किसी बहुपक्षीय निर्यात नियंत्रण समूह में पहली बार भारत को मिले प्रवेश को रेखांकित करते हुए विदेश सचिव एस जयशंकर ने फ्रांस के राजदूत एलेग्जेंडर जीगलर, नीदरलैंड के राजदूत एल्फोनस स्टोलिंगा और लग्जमबर्ग के प्रभारी (चार्ज डी एफेयर्स) लॉरे हुबर्टी की मौजूदगी में सदस्यता पत्र पर हस्ताक्षर किए।
विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, ‘भारत सुबह एमटीसीआर में शामिल हो गया। इस समूह के 35वें सदस्य के रूप में भारत का प्रवेश अंतरराष्ट्रीय अप्रसार के लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में परस्पर लाभकारी होगा।’ बयान में कहा गया, ‘भारत अपनी सदस्यता का समर्थन करने वाले एमटीसीआर के 34 सदस्यों में से प्रत्येक का शुक्रिया अदा करना चाहेगा। हम एमटीसीआर के सहअध्यक्षों- नीदरलैंड के राजदूत पीटर डी क्लेर्क और लग्जमबर्ग के रॉबर्ट स्टीनमेट्ज का भी शुक्रिया अदा करना चाहेंगे।’ आगे बयान में कहा गया है कि पेरिस में एमटीसीआर के ‘प्वाइंट ऑफ कॉन्टैक्ट’ ने इस समूह में भारत को शामिल किए जाने से जुड़े निर्णय की जानकारी नयी दिल्ली स्थित फ्रांसीसी दूतावास, नीदरलैंड और लग्जमबर्ग के दूतावासों के माध्यम से पहुंचाई।
एमटीसीआर में भारत को प्रवेश मिलने से कुछ ही दिन पहले चीन और कुछ अन्य देशों के कड़े विरोध के चलते उसे एनएसजी की सदस्यता नहीं मिल पाई थी। महत्वपूर्ण बात यह है कि हाल ही में सोल में संपन्न बैठक के दौरान 48 देशों के परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में भारत के प्रवेश पर बाधाएं पैदा करने वाला चीन एमटीसीआर का सदस्य नहीं है।
अमेरिका के साथ असैन्य परमाणु संधि के बाद से ही भारत एनएसजी, एमटीसीआर, द ऑस्ट्रेलिया ग्रुप और वासेनार अरेंजमेंट जैसे निर्यात नियंत्रण समूहों में प्रवेश की कोशिश करता रहा है। ये समूह पारंपरिक, परमाणु, जैविक एवं रासायनिक हथियारों और प्रौद्योगिकियों का नियमन करते हैं। एमटीसीआर की सदस्यता अब भारत को उच्च स्तरीय मिसाइल प्रौद्योगिकी खरीदने और रूस के साथ अपने साझा उपक्रमों को बढ़ाने का अवसर देगी। एमटीसीआर का उद्देश्य मिसाइलों, पूर्ण रॉकेट तंत्रों, मानवरहित वायुयानों और कम से कम 300 किलोमीटर तक 500 किलो वजन का पेलोड ले जा सकने वाली प्रणालियों के प्रसार को रोकना है। इसके साथ ही इसका उद्देश्य सामूहिक जनसंहार के हथियारों की आपूर्ति के लिए बनी प्रणालियों को रोकना भी है।