मिलन था। वांग के साथ उनका बेटा विष्णु वांग (35), बहू नेहा और पोती खनक वांग थी। हालांकि उनकी भारतीय पत्नी सुशीला भारत में ही रूकीं। भारतीय अधिकारियों ने कहा कि वांग और उनके परिवार के सदस्य बाद में शांक्सी प्रांत स्थित प्रांतीय राजधानी शियान गए। वहां से उन्हें उनके मूल गांव शू झाई नान कुन ले जाया जाएगा।
वांग का चीन लौटना इसलिए संभव हो सका क्योंकि भारत और चीन ने वांग और उनके भारतीय परिवार की चीन यात्रा और फिर अपनी मर्जी से वापसी के तरीकों पर काम किया। भारत और चीन के बीच 1962 के युद्ध के कुछ ही समय बाद वांग को उस समय पकड़ा गया था, जब वह भारतीय क्षेत्र में दाखिल हो गए थे।
वर्ष 1969 में जेल से छूटने के बाद वह मध्यप्रदेश के बालघाट जिला स्थित तिरोदी गांव में बस गए। हालांकि भारतीय मीडिया में उनकी कहानी कई बार प्रकाशित हो चुकी है लेकिन उनके दुख की झलक पेश करते बीबीसी के हालिया टीवी फीचर को चीनी सोशल मीडिया पर व्यापक तौर पर प्रसारित किया गया। इसके बाद चीनी सरकार ने भारत के साथ मिलकर उनकी वापसी के लिए प्रयास शुरू किया।
चीनी विदेश मंत्रालय ने छह फरवरी को कहा कि वांग को वर्ष 2013 में चीन की यात्रा करने के लिए पासपोर्ट उपलब्ध करवाया गया था और उन्हें गुजारा भत्ता भी दिया गया था।
भारत में चीन के राजदूत लुओ झुओहुई ने हाल ही में वांग से बात की थी। चीनी सरकार ने जहां वांग के परिवार को चीन यात्रा के लिए वीजा उपलब्ध करवाया है, वहीं भारत ने उन्हें वापसी का वीजा उपलब्ध करवाया है ताकि यदि वह चाहें तो लौट सकें।
भारतीय अधिकारी वांग और उनके परिवार की इस यात्रा को सुगम बनाए जाने को एक सकारात्मक चीज मानते हैं, खासतौर पर तब जबकि भारत और चीन के रिश्ते चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा, चीन द्वारा एनएसजी में भारत के प्रवेश को और जैश-ए-मुहम्मद के नेता मसूद अजहर को संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकी घोषित किए जाने से रोके जाने को लेकर अटकाव की स्थिति में हैं।
बीजिंग रवाना होने से पहले विष्णु ने कल भारतीय मीडिया से कहा कि मेरे पिता वर्ष 1960 में चीनी सेना में भर्ती हुए थे और एक रात को अंधेरे में रास्ता भटक जाने के बाद वह पूर्वी फ्रंटियर के रास्ते भारत में दाखिल हो गए थे। असम पहुंचे वांग को भारतीय रेड क्रॉस दल ने एक जनवरी 1963 को भारतीय सेना को सौंप दिया था। (एजेंसी)