पिछले दिनों पाकिस्तान को उस वक्त दो बड़े झटके लगे जब अमेरिका ने उसे एफ-16 विमान सौदे में छूट से इंकार कर दिया और एनएसजी में भारत को शामिल करने की वाशिंगटन ने खुलकर पैरवी की। पाकिस्तान और अमेरिका के बीच मतभेद इसको लेकर बढ़ गए हैं कि अफगानिस्तान में तालिबान से कैसे निपटना है। कड़वाहट उस वक्त और बढ़ गई जब अमेरिका ने आरोप लगाया कि पाकिस्तान चरमपंथी समूहों को खत्म करने में नाकाम रहा है। समाचार पत्र डॉन के अनुसार वाशिंगटन स्थित पाकिस्तानी दूतावास के प्रवक्ता नदीम होतियाना ने इसकी पुष्टि की है कि उनका देश अब पैसे देकर लॉबिस्ट की सेवा लेने पर गौर कर रहा है, लेकिन इसको लेकर अभी कोई फैसला नहीं हुआ है। इससे पहले 2008 में पाकिस्तान ने लॉबिंग के लिए लॉक लॉर्ड स्ट्रेटजीज की सेवा ली थी, लेकिन इस्लामाबाद जुलाई, 2013 में इस कंपनी के साथ अनुबंध को आगे बढ़ाने में नाकाम रहा।
इस समूह की सेवा पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की सरकार ने मुख्य रूप से इसलिए ली थी कि इस कंपनी के एक साझेदार मार्क सेगल पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो के करीबी मित्र रहे हैं। पाकिस्तानी दूतावास लॉक लॉर्ड स्ट्रेटजीज को 75,000 डॉलर प्रति माह देता था, हालांकि वह अमेरिका में अपनी छवि चमकाने में नाकाम रहा। इस कंपनी की सेवा लेने का पाकिस्तान का मुख्य मकसद कैपिटल हिल में अपने हितों को बढ़ावा देना था जहां अक्सर कई कांग्रेसी सदस्य इस्लामाबाद से जुड़े मुद्दों पर उसके नजरिये से विपरीत जाकर चर्चा करते हैं। वैसे इस कंपनी का हिल में कोई खास असर नहीं हुआ। पीएमएल-एन की सरकार बनने के बाद पाकिस्तान के राजनयिकों ने शुरूआत में अच्छा काम किया लेकिन दोनों देशों के रिश्ते खराब होते गए। ओबामा प्रशासन अफगानिस्तान में ऐसी स्थिति लाने में पाकिस्तान की मदद चाहता था जिसमें यह कहा जा सके कि अमेरिका का अभियान सफलतापूर्वक संपन्न हुआ है। पाकिस्तानी अधिकारियों ने सरेआम यह स्वीकार करना आरंभ कर दिया कि वे प्रयास कर सकते हैं लेकिन सुलह की प्रक्रिया में शामिल होने के लिए तालिबान को विवश नहीं कर सकते।