संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के विभाग (डीईएसए) द्वारा किए गए इस सर्वे में कहा गया है कि जिस देश में जन्म हुआ है, उस देश से अलग देश में रहने वाले अंतरराष्ट्रीय प्रवासियों की संख्या वर्ष 2015 में दुनिया भर में 24.4 करोड़ पहुंच चुकी है जो कि वर्ष 2000 के मुकाबले 41 फीसदी ज्यादा है। इस प्रवासी आबादी में करीब 2 करोड़ शरणार्थी हैं।
ट्रेंड्स इन इंटरनेशनल माइग्रेंट स्टाॅक के अनुसार, करीब दो तिहाई अंतरराष्ट्रीय प्रवासी यूरोप (7.6 करोड़) या एशिया (7.5 करोड़) में रह रहे हैं। जिन 20 देश की सबसे ज्यादा आबादी अन्य देशों में रह रही है उनमें 11 देश एशिया के हैं जबकि 6 यूरोप और अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और कैरीबियन व उत्तरी अमेरिका का एक-एक देश शामिल है।
आर्थिक एवं सामाजिक मामलों के लिए संयुक्त राष्ट्र अंडर सेक्रेटरी जनरल वू होंगबो ने कहा अंतरराष्ट्रीय प्रवासियों की संख्या में वृद्धि अंतरराष्ट्रीय प्रवास के बढ़ते महत्व को दर्शाती है जो कि हमारी अर्थव्यवस्थाओं और समाजों का एक अभिन्न हिस्सा बन गई है। होंगबो ने कहा समुचित तरीके से किया गया प्रवास न केवल मूल देश और गंतव्य के लिए बल्कि प्रवासियों और उनके परिवारों के लिए भी लाभकारी होता है।
दुनिया में सर्वाधिक संख्या अनिवासी भारतीयों की है जिसके बाद मैक्सिको और रूस के प्रवासी आते हैं। वर्ष 2015 में भारत के 1.6 करोड़ लोग देश से बाहर रह रहे थे जबकि 1990 के दशक में यह संख्या करीब 67 लाख थी। मैक्सिको मूल के प्रवासियों की संख्या 1.2 करोड़ है। इसके अलावा रूस, चीन, बांग्लादेश, पाकिस्तान और यूक्रेन के नागरिक भी बड़ी संख्या में अपने मूल देशों से बाहर रह रहे हैं।
अमेरिका में सबसे ज्यादा प्रवासी
विश्व की कुल प्रवासी आबादी का दो तिहाई दुनिया के 20 देशों में है। इस मामले में अमेरिका पहले नंबर पर है। यहां विश्व की कुल प्रवासी आबादी का 19 फीसदी यानी विभिन्न देशों के 4.66 करोड़ लोग रहते हैं। इसके बाद जर्मनी, रूस, सऊदी अरब, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त अरब अमीरात का स्थान आता है। अन्य देशों की आबादी को अपने यहां रखने के मामले में भारत दुनिया में 12वें नंबर पर है। वर्ष 2015 में भारत में अन्य देशों के 52 लाख लोग थे जबकि 1990 में यह आबादी 75 लाख थी।