पेरिस पर आतंकी हमला और उसके बाद तमाम देशों को इस्लामिक स्टेट पर हमले तेज करने के ऐलान से भारत के 38 परिवारों के शोकाकुल परिवारों का कलेजा और ज्यादा बैठ गया। कई घरों में उस दिन चुल्हा भी नहीं जला। डेढ़ साल से अपने परिजनों-पति, बेटे, भाई, जीजा को वापस जिंदा देखने की आस मद्म हो गई। ये परिवार खौफजदा है कि इराक में आईएस द्वारा बंदी बनाए गए उनके परिजन भी बाकी देश के द्वारा फैंके जाने वाले बमों का शिकार हो सकते हैं। ये सब परिवार केंद्र सरकार, विदेश मंत्रालय से बेतरह नाराज हैं। उनका कहना है कि वे हमारे अजीजों को बचाने के लिए कुछ नहीं कर रहे। अब तो विदेश मंत्रालय के अधिकारियों ने उनके फोन तक उठाने बंद कर दिए हैं।
पंजाब में अमृतसर के सियालदा गांव में रहने वाली 50 वर्षीय रानी, बात करते-करते रोने लग जाती हैं। उनका वह कहती हैं, मेरा तो कलेजा बैठ्ठा जाता है। सानू कुछ पता नहीं। सरकार का कुछ भरोसा नहीं अब तो। परमात्मा ही जानता है कि मेरा चौड़ी छाती और सुंदर मूरत वाला बेटा दुनिया में है कि नहीं। अब गुरदास का ही सहारा है, सुबह-शाम करती हूं। सरकार कहती है, उसके पास कोई हल नहीं। विदेश मंत्री के पास टाइम नहीं। हमारी सरकार हमेशा विदेश में रहती है। साड्डा दुख उनके लिए वेल्ला है (मेरा दिल बैठ जाता है। मुझे कुछ पता नहीं। सरकार का अब कोई भरोसा नहीं। भगवान को ही पता है कि मेरा बेटा जिंदा है कि नहीं। मैं सुबह-शाम प्रार्थना करती हूं।)
भारत के 38 नागरिक इराक में जून 2014 से गायब हैं। केंद्र सरकार का दावा है कि ये सभी आईएसआईएस के कब्जे में हैं, लेकिन जिंदा है। हालांकि उनके जिंदा होने का कोई सबूत अभी तक सरकार नहीं दे पाई है। पिछले साल ये तमाम परिवार मिलकर दिल्ली आए थे और यहां विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मुलाकात की थी। सितबंर 2014 को हुई इस मुलाकात के बाद कई आश्वासन दिए गए थे, जिन पर कोई अमल नहीं हुआ। इन परिवारों ने बताया कि पिछले 3-4 महीनों से मंत्रालय ने उनसे पूरी तरह से संवाद काट लिया है। अधिकारियों ने उनके फोन-एसएमएस के जवाब देने भी बंद कर दिए हैं। इससे उनकी परेशानी और अधिक बढ़ गई है। पेरिस पर आतंकी हमले ने उन्हें और ज्यादा मायूस कर दिया है। पंजाब के देवंद्र सिंह ने आउटलुक को बताया, हम डरे हुए हैं। रूस, अमेरिका, फ्रांस सब ने कहा कि वे आईएसआईएस पर हमले तेज करने जा रहे हैं। हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत भी अमेरिका-रूस और फ्रांस के साथ इस युद्ध में है। अगर हमारे बंदे जीवित हैं, तो उन पर भी तो बम गिर सकता है। बम तो आदमी को पहचान करके नहीं मारता है। हम जानते हैं कि युद्ध अगर बढ़ा तो हमारे बंदों का जिंदा रहना और बाहर निकलना मुश्किल है। हम लोग साधारण इंसान है। वे देश के नागरिक हैं, उन्हें बचाना हमारी सरकार का काम है। हमें लगता है कि केंद्र सरकार ने उन्हें भगवान भरोसे छोड़ दिया है। और, अब तो इन लोगों ने (केंद्र सरकार) हम लोगों के फोन उठाने, संवाद करना बंद कर दिया है। हमारा सीधा सवाल है कि अगर केंद्र सरकार को वाकई पता है कि हमारे बंदे जिंदा हैं, तो वह कोई सबूत दे। कोई भी सरकार सो नहीं सकती, अगर उसके लोग मौत के मुंह में हैं।
पिछले दिनों राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को विदेश यात्रा के दौरान फिलीस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने भी भरोसा दिलाया था कि इराक में फंसे 38 भारतीय जिंदा है। हालांकि उन्होंने इसके समर्थन में कोई साक्ष्य नहीं पेश किया था। महमूद अब्बास का यह बयान सभी 38 भारतीय परिवारों तक सीधा पहुंचा और उन्हें लगा कि शायद कुछ और जानकारी मिले। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उन्हें यह भी लगता है कि अगर भारत सरकार भी तुर्की की तरह कूटनीतिक पहल करती तो शायद उनके परिजनों की वापसी हो जाए। तुर्की ने कूटनीतिक सफलता हासिल करते हुए अपने 150 लोगों को आईएसआईएस के चंगुल से सुरक्षित निकाला। इसके बाद से इन परिजनों के दिल में शूल और बढ़ गया है कि काश, हमारी सरकार भी ऐसा करती।
बिहार के सहसराव गांव, जिला सिवान की पूनम देवी का सब्र का बांध टूट गया है। उनके पति इराक के मुसोल इलाके से पिछले साल जून से गायब हैं। चार साल के बेटे और आठ साल की बेटी को पालने की जद्दोजेहद में लगी पूनम कहती हैं, कौनो खबर न मिलल, जस के तस। रउवा बताई, पैसे वाले गायब हुए होते तो भी क्या सब यूं ही हाथ पर हाथ धरे बैठे होते। ई हमले के बाद त आंसू झरे लागल, हम सब टीवी बंद कर देलन। अधर में जिंदगी फंस गई है, कौनो राहत नइखे।
दुनिया के एक हिस्से में फैले युद्ध की खौफनाक छाया की गिरफ्त में तमाम देश आ गए हैं। भारत पर भी इसका खूनी साया मंडरा रहा है। भारत भी आईएसआईएस के निशाने पर है। हालांकि युद्ध बढ़ने और पसरने का खतरा इन परिवारों के लिए बिल्कुल अलग मायने लेकर आया है। एक टूटी ही सही पर दिल में आस तो है। अमृतसर के पास चिविड़ा देवी गांव में रहने वाली सीमा को अब लगने लगा कि वह शायद ही अपने पति सोनू को दोबारा देख पाए। 28-29 साल की सीमा कपड़े सिलकर दो बच्चों करन (नौ साल) और अर्जुन (छह साल) को पाल रही हैं। वह कहती है, हमलों (पेरिस) की खबर गांव वालों ने दी। मैं तो धप्प से वहीं की वही बैठ गई। अब तो लड़ाई बढ़ जाएगी। दोनों तरफ से बम फूटेंगे, मेरा खसम (पति) हाय अब कैसे आएगा। पहले ही आस कम थी, अब तो टूटने लग गई है। मैं रोती कम हूं। पहाड़ टूटा है मेरे ऊफर, फिर भी हंसती रहती हूं। आस-पड़ोस वाले कहते हैं, सीमा बावली हो रक्खी है। अब आप ही बताओ, अगर हंसू न तो घुट-घुट कर मर न जाऊं। महजबी सिख सीमा की आर्थिक हाल बद से बदतर होते जा रहे हैं और सरकारी उपेक्षा उसके अंदर गुस्सा भर रही है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जो कुछ चल रहा है, इसकी पूरी खबर सीमा को है और वह कहती हैं, अगर मोदी जी इतने बड़े नेता हैं तो तुर्की की तरह हमारे आदमी को बाहर क्यों नहीं निकाल लेते। ये बताओ अगर उन आतंकियों ने हमारे जैसे गरीबों के बजाय अमीरों या नेताओं को बंदी बनाया होता, तो क्या उनके परिवारवालों को भी यूं ही मायूस होना पड़ा।
केंद्र सरकार ने जब तीन-चार महीने पहले इन लोगों के फोन का जवाब देना बंद कर दिया, अपडेट देना बंद हो गया तो कई परिवारों ने मिलकर, पैसा जुटाकर दिवाली से पहले फिर दिल्ली की ओर रुख किया था। इस बारे में बताया अमृतसर के मनीष ने जिनके जीजा मतीश सिंह औप भाई हरीश कुमार इराक में बंदी हैं। एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करने वाले मनीश को भी डर है कि पेरिस के आतंकी हमले के बाद बंदी भारतीयों के ऊपर खतरा कई गुना बढ़ गया है। इतनी तरफ से बम फूटेंगे, तो हमारे लोग कैसे बचेंगे। हमें तो यह सोचकर भी डर लगता है। हमारे अलावा कोई और यह सोचेगा भी नहीं, सब बड़ी-बड़ी बात करेंगे। सरकार को अगर हमारे हाल पर तरस आता तो वह हमारे तो वहां के असल हालात बताती। इसके उलट उनके अधिकारियों ने तो हमारे फोन तक उठाने बंद कर दिए।–सरकार का दरवाजा खटखटाने औऱ दबाव बनाने के इरादे से आठ-नौ पीड़ित परिवार फिर दिल्ली पहुंचे। दिवाली से पहले छह नवंबर को वे यहां आए। मनीष ने बताया कि हमसे कोई मिलने को तैयार नहीं हुआ। बस फोन से बता दिया, सब ठीक हैं और उनके सूत्रों के अनुसार सभी भारतीय जिंदा है। कितनी हैरानी की बात है कि भारत सरकार को पक्का पता है कि हमारे लोग जिंदा है, लेकिन वह पिछले डेढ साल से हमें यह बताने को तैयार नहीं कि उन्हें बाहर निकालने के लिए क्या कर रही है।
एक बात साफ है कि भारत की इस कूटनीतिक विफलता ने परिजनों की आस तोड़ी है और पेरिस हमले के बाद अपने लोगों को जिंदा देखने की उम्मीद भी बमों के निशाने पर आ गई है।