राफेल डील पर देश में सियासी घमासान मचा हुआ है। वहीं इस पर रोज नए-नए खुलासे भी हो रहे हैं। बुधवार को फ्रांसीसी मीडिया की एक रिपोर्ट में दावा किया गया कि दसॉ एविएशन के पास रिलायंस डिफेंस से समझौता करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था।
फ्रांस की खोजी वेबसाइट मीडियापार्ट के मुताबिक, उनके पास मौजूद दसॉ के डॉक्युमेंट में इस बात की पुष्टि होती है कि उसके पास रिलायंस को पार्टनर चुनने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था।
वेबसाइट ने यह भी दावा किया है कि दसॉ के प्रतिनिधि ने अनिल अंबानी की कंपनी का दौरा किया तो सैटेलाइट इमेज से पता चला कि वहां केवल एक वेयर हाउस था। इसके अलावा किसी प्रकार की कोई सुविधा मौजूद नहीं थी।
Explosive revelation in French media: an internal Dassault document says the Reliance offset deal was a “trade-off”, “imperative and obligatory” to clinch the #Rafale deal. @INCIndia https://t.co/2xiMmgwL9K
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) October 10, 2018
दसॉ ने दी ये सफाई
मीडिया पार्ट के दावे के बाद दसॉ की ओर से कहा गया है कि भारत और फ्रांस की सरकार के बीच यह समझौता हुआ है और बिना दबाव के दसॉ ने रिलायंस को चुना। इतना ही नहीं, कई कंपनियों के साथ समझौता हुआ है। कंपनी ने कहा कि भारत और फ्रांस के बीच 36 राफेल विमानों की खरीद की डील हुई है और भारत सरकार के नियमों के तहत समझौता है। कंपनी का दावा है कि कीमत का 50% भारत में ऑफसेट के लिए समझौता हुआ है। ऑफसेट के लिए भारतीय कंपनियों से समझौता हुआ है, जिनमें महिंद्रा, बीटीएसल, काइनेटिक आदि शामिल हैं।
कंपनी ने सफाई दी है कि उसने भारतीय नियमों (डिफेंस प्रॉक्यूरमेंट प्रोसीजर) और ऐसे सौदों की परंपरा के अनुसार किसी भारतीय कंपनी को ऑफसेट पार्टनर चुनने का वादा किया था। इसके लिए कंपनी ने जॉइंट-वेंचर बनाने का फैसला किया। दसॉ कंपनी ने कहा है कि उसने रिलायंस ग्रुप को अपनी मर्जी से ऑफसेट पार्टनर चुना था और यह जॉइंट-वेंचर दसॉ रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड (DRAL) फरवरी 2017 में बनाया गया।
फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति ओलांद ने भी किया था दावा
कुछ दिन पहले ही फ्रेंच वेबसाइट ने फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के हवाले से लिखा था कि राफेल डील के लिए भारत सरकार की ओर से अनिल अंबानी की रिलायंस का नाम प्रस्तावित किया था। दसॉ एविएशन कंपनी के पास कोई अन्य विकल्प नहीं था। ओलांद का कहना था कि भारत सरकार की तरफ से ही रिलायंस का नाम दिया गया था। इसे चुनने में दसॉ की भूमिका नहीं है।
फ्रांस और भारत सरकार ने इस दावे को किया था खारिज
पिछले महीने फ्रांस सरकार और दसॉ ने ओलांद के दावे को पूरी तरह खारिज कर दिया था। भारतीय रक्षा मंत्रालय ने ओलांद के दावे को विवादास्पद और गैरजरूरी बताया था। मंत्रालय ने स्पष्ट किया था कि भारत ने ऐसी किसी कंपनी का नाम नहीं सुझाया था। कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक, समझौते में शामिल फ्रेंच कंपनी को कॉन्ट्रैक्ट वैल्यू का 50 फीसदी भारत को ऑफसेट या रीइनवेस्टमेंट के तौर पर देना था।
ओलांद की यह बात सरकार के दावे को खारिज करती है, जिसमें कहा गया था कि दसॉ और रिलायंस के बीच समझौता एक कमर्शल पैक्ट था, जो दो प्राइवेट फर्म के बीच हुआ। इसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं थी। रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा था कि पूर्व राष्ट्रपति के द्वारा दिए गए बयान वाली रिपोर्ट की पुष्टि की जा रही है। 'यह फिर से दोहराया जाता है कि इस समझौतै में न तो भारत सरकार और न ही फ्रांस सरकार की कोई भूमिका थी।'
राफेल पर सियासी घमासान
राफेल डील को लेकर कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दल मोदी सरकार को निशाने पर लेते रहे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी प्रधानमंत्री मोदी पर हमला बोलने से नहीं चूकते। पिछले दिनों उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री ने व्यक्तिगत रूप से बातचीत की और बंद दरवाजों के पीछे राफले सौदे को बदल दिया। हम जानते हैं कि उन्होंने व्यक्तिगत रूप से दिवालिया अनिल अंबानी को अरबों डॉलर का सौदा दिया था। प्रधानमंत्री ने भारत को धोखा दिया है। इसे लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण पर राफेल मामले में देश को गुमराह करने का आरोप लगाया था। विपक्षी दल ने हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के पूर्व प्रमुख टी सुवर्णा राजू के बयान का जिक्र करते हुए रक्षा मंत्री से इस्तीफा मांगा था। कांग्रेस इस बात को लेकर सरकार को निशाने पर लेती है कि इस समझौते में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स को क्यों शामिल नहीं किया गया। वहीं, इस पर वित्त मंत्री अरुण जेटली और रक्षा मंत्री सीतारमण ने जवाब दिया था कि यह समझौता दो निजी कंपनियों के बीच हुआ था। इसमें सरकार का कोई हाथ नहीं था। जबकि एचएएल के पूर्व प्रमुख टी सुवर्णा राजू ने कहा था कि एचएल लड़ाकू विमान बना सकती है। रक्षा मंत्री सीतारमण ने कहा था कि विमान बनाने वाली सरकारी कंपनी इस विमान को बनाने में तकनीकी रूप से कई मामलों में सक्षम नहीं है।