अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत के बढ़ते प्रभाव का असर यूरोपीय संसद में देखने को मिला है। भारत के भारी विरोध और उसके मित्रों के दबाव के चलते नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ यूरोपीय संसद (ईपी) में पेश पांच विभिन्न संकल्पों से संबंधित संयुक्त प्रस्ताव पर मतदान मार्च तक टल गया है। संसद ने सीएए के खिलाफ पेश एक प्रस्ताव पर गुरुवार (30 जनवरी) यानी आज मतदान नहीं कराने का निर्णय लिया है। पहले प्रस्ताव पर बुधवार को बहस के बाद गुरुवार को मतदान होना था। यूरोपीय संसद के इस कदम को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मार्च में ब्रसेल्स में होने वाले द्विपक्षीय सम्मेलन में शिरकत करने की योजना में किसी तरह की बाधा खड़ी नहीं होने के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है।
प्रस्ताव में सांसदों ने कहा था कि भारत सरकार द्वारा लागू किया गया नागरिकता कानून भेदभाव वाला और विभाजनकारी है। इससे बड़ी संख्या में लोग स्टेटलेस यानि बिना नागरिकता के हो जाएंगे।
‘भारत के मित्र अपने प्रयासों से पाकिस्तान के मित्र पर हावी रहे’
यूरोपीय संसद ने बुधवार (29 जनवरी) को निर्णय किया कि सीएए पर मतदान दो मार्च से शुरू हो रहे उसके नए सत्र पर कराया जाएगा। सरकारी सूत्र मतदान टालने को कूटनीतिक सफलता बता रहे हैं। उनका कहना है कि बुधवार को भारत के मित्र अपने प्रयासों से पाकिस्तान के मित्र पर हावी रहे।
30 और 31 मार्च को हो सकता हैमतदान
सूत्रों ने बताया कि भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर मार्च के मध्य में मोदी की ब्रसेल्स की यात्रा का आधार तैयार करने के वास्ते ब्रसेल्स जाने वाले हैं और यूरोपीय सांसद सीएए पर उनसे देश का नजरिया जानने तक मतदान टालने के लिए राजी हो गए हैं। कूटनीतिक सूत्रों ने बताया कि प्रस्ताव पर चर्चा तय कार्यक्रम के अनुसार ही होगी लेकिन इस पर मतदान 30 और 31 मार्च को हो सकता है।
यूरोपीय संसद के छह राजनीतिक दलों के सदस्यों ने भारत के सीएए के खिलाफ एक संयुक्त प्रस्ताव पेश किया और इसे भेदभाव करने वाला करार दिया। सूत्रों ने कहा कि बुधवार (29 जनवरी) को फ्रेंड्स ऑफ पाकिस्तान पर फ्रेंड्स ऑफ इंडिया हावी रहे। एक सूत्र ने कहा, ''ब्रेक्जिट से ठीक पहले भारत के खिलाफ यूरोपीय संसद में प्रस्ताव पारित कराने के निवर्तमान ब्रिटिश एमईपी शफ्फाक मोहम्मद के प्रयास असफल रहे।"
Government Sources: CAA is a matter internal to India and has been adopted through a due process through democratic means. We expect that our perspectives in this matter will be understood by all objective and fair-minded Members of the European Parliament. https://t.co/ThTDHNcNcV
— ANI (@ANI) January 29, 2020
लोकसभा स्पीकर ने प्रस्ताव पर आपत्ति जताई थी
प्रस्ताव पर भारत ने कहा था कि सीएए हमारा आंतरिक मामला है। लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने सांसदों के प्रस्ताव की निंदा की थी। उन्होंने यूरोपीय संसद के अध्यक्ष डेविड मारिया सासोली को पत्र लिखकर कहा था कि एक विधान मंडल का दूसरे विधान मंडल पर फैसला देना सही नहीं है। इस चलन का निहित स्वार्थों द्वारा दुरुपयोग किया जा सकता है। इंटर पार्लियामेंट्री यूनियन के सदस्य होने के नाते हमें कानून बनाने की लोकतांत्रिक प्रक्रिया का सम्मान करना चाहिए।
जानें यूरोपीय संसद में पेश प्रस्ताव में क्या कहा गया है
इस प्रस्ताव में संयुक्त राष्ट्र के घोषणापत्र, मानव अधिकार की सार्वभौमिक घोषणा (यूडीएचआर) के अनुच्छेद 15 के अलावा 2015 में हस्ताक्षरित किए गए भारत-यूरोपीय संघ सामरिक भागीदारी की संयुक्त कार्य योजना और मानव अधिकारों पर यूरोपीय संघ-भारत विषयक संवाद का जिक्र किया गया है। इसमें भारतीय प्राधिकारियों के अपील की गई है कि वे सीएए के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों के साथ रचनात्मक वार्ता करें और भेदभावपूर्ण सीएए को निरस्त करने की उनकी मांग पर विचार करें। प्रस्ताव में कहा गया है, ''सीएए भारत में नागरिकता तय करने के तरीके में खतरनाक बदलाव करेगा। इससे नागरिकता विहीन लोगों के संबंध में बड़ा संकट विश्व में पैदा हो सकता है और यह बड़ी मानव पीड़ा का कारण बन सकता है।"
10 जनवरी को लागू हुआ नागरिकता संशोधन कानून
नागरिकता संशोधन कानून में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से 31 दिसंबर, 2014 तक देश में आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, ईसाई, जैन और पारसी समुदाय के सदस्यों को भारत की नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने संसद से पारित नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 को 12 दिसंबर को अपनी संस्तुति प्रदान की थी। राष्ट्रपति की संस्तुति के साथ ही यह कानून बन गया था और यह 10 जनवरी को जारी अधिसूचना के बाद देश में लागू हो गया है।
इस नए कानून का देश भर में हो रहा विरोध
नए नागरिकता कानून को लेकर देश भर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। वहीं दूसरी ओर, भारत सरकार का कहना है कि नया कानून किसी की नागरिकता नहीं छीनता है, बल्कि इसे पड़ोसी देशों में उत्पीड़न का शिकार हुए अल्पसंख्यकों की रक्षा करने और उन्हें नागरिकता देने के लिए लाया गया है।