संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने भारत के नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 को लेकर कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है। भारतीय संसद के निचले सदन लोकसभा में यह बिल पास हो गया है, अब राज्यसभा में आज इसे पेश किया जाएगा। यूएन ने यह कहा कि संस्था की एकमात्र चिंता यह सुनिश्चित करना है कि सभी देश की सरकारें गैर-भेदभावकारी कानून बनाएं।
यूएन को सिर्फ इस बात की चिंता
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के उप-प्रवक्ता फरहान हक ने विधेयक के पारित होने के बारे में संयुक्त राष्ट्र की प्रतिक्रिया के बारे में पूछे जाने पर कहा, 'जहां तक मुझे जानकारी है, यह कानून एक विधायी प्रक्रिया से गुजर रहा है। जब तक यह कानून विधायी प्रक्रिया के दौर से गुजर रहा है, तब तक हम इस पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे।' हक ने अपनी साप्ताहिक ब्रीफिंग में कहा, 'दरअसल, हमारी चिंता केवल यह सुनिश्चित करने की है कि सभी सरकारें गैर-भेदभावकारी कानूनों का उपयोग करें।'
नागरिकता संशोधन विधेयक लोकसभा में पास
नागरिकता संशोधन विधेयक सोमवार यानी 9 दिसंबर को लोकसभा में पास हो गया है। संसद में कई सांसदों ने इस बिल का विरोध किया, लेकिन अमित शाह ने सभी को जवाब दिया। दरअसल इस विधेयक के अनुसार 2014 तक भारत में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बंग्लादेश से आए गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता और उससे संबंधित सभी सुविधाएं मिल जाएगी।
गैर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या बढ़ेगी
नागरिकता के लिए जरूरी 11 साल की अनिवार्यता खत्म कर इसे छह साल कर दी गई है। यानी 2021 में होने वाले पश्चिम बंगाल, असम, केरल चुनाव तक कई राज्यों में ऐसे गैर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या बढ़ेगी जो नागरिकता की चाह लिए वर्षों से भारत मे रह रहे थे। अपुष्ट सूत्रों के अनुसार माना जा रहा है कि देश में फिलहाल लगभग दो करोड़ ऐसे लोग हैं जो विभिन्न राज्यों में बसे हैं।