अफगानिस्तान में तालिबानी शासन की शुरुआत होने के बाद से ही आम जनता परेशान है। एक तरफ जहां लोग देश छोड़कर भागने की हर कोशिश में लगे हुए हैं या देश छोड़कर जा चुके हैं। वहींं, दूसरी ओर मुल्क के अलग-अलग हिस्सों में जनता ने सड़कों पर उतरकर तालिबान का विरोध करना शुरू कर दिया है, लोगों में तालिबान के खिलाफ गुस्सा और नाराजगी दिखाई दे रही है, जिससे यह स्पष्ट नजर आ रहा है कि मुल्क में तालिबान के खिलाफ बड़ा विद्रोह पनप रहा है। देश में जगह-जगह अफगानी नागरिक हाथों में झंडा लिए तालिबान का विरोध करते नजर आ रहे हैं। 19 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस रैली में राष्ट्रीय ध्वज लहराने पर तालिबानियों ने भीड़ पर गोली चला दी, जिसमें कई लोगों की मौत हो गई। ऐसे ही एक विरोध के खिलाफ एक दिन पहले ही तालिबान की ओर से गोलीबारी में तीन नागरिकों की मौत हो गई थी। आजतक की खबर के मुताबिक, इस बीच अफगानिस्तान के पंजशीर इलाकों में तालिबान के खिलाफ लड़ने के लिए पूर्व सैनिकों ने मोर्चा संभालना शुरू कर दिया है। इन सभी की अगुवाई अहमद मसूद कर रहे हैं, जो कि तालिबानियों को मात दे चुके अहमद शाह मसूद के बेटे हैं। वहीं, खबर ये भी है कि अंद्राब बघलान के तीन जिलों को तालिबान के कब्जे से मुक्त करा लिया गया है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अफगान न्यूज का दावा है कि अफगानिस्तान में अब्दुल हामिद दादगर ने तालिबान के कब्जे वाले अंद्राब बघलान के तीन जिलों को वापस छीन लिया है। हालांकि इस बारे में तालिबान की ओर से कुछ नहीं कहा गया है।
तालिबान के खिलाफ सड़कों पर महिलाएं
सरकारी दफ्तरों और प्राइवेट ऑफिस में काम करने वाली महिलाओं ने शुक्रवार को तालिबान के खिलाफ प्रदर्शन किया। महिलाओं ने काम करने की आजादी मांगी और फिर से ऑफिस खोले जाने की अपील की।
असदाबाद शहर में बड़ा विरोध प्रदर्शन
तालिबान की ओर से 15 अगस्त को काबुल पर कब्जा करने के बाद से असदाबाद शहर में एक बड़ा विरोध प्रदर्शन देखने को मिला, जिसमें सफेद तालिबान के झंडे फाड़े गए। यह प्रदर्शन एक बार फिर से देश की सत्ता पर कब्जा करने वाले तालिबान के विरोध में उठने वाले पहले स्वर के तौर पर भी देखा जा सकता है।
काबुल में लहराया गया राष्ट्रीय ध्वज
वहीं, महिलाओं सहित सैकड़ों प्रदर्शनकारी काबुल में राष्ट्रीय ध्वज लहराते हुए और 'हमारा झंडा, हमारी पहचान' के नारे लगाते हुए एकत्र हुए। तालिबान लड़ाकों ने भीड़ को तितर-बितर करने के प्रयास में कुछ प्रदर्शनकारियों को घेर लिया और उन्होंने चिल्लाते हुए हवा में राउंड फायरिंग की। वहीं, अब्दुल हक स्क्वायर पर एक प्रदर्शनकारी सफेद तालिबान के झंडे को नीचे खींचने के लिए एक खंभे पर चढ़ गया और उसे उताकर काले, लाल और हरे रंग के राष्ट्रीय ध्वज लगा दिया।
जलालाबाद में तीन लोगों की मौत
जलालाबाद में राष्ट्रीय ध्वज लहरा रहे प्रदर्शनकारियों पर तालिबान लड़ाकों द्वारा की गई गोलीबारी में तीन लोगों की मौत हो गई थी। अफगानी उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह, जो अपने नेतृत्व में तालिबान के विरोध में रैली करने की कोशिश कर रहे हैं, ने विरोध प्रदर्शनों के लिए समर्थन व्यक्त किया है।
काबुल की सड़कों से महिलाएं नदारद
तालिबान द्वारा तेज और अप्रत्याशित आक्रमण के चार दिन बाद अफगानिस्तान की राजधानी की सड़कों पर कोई महिला नजर नहीं आई। काबुल के पतन के बाद उसने कई व्यवसायी महिलाओं के साथ अपना रेस्तरां बंद कर दिया। तालिबान के कब्जे के बाद से सभी शैक्षणिक केंद्र, स्कूल, विश्वविद्यालय, सरकारी भवन और निजी कार्यालय भी बंद कर दिए गए हैं।
देश छोड़ने की कोशिश में जुटे कई अफगानी
तालिबान ने जब से अफगानिस्तान पर कब्जा जमाया है, तब से बड़ी संख्या में लोग देश छोड़कर भाग रहे हैं। रविवार को देश की सरकार गिरने के बाद से ही अफगान नागरिक देश छोड़ने की कोशिश में जुटे हैं किसी भी हालत में वह अपना देश छोड़ना चाहते हैं। जमीनी बॉर्डर क्रॉसिंग पर तालिबान के कब्जे के बाद से ही लोग देश से बाहर निकलने के एकमात्र रास्ते काबुल एयरपोर्ट की ओर भाग रहे हैं। इन लोगों को तालिबान के शासन चलाने के तरीके को लेकर डर है। हालांकि, तालिबान ने इस बार अपना उदार चेहरा सामने रखने की बात कही है। इसने कहा है कि वो शांति चाहता है और पुराने दुश्मनों से बदला नहीं लिया जाएगा। साथ ही देश पर इस्लामी कानून के ढांचे के भीतर शासन चलाया जाएगा और महिलाओं के अधिकारों का सम्मान किया जाएगा।
तालिबानी शासन में होते थे लोगों पर अत्याचार
गौरतलब है कि 1996 से लेकर 2001 तक अपने शासनकाल के दौरान तालिबान ने सख्त शरिया कानून के तहत अफगानिस्तान पर शासन चलाया। इस दौरान महिलाओं के अधिकारों को सीमित कर दिया गया। छोटी से छोटी गलती पर सार्वजनिक मौत की सजा देने का प्रावधान था। इसी दौरान बामयान में स्थित प्राचीन बुद्ध की मूर्ति को बम से उड़ा दिया गया। हालांकि, फिर 9/11 हमले के बाद अमेरिका ने तालिबान को सत्ता से बेदखल किया। इसके बाद से ही तालिबान सत्ता की वापसी को लेकर जद्दोजहद कर रहा था। वहीं, एक बार फिर अफगानिस्तान की सत्ता तालिबान के हाथों में आ गई है।