Advertisement

परमाणु हथियारों के खिलाफ अभियान को नोबेल शांति पुरस्कार

इंटरनेशनल कैंपेन टू अबोलिश न्यूक्लियर वीपंस (आईसीएएन) को इस साल का नोबेल शांति पुरस्कार मिला है। यह...
परमाणु हथियारों के खिलाफ अभियान को नोबेल शांति पुरस्कार

इंटरनेशनल कैंपेन टू अबोलिश न्यूक्लियर वीपंस (आईसीएएन) को इस साल का नोबेल शांति पुरस्कार मिला है। यह संगठन परमाणु हथियारों के खात्मे के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अभियान चला रहा है। आईसीएएन हथियारों पर पूरी तरह रोक के लिए संधि और उसे अमल में लाने के प्रयासों में जुटा है।


 

इस दौरान नोबेल पुरस्कार समिति ने कहा, “परमाणु हथियारों के इस्तेमाल से होने वाली मानवीय त्रासदी की तरफ लोगों का ध्यान दिलाने और अपनी कोशिशों से इस तरह के हथियारों पर रोक लगाने की संधि के लिए आईसीएएन को सम्मानित करने का फैसला किया गया है। बीते सालों में परमाणु हथियार मुक्त दुनिया के लिए इस समूह ने नई दिशा में जिस ऊर्जा के साथ काम किया है, वैसा किसी ने नहीं किया।”


 

प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए संगठन का चयन ऐसे वक्त में किया गया है,  जब उत्तर कोरिया और अमेरिका की तनातनी को लेकर दुनिया पर परमाणु जंग का खतरा मंडरा रहा है। साल की शुरुआत में अमेरिका का राष्ट्रपति बनने के बाद से डोनाल्ड ट्रंप कई मौकों पर परमाणु हथियारों की वकालत कर चुके हैं। आतंकियों के हाथों में इन विध्वंसक हथियारों के लगने की भी विशेषज्ञ आशंका जताते रहे हैं।


 

परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए 2007 में आईसीएएन की शुरुआत हुई। दुनिया के करीब सौ देशों के गैर सरकारी संगठन इससे जुड़े हैं। आईसीएन के प्रयासों से ही संयुक्त राष्ट्र ने इसी साल सात जुलाई को ट्रिटी ऑन द प्रोबिहेशन ऑफ न्यूक्लियर वीपंस (टीपीएनडब्ल्यू) को स्वीकार किया था। परमाणु हथियारों पर रोक लगाने वाली इस संधि का 122 सदस्य देशों ने समर्थन किया था। हालांकि अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस, चीन जैसे बड़े देश इस बातचीत से बाहर थे। आईसीएन के प्रयासों के कारण ही यूएन महासभा के 71 साल के इतिहास में पहली बार परमाणु हथियार मुक्त दुनिया पर प्रस्ताव आया।


 

आईसीएएन की कार्यकारी निदेशक बैट्रिक फिन ने बताया टेलीविजन पर आधिकारिक ऐलान से पहले जब उन्हें इसकी जानकारी मिली तो उन्होंने भरोसा नहीं हुआ। उन्हें लगा कि फोन करने वाला मजाक कर रहा है। उन्होंने कहा, इससे परमाणु हथियार संपन्न देशों और अपनी सुरक्षा के ल‌िए इन हथियारों पर निर्भर देशों को संदेश गया है कि यह अस्वीकार्य है। हम इसका समर्थन नहीं कर सकते। इसे जायज ठहराने के ल‌िए बहाने नहीं बना सकते।

 

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad