शीत युद्ध के दिनों में भारत, इंडोनेशिया, पाकिस्तान, श्रीलंका, और बर्मा के अलावा एशिया और अफ्रीका के 24 देश अमेरिकी दबाव को दरकिनार कर बांडुंग सम्मेलन के जरिए एक मंच पर आए थे। इसी से आगे चलकर गुट-निरपेक्ष आंदोलन खड़ा हुआ। ये देश शीत युद्ध के दौरान किसी भी पाले नहीं गए। गुट निरपेक्ष आंदोलन की रूपरेखा तैयार करने और इस विचारधारा के देशों को एकजुट करने में जवाहरलाल नेहरू ने अहम भूमिका निभाई थी।
1955 के बांडुंग सम्मेलन में 10 घोषणाएं पारित हुई थीं। उन घोषणाओं में एक में पंचशील सिद्धांत था जो आगे चलकर भारत की विदेश नीति का मेरूदंड बना। इस सम्मेलन में कुछ अविकसित देशों ने आपस में साथ आते हुए निश्चय किया कि वे शीतयुद्ध काल में किसी भी बड़ी शक्ति के साथ नहीं होंगे तथा मानवाधिकार, समानता एवं राष्ट्रों की संप्रभुता का सम्मान करेंगे। इसके बावजूद भारत सरकार ने बांडुंग सम्मेलन के स्थापना समाराेह में नेहरू का उल्लेख नहीं किया है। जबकि दूसरी तरफ सुषमा स्वराज ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डिजिटल इंडिया और मेक इन इंडिया अभियान का बखान करना नहीं भूलीं।
करीब 90 देशों के प्रतिनिधियों ने आज इंडोनेशिया के बांडुंग में 131 साल पुराने होटल सेवाय से गेडुंग मर्डेका नामक एक अन्य ऐेतिहासिक स्थल तक मार्च किया। गेडुंग मर्डेका ने ही सन् 1955 के बांडुंग सम्मेलन की मेजबानी की थी जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में भारत समेत 25 देशों ने हिस्सा लिया था। आज के कार्यक्रम का उद्देश्य बांडुंग सम्मेलन की इस 60 वीं वर्षगांठ को मनाना और उसके मूल्यों के प्रति अपनी निष्ठा दोहराना था। गेडुंग मर्डेका (स्वतंत्रता भवन) जिसे अब संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया है, वहां आज गणमान्यों की कुर्सियां सजाई गई थी जैसे ठीक 60 साल पहले लगाई गई थीं।
इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, जिंबाम्बे के राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे उन नेताओं में शामिल थे जिन्होंने हालैंड की ऐतिहासिक इमारतों के मध्य के मार्ग पर मार्च किया। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज अपने पैर में जख्म की वजह से इस मार्च में हिस्सा नहीं ले पाईं लेकिन जहां उसका समापन हुआ वह वहां मौजूद थीं। पूरे मार्ग पर नेहरू, इंडोनेशिया के पहले राष्ट्रपति सुकर्णो, तत्कालीन चीनी प्रधानमंत्री चाऊ एनलाई, मिस्र के जमाल अब्दुल नासेर और अन्य शीर्ष नेताओं के पोस्टर लगे थे।