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मिठास सरहदों की मोहताज नहीं

दूध-खोए की बनी मिठाइयां सत्ता हठ के चलते सरहदों की मोहताज हो सकती हैं लेकिन रिश्तों की मिठास किसी लकीर और सरहद की मोहताज नहीं। राजनयिक संबंधों में तनातनी के चलते इस दफा बेशक सरहद पर दोनों देशों ने एक-दूसरे को मिठाइयां नहीं दीं लेकिन इस पार और उस पार के लोगों ने इस रवायत को कायम रखते हुए बता दिया कि दिलों के रिश्ते सरहदी कांटेदार तारों से नहीं काटे जा सकते।
मिठास सरहदों की मोहताज नहीं

इस पार यह बीड़ा उठाया आईटी प्रोफेशनल समीर गुप्ता ने और उस पार पाकिस्तान की नामी मानवाधिकार कार्यकर्ता सईदा दीप ने। समीर बताते हैं  ‘ मैंने आज तक कहानियां सुनी थीं कि पाकिस्तान के लोग ऐसे होते हैं वैसे होते हैं लेकिन जब मैं लाहौर गया तो तंदूर पर रोटी लगाने वाले से लेकर जिसे भी पता लगा कि मैं हिंदूस्तानी हूं, सभी ने गले से लगा लिया।’ समीर के अनुसार उसी दिन से उन्होंने ठान लिया कि वह अपनी हद अनुसार तमाम कोशिशें करेंगे जिससे कम से कम आम आदमी के मन से मनमुटाव और शक मिटाए जा सकें। समीर बताते हैं कि जिस प्रकार उनके मन में पाकिस्तानियों के बारे में कई शक-शुबहे थे, जो वहां जाने पर मिट गए, इसी प्रकार वहां के आम नागरिकों के मन भी भारतीयों के प्रति ऐसे शक होंगे। ये तमाम शक तभी मिट सकते हैं जब दोनों देशों आम नागरिकों के लिए वीजा नियमों में ढील दें। जहां तक आतंकियों के भारत में दाखिल होने की बात है तो आतंकी तो कभी वीजा लेकर आते भी नहीं हैं।

पाकिस्तान से सईदा दीप और भारत से समीर गुप्ता ने जब इस दफा 15 अगस्त को एक-दूसरे को मिठाई न देने के बारे में सुना तो इन्होंने यह जिम्मेदारी ली। लेकिन समीर के पास वीजा नहीं था तो उन्होंने यह जिम्मेदारी दिल्ली के रहने वाले प्रमोद पाहवा को दी। प्रमोद पाहवा यहां से तरह-तरह की मिठाई के 68 डिब्बे लेकर लाहौर गए। गाजियाबाद के इंग्राहिम इंग्लिश स्कूल के बच्चों ने पाकिस्तान भेजने के लिए अपने हाथों से ग्रीटिंग कार्ड्स बनाए। यहां तक की गाजियाबाद में जिस बीकानेर से वे मिठाई लेकर गए वहां के मालिक ने इन डिब्बों की विशेष सजावट के लिए खुद समय निकाला। समीर बताते हैं कि लाहौर में यह मिठाइयां लेकर पाहवा सईदा दीप के घर गए और वहां से भी सईदा ने हिंदुस्तानियों के लिए 68 डिब्बे मिठाई के भेजे।

समीर के अनुसार सरकारें आपस में अमन से नहीं रहना चाहती हैं। आखिर क्यों सैनिकों को युद्ध में झोंक देना चाहती हैं। लेकिन सिविल सोसाइटी के देखने में आया है कि दोनों देशों के आम नागरिकों को इससे कोई लेना-देना नहीं है। वे अमन और प्रेम से रहना चाहते हैं। एक-दूसरे के देश आना-जाना चाहते हैं। इसके लिए वीजा नियमों में ढील दी जानी चाहिए। 

 

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