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पाकिस्तान में मोहाजिरों की हालत चिंताजनक: यूरोपियन मोहाजिर नेटवर्क

पाकिस्तान में मोहाजिरों की लगातार खराब होती स्थिति का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में उठाया गया।
पाकिस्तान में मोहाजिरों की हालत चिंताजनक: यूरोपियन मोहाजिर नेटवर्क

यूएनएचआरसी के चल रहे 29वें सत्र में यूरोपियन मोहाजिर नेटवर्क ने 19 जून को भारत पाकिस्तान बंटवारे के दौरान भारत से जाकर पाकिस्तान में बस गए मोहाजिरों के चिंताजनक हालात पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में कई बड़े विद्वानों ने भाग लिया और अपनी राय रखी। इस कार्यक्रम में शामिल होने वाले वक्ताओं में यूरोपीय संसद के उपसभापति रिजार्द जार्नेकी,  मोहम्मद खान (कार्यकारी निदेशक, यूरोपियन मोहाजिर नेटवर्क), और करांची के मानवा‌धिकार कार्यकर्ता आसिफ मोहम्मद शामिल थे।

इस कार्यक्रम में बताया गया किस प्रकार पंजाब के पाकिस्तानी भाग,सिंध के उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रांत में पठानों के पड़ोस में रह रहे मोहाजिरों को जातीय आधार पर अलग थलग किया जा रहा है। पाकिस्तानी सरकार के उत्पीड़न का लगातार सामना करने की वजह से वे उस जमीन पर एक तकलीफदेह जिंदगी जीने को विवश हैं जहां वे भारत-पाक बंटवारे के बाद रहने आए थे।

यूरोपियन मोहाजिर नेटवर्क द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम का उद्देश्य मोहाजिरों के मानवाधिकार और पाकिस्तान सरकार की उनके प्रति उदासीनता पर विश्व का ध्यान आकर्षित करना था। कार्यक्रम में अपने मुद्दों के बारे में वक्ताओं ने कई महत्वपूर्ण तथ्य रखे। वक्ताओं ने पाकिस्तान के सभी शिया सुन्नी मोहाजिरों के बाहरी और विदेशी होने के दावे पर प्रश्न उठाया। मोहाजिरों को 1965 के सुनियोजित नरसंहार में निशाना बनाने की बात भी की गई। समाज के विशेष संप्रदायों को मिलने वाले नागरिक अधिकारों पर दोहरा रुख रखने पर पाकिस्तान से सवाल भी पूछा गया। पाकिस्तान की जनगणना के अनुसार 72 लाख लोगों ने बंटवारे के दौरान भारत से पाकिस्तान पलायन किया था।

कार्यक्रम में मोहाजिरों के साथ होने वाले अत्याचार को पुष्ट करने के लिए कुछ घटनाओं का भी उल्लेख किया गया जिसमें बताया गया कि पिछले कुछ महीनों में कराची की सड़कों पर योजनाबद्ध हत्याओं की वजह से सैंकड़ों जानें गईं हैं। वहीं जनवरी और फरवरी 2013 के बीच फिरौती के लिए 74 अपहरण के मामले दर्ज किए गए। सन् 1985 और 2011 के दंगों में हजारों जानें गईं जिनपर पाकिस्तान की सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया। सन् 1985 में समान अधिकार और पहचान के लिए हुए मुत्ताहिदा कौमी महाज का एलान हुआ था। एलान के फौरन बाद ही दंगे शुरू हो गए थे, और 2011 में नस्ली और राजनीतिक तनाव में सिर्फ करांची में ही 900 से ज्यादा लोग मारे गए। वक्ताओं ने बताया कि पाकिस्तान में मोहाजिरों की योजनाबद्ध हत्या में अब तक 13 लाख  से ज्यादा जानें गईं हैं। इन परिस्थितियों की वजह से मोहाजिर अपने पाकिस्तान आगमन के समय से ही बुनियादी जरूरतों, भोजन, शिक्षा, और स्वास्थ्य से वंचित रहे हैं।  

 

यूरोपियन मोहाजिर नेटवर्क ने मांग की कि इन महत्वपूर्ण तथ्यों पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय को विचार करना चाहिए। पाकिस्तान के मोहाजिरों को जानबूझ कर देश से निकालने के हठ भरे प्रयासों की अंतरराष्ट्रीय समुदाय को निंदा करनी चाहिए। पाकिस्तान सरकार से जवाब मांगा जाना चाहिए और जो भी दोषी पाया जाता है उसके ऊपर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में मुकदमा चलाया जाना चाहिए। कार्यक्रम के अंत में अपील की गई कि मोहाजिरों के मुद्दे को नोडल एजेंसी होने के नाते यूएनएचआरसी (संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद) प्रभावी ढंग से दुनिया के देशों के बीच रख सकता है ताकि वे अपनी निगाह से मुद्दे को ओझल न करें। अब समय आ चुका है कि मोहाजिरों की दुर्दशा के लिए पाकिस्तान सरकार की भर्त्सना की जाए और तत्काल संयुक्त राष्ट्र जरूरी कदम उठाए  जिससे मुहाजिरों को जीने के बुनियादी अधिकार मिल सकें।

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