इजराइल और हमास के बीच जारी जंग के चलते लाखों महिलाओं को शिविरों में शरण लेनी पड़ी है, लेकिन इन शिविरों में उनका जीवन किसी नरक से कम नहीं है। शिविरों के सामने मलमूत्र खुले में बह रहा है।
बीमारियों के खतरे के बीच रह रहीं इन महिलाओं के पास माहवारी के दिनों से निपटने के लिए पर्याप्त साधन नहीं हैं। कपड़े बदलने के लिए परदेदारी वाला एक कोना तक ढूंढना मुश्किल है।
शिविरों में लोगों की भीड़ के बीच महिलाओं को गरिमा के साथ जीने के वास्ते रोजाना संघर्ष करना पड़ता है।
महिलाओं को तंबुओं में अपने बड़े परिवार के सदस्यों (पुरुषों सहित) के साथ रहना पड़ रहा है और कुछ ही कदमों की दूरी पर बने तंबुओं में अजनबी रहते हैं। ऐसे में उन्हें अपनी पोशाक एवं कपड़ों को लेकर हमेशा सजग रहना पड़ता है।
मासिक धर्म से जुड़े उत्पाद उपलब्ध नहीं होने के कारण वे चादरें या पुराने कपड़ों को पैड की तरह इस्तेमाल करती हैं। इसके अलावा रेत में केवल एक गड्ढा खोदकर, उसके चारों ओर चादरें लटका कर कामचलाऊ शौचालय बनाए गए हैं।
अला हमामी हमेशा अपना वह काला दुपट्टा ओढ़े रखती हैं जिसे पहनकर वह नमाज पढ़ती हैं। हमामी का नमाज का यह दुपट्टा भी फटा हुआ है।
वह आम तौर पर केवल रोजाना नमाज अदा करते समय ही इसे ओढ़ा करती थीं लेकिन इतने सारे पुरुषों के आस-पास होने के कारण वह अब इसे इस डर से सोते समय भी पहने रखती है कि कोई इजराइली हमला होने पर उन्हें तुरंत ना भागना पड़े।
तीन बच्चों की मां हमामी ने कहा, ‘‘हमें हर जगह नमाज के कपड़े पहनने पड़ रहे हैं, यहां तक कि हम बाजार जाते समय भी इसे पहनते हैं। अब गरिमा बची ही नहीं।’’
गाजा में 14 महीने से जारी इजराइली हमलों ने 23 लाख फलस्तीनियों में से 90 प्रतिशत से अधिक को बेघर कर दिया है। उनमें से लाखों लोग अब बड़े-बड़े इलाकों में एक-दूसरे से सटे तंबुओं के गंदे शिविरों में रह रहे हैं।
मलजल सड़कों पर बहता है और भोजन एवं पानी मिलना मुश्किल है। सर्दी का मौसम शुरू हो रहा है लेकिन परिवार अक्सर कई सप्ताह तक एक ही कपड़े पहनने को मजबूर हैं क्योंकि विस्थापन के दौरान वे कपड़े और कुछ अन्य आवश्यक सामान साथ नहीं ला पाए।
शिविरों में रहने वाले हर व्यक्ति को प्रतिदिन भोजन, स्वच्छ पानी और ईंधन के लिए लकड़ी की तलाश रहती है। महिलाएं लगातार असुरक्षित महसूस करती हैं।
गाजा का समाज हमेशा से रूढ़िवादी रहा है। अधिकतर महिलाएं उन पुरुषों की मौजूदगी में हिजाब पहनती हैं जो उनके पारिवारिक सदस्य नहीं होते। महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़े मामलों – गर्भावस्था, मासिक धर्म और गर्भनिरोधक – पर आम तौर पर सार्वजनिक रूप से चर्चा नहीं की जाती।
हमामी कहती हैं, ‘‘पहले हमारे पास कम से कम छत थी। यहां तो छत भी नहीं है। महिलाओं के लिए कोई निजता नहीं है।’’
गाजा में रह रहीं दो बच्चों की मां वफा नसरल्लाह का कहना है कि शिविरों में रहने के कारण पीरियड पैड समेत साधारण जरूरतें भी पूरी नहीं हो पा रहीं।
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि गाजा में 6,90,000 से अधिक महिलाओं और लड़कियों को मासिक धर्म स्वच्छता संबंधी उत्पादों के साथ-साथ स्वच्छ जल और शौचालय की भी आवश्यकता है।
शिविर में रह रहीं तीन बच्चों की मां डोआ हेलिस ने बताया कि उन्होंने माहवारी के दौरान पैड बनाने के लिए अपने पुराने कपड़े फाड़ कर इस्तेमाल किए हैं। उन्होंने कहा, ‘‘जहां भी हमें कपड़ा मिलता है, हम उसे फाड़कर इस्तेमाल कर लेते हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘पैड के एक पैकेट की कीमत 45 शेकेल (12 अमेरिकी डॉलर) है और पूरे तंबू में पांच शेकेल भी नहीं हैं।’’
गाजा में सक्रिय अधिकार समूह अनेरा का कहना है कि कुछ महिलाएं अपने मासिक धर्म को रोकने के लिए गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल करती हैं। बार-बार विस्थापन के तनाव के कारण उनका मासिक धर्म चक्र गड़बड़ा गया है।
गाजा में महिला मामलों के केंद्र की निदेशक अमल सेयम ने कहा कि ये भयावह स्थितियां महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए वास्तविक खतरा पैदा करती हैं।
उन्होंने कहा कि कुछ महिलाओं ने 40 दिन से कपड़े नहीं बदले। उन्होंने कहा कि इसके कारण और पैड के रूप में कपड़ा इस्तेमाल करने के कारण महिलाओं को निश्चित ही त्वचा रोग, प्रजनन स्वास्थ्य से संबंधित रोग और मनोवैज्ञानिक समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि युद्ध जैसी मानवीय आपदाओं की सबसे भारी कीमत हमेशा महिलाओं को चुकानी पड़ती है।
हेलिस ने कहा, ‘‘महिलाओं को हर चीज से वंचित कर दिया गया है। उनके पास न कपड़े हैं, न शौचालय। वे मानसिक रूप से पूरी तरह टूट चुकी हैं।’’
हमामी ने कहा, ‘‘पहले, मेरे पास एक अलमारी थी जिसमें मेरी मनचाही हर वस्तु थी। हम रोजाना टहलने जाते थे, शादी के जश्नों में शामिल होते थे, पार्क में जाते थे, मॉल जाते थे, अपनी मनचाही चीजें खरीदते थे लेकिन इस युद्ध ने महिलाओं को तबाह कर दिया, उनका सब कुछ छीन लिया।’’