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परदेस में नरेंद्र मोदी के स्वागत और विरोध के तीखे स्वर

भारत के जमीनी मुद्दों की गूंज प्रधानमंत्री मोदी की विदेश यात्राओं में सुनाई देने लगी है, ब्रिटेन की यात्रा में दोनों पक्षों की तैयारियां पूरी
परदेस में नरेंद्र मोदी के स्वागत और विरोध के तीखे स्वर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश यात्राओं की तैयारी कई महीने पहले से शुरू हो जाती है। उनके भव्य स्वागत के लिए संबंधित देश में बसने वाले भारतीयों को जुटाने का तंत्र लंबी-चौड़ी योजनाओं के साथ महीनों पहले पूरी तरह सक्रिय हो जाता है। अब धीरे-धीरे एक फर्क यह आ रहा है कि स्वागत में जुड़ने वाले हुजूम के साथ विरोध में खड़े होने वालों की तैयारियां भी जोर पकड़ने लगी हैं। मोदी की अमेरिका यात्रा में भी ऐसा ही कुछ देखने को मिला और अब लंदन यात्रा के दौरान भी ऐसा ही कुछ होने जा रहा है। नरेंद्र मोदी की ब्रिटेन यात्रा से पहले एक तरफ जहां मोदी एक्सप्रेस बस लॉन्च हो रही है, वहीं दूसरी तरफ विरोध में लोग जुट रहे हैं। लंदन में 12 नवंबर को 10 डाउनिंग स्ट्रीट पर बड़े प्रदर्शन के लिए पोस्टर-बैनर, हस्ताक्षर अभियान आदि तेजी से चल रहा है। एक तरफ अभियान है 'मोदी नॉट वेलकम’ तो दूसरी तरफ 'यूके वेलकम मोदी’ का जबर्दस्त धमाल है। दोनों अभियान जिस तरह चल रहे हैं, उससे साफ होता है कि मामला एकतरफा नहीं है। स्वागत के शोर में विरोध के स्वर भी उभर रहे हैं।

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वैसे, ब्रिटेन में किसी दूसरे देश के प्रधानमंत्री के स्वागत के लिए बस लॉन्च होना अपने आप में ऐतिहासिक परिघटना है। प्रधानमंत्री मोदी की ब्रिटेन यात्रा के दौरान भव्य आयोजनों की शृंखला की तैयारी पूरी हो चुकी है जिसमें बड़ी संख्या में लोगों के जुटने का दावा किया जा रहा है। बस के लिए लेबर पार्टी के सांसद कीथ वाज, वीरेंद्र शर्मा, स्टीव पाउंड और सीमा मल्होत्रा ने अपनी जेब से पैसा देने की बात कही। बाद में सीमा मल्होत्रा ने इस बात का खंडन किया और कहा, वह इस काम में शामिल नहीं हैं। ब्रिटेन के दलित सॉलिडेरिटी नेटवर्क की मीना वर्मा ने आउटलुक को फोन पर बताया कि इस तरह किसी भी प्रधानमंत्री का स्वागत और विरोध इतने बड़े पैमाने पर पहली बार हो रहा है। मोदी और उनकी पार्टी के लोग भारत में अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों को उत्पीड़न का शिकार बना रहे हैं। लिहाजा लंदन में मोदी के खिलाफ व्यापक सार्वजनिक विरोध की तैयारी हो रही हैं। इस अभियान को मुख्य रूप से संगठनों के दो बड़े समूह चला रहे हैं- साउथ एशिया सॉलिडेरिटी और आवाज नेटवर्क।

साउथ एशिया सॉलिडेरिटी की अमृत विल्सन के अनुसार, ब्रिटेन में बसे सिख, मुसलमान, ईसाई और दलित समुदाय के अलावा धर्मनिरपेक्ष तबके ने 'मोदीनॉटवेलकम’ और 'नोटूमोदी’ हैशटैग के साथ एक वृहद अभियान इस सिलसिले में छेड़ा है।

इन समुदायों का और उस पर भी ब्रिटेन के दलित संगठनों का मोदी की यात्रा का विरोध करना इसलिए भी महत्वपूर्ण हो उठता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ब्रिटेन यात्रा का एक बड़ा मकसद वहां अंबेडकर म्यूूजियम का उद्घाटन करना है। इस बारे में मोदी पहले ही ट्वीट कर चुके हैं। ब्रिटेन में जाकर मोदी दलितों को आकर्षित करने के लिए बड़ा दांव लगाने की तैयारी में हैं। ऐसे में भारत की जमीनी हकीकत को उकेरने वाले मुद्दों को सामने रखकर प्रधानमंत्री को घेरने की तैयारी चलाना अपना अलग महत्व रखता है।

इस तरह ब्रिटेन की आंतरिक राजनीति के तार भी जुड़े हुए हैं। विरोध प्रदर्शन कर रहे संगठनों और  समुदायों ने इस बात पर भी निराशा जाहिर की है कि पहले दलित हितों के कट्टर समर्थक रहे एक सांसद समेत चार लेबर सांसदों ने और शेडो कैबिनेट के एक सदस्य ने सार्वजनिक रूप से यह कहा है कि वे अपनी तनख्वाहों में हुई वृद्धि को वेम्बले में होने वाली मोदी की पार्टी के आयोजन के लिए दान देंगे।  इनका कहना है कि भारतीय प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ आरोपों की फेहरिस्त लंबी है- इसमें  गुजरात में मुसलमानों के नरसंहार से लेकर सिविल सोसायटी के उत्पीड़न तक, इंडियाज डॉटर फिल्म पर पाबंदी, उनकी पार्टी व सरकार द्वारा 'देश का दुश्मन’ समझे जाने वाले लोगों को वीजा देने पर रोक, दलितों पर रोजाना हो रहे अत्याचारों पर उनकी सरकार की पूरी खामोशी वगैरह शामिल हैं। गौरतलब है कि इस साल जुलाई में लगभग चालीस ब्रिटिश सांसदों ने एक प्रस्ताव पर दस्तखत करते हुए प्रधानमंत्री डेविड कैमरन से मांग की थी कि वह भारत में मानवाधिकार हनन की घटनाओं पर चिंताओं को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने उठाएं। इन संगठनों का आरोप है कि नरेंद्र मोदी के पिछले साल सत्ता में आने के बाद से संघ-भाजपा से जुड़े संगठनों के लोगों द्वारा मुसलमानों और दलितों के खिलाफ नियोजित तरीके से हिंसा की जा रही है। इन घटनाओं की संख्या बहुत है हालांकि इनमें से कुछ ही मीडिया तक पहुंच पा रही हैं। इनमें भी गोहत्या के आरोपों को लेकर कुछ घटनाएं तो पिछले छह हफ्तों के दौरान ही हुई हैं—जैसे कि दिल्ली के निकट दादरी में 52 साल के मोहम्मद अखलाक की हत्या, कश्मीर में एक ट्रक पर पेट्रोल बम फेंककर 19 साल के जाहिद अहमद बट की हत्या, हिमाचल प्रदेश में 22 साल के नोमान की हत्या प्रमुख हैं। दलितों के खिलाफ हो रही हिंसा में हाल ही में दिल्ली के निकट फरीदाबाद में दलित परिवार को जिंदा जलाने की घटना प्रमुख है जिसमें दो मासूमों की जान चली गई। देश में इसी तरह के माहौल को पनपने की छूट देकर मोदी दुनिया में कॉरपोरेट जगत को लुभाने के लिए घूम रहे हैं।

इसके साथ ही मोदी की ब्रिटेन यात्रा के खिलाफ चल रहे अभियान के अंग के ही तौर पर ब्रिटेन के ब्रिक्सटन में 6 नवंबर को 'रिक्लैम दीवाली’ नाम से एक आयोजन किया जा रहा है। यह दीवाली भी सेक्युलर तरीके से मनाने की इन संगठनों की योजना है जिसमें साझी संस्कृतियों, घुलती सीमाओं, सपनों को देखने और उत्पीड़न के खिलाफ एकजुट होने का जश्न मनाया जाएगा। इन संगठनों ने इस दीवाली को हिंदुत्ववादी फासीवाद, धार्मिक घृणा, पितृसत्ता, जाति, कॉरपोरेट लूट, नस्लवाद, उपनिवेशवाद और पर्यावरण विनाश के खिलाफ मनाने का आह्वान किया है। कारिबु सेंटर में होने वाले इस आयोजन से एकत्र होने वाली सारी राशि मुजफ्फरनगर दंगों के पीड़ित परिवारों को दी जाएगी। इसका आयोजन साउथ एशिया सॉलिडरिटी ग्रुप, दलित सॉलिडेरिटी नेटवर्क, साउथ एशियन वूमेंस क्रिएटिव कलेक्टिव और फ्रीडम विदाउट फीयर प्लेटफार्म द्वारा मिलकर किया जा रहा है।

ब्रिटेन के दलित संगठन वहां भी जातिगत भेदभाव के मुद्दों को उठाते रहे हैं। इसी क्रम में इन संगठनों ने ब्रिटेन में जातिगत भेदभाव से निबटने के लिए एक प्रस्ताव पर दस्तखत करने के लिए अपने स्थानीय सांसद पर दबाव डालने का अनुरोध किया है। इसी क्रम में ब्रिटेन निवासी लेखक आतिश तसीर,जो भारतीय लेखिका तवलीन सिंह और पाकिस्तानी बिजनेसमैन स्वर्गीय सलमान तसीर के बेटे हैं, का कथन देखा जा सकता है कि जिस तरह भारत में असहिष्णुता बढ़ती जा रही है, उससे नरेंद्र मोदी अंतर्राष्ट्रीय फलक पर फिर से अलग पड़ जाएंगे। भारतीय लेखकों ने अपने सम्मान लौटाकर बहुत सही कदम उठाया है, इसकी गूंज अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंची है। अमेरिका के उदार प्रेस में भी मोदी सरकार की इन जबर्दस्त गड़बडिय़ों पर लिखा जाने लगा है।

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