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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कश्मीर को लेकर बंद कमरे में बैठक

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के सदस्यों के बीच कश्मीर मुद्दे पर न्यू यॉर्क में चर्चा शुरू...
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कश्मीर को लेकर बंद कमरे में बैठक

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) के सदस्यों के बीच कश्मीर मुद्दे पर न्यू यॉर्क में चर्चा शुरू हो गई है। पाकिस्तान ने इस मुद्दे को लेकर विश्व निकाय को पत्र लिखा था जिसके बाद यह बैठक हो रही है। पाकिस्तान के करीबी सहयोगी चीन ने परिषद में बंद कमरे में विचार-विमर्श करने के लिए कहा था।

संयुक्त राष्ट्र के एक राजनयिक ने बताया था कि चीन ने सुरक्षा परिषद की कार्यसूची में शामिल भारत पाकिस्तान प्रश्न पर बंद कमरे में विचार-विमर्श करने के लिए कहा था। राजनयिक ने कहा, ‘यह अनुरोध सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष को पाकिस्तान के पत्र के संदर्भ में था।’ परिषद की कार्यावलि में कहा गया है, ‘भारत/पाकिस्तान पर सुरक्षा परिषद का विचार विमर्श (बंद कमरे में) सुबह बजे सूचीबद्ध है।’

विचार-विमर्श सुरक्षा परिषद के सदस्यों की अनौपचारिक बैठकें होती हैं

उल्लेखनीय है कि बंद कमरे में बैठकों का ब्यौरा सार्वजनिक नहीं होता और इसमें बयानों का शब्दश: रेकॉर्ड नहीं रखा जाता। विचार-विमर्श सुरक्षा परिषद के सदस्यों की अनौपचारिक बैठकें होती हैं। संयुक्त राष्ट्र के रिकॉर्ड के मुताबिक, आखिरी बार सुरक्षा परिषद ने 1964-65 में ‘भारत-पाकिस्तान प्रश्न’ के अजेंडा के तहत जम्मू कश्मीर के क्षेत्र को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद पर चर्चा की थी।

पाक ने की थी मांग

हाल में पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा था कि उनके देश ने, जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करने के भारत के फैसले पर चर्चा के लिए सुरक्षा परिषद की आपात बैठक बुलाने की औपचारिक मांग की है। कुरैशी ने कहा था कि उन्होंने सुरक्षा परिषद अध्यक्ष से 'भारत के फैसले से दक्षिण एशिया में शांति एवं सुरक्षा के लिए पैदा हुए खतरों' पर विचार के लिए परिषद की आपात बैठक बुलाने का आग्रह किया है। कुरैशी का कहना है कि भारत का फैसला 'अवैध है और संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों के खिलाफ है।'

विशेष दर्जा खत्म करने का फैसला भारत का आंतरिक मामला

गौरतलब है कि विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सोमवार को बीजिंग में चीन के विदेश मंत्री वांग यी के साथ हुई द्विपक्षीय मुलाकात में स्पष्ट किया था कि जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने का फैसला भारत का आंतरिक मामला है।

उन्होंने कहा था कि यह बदलाव बेहतर प्रशासन और क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए है एवं फैसले का असर भारत की सीमाओं और चीन के साथ लगती वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर नहीं पड़ेगा।

क्यों और कब की जाती है क्लोज डोर मीटिंग

दरअसल, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रोविजनल रूल्स ऑफ प्रोसीजर के नियम 55 में बंद दरवाजे में प्राइवेट मीटिंग का प्रावधान किया गया है। यह बैठक पूरी तरह से गोपनीय होती है और इसमें सिर्फ सुरक्षा परिषद के 15 सदस्य ही हिस्सा लेते हैं। इस बैठक में उन देशों को भी हिस्सा नहीं लेने दिया जाता है, जिनसे संबंधित मुद्दा होता है।

इस बंद दरवाजे में होने वाली बैठक में सुरक्षा परिषद के सदस्यों द्वारा दिए जाने वाले बयानों का कोई रिकॉर्ड तक नहीं रखा जाता है। इस बैठक की वीडियो रिकॉर्डिंग तक नहीं होती है। लिहाजा बैठक में होने वाली पूरी चर्चा सार्वजनिक नहीं हो पाती है और यह पता नहीं चल पाता कि बैठक में जिस मुद्दे पर चर्चा हुई उस पर किस देश ने किसके पक्ष में या खिलाफ क्या बयान दिया?

इस बैठक में होने वाली चर्चा की जानकारी प्रेस रिलीज जारी करके भी नहीं दी जाती है, बल्कि इसकी जगह कम्यूनीक जारी किया जाता है। इसमें बैठक के संबंध में बेहद संक्षिप्त जानकारी सार्वजनिक की जाती है। इसका मतलब यह हुआ कि सुरक्षा परिषद की बंद दरवाजे में होने वाली बैठक की पूरी जानकारी सिर्फ सदस्य देशों को ही होती है।

भारत भी नहीं ले पाएगा बैठक में हिस्सा

फिलहाल भारत न तो सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है और न ही अस्थायी। इसका मतलब यह हुआ कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बंद दरवाजे में होने वाली बैठक की पूरी जानकारी सार्वजनिक रूप से भारत को नहीं हो पाएगी। ऐसे में माना जा रहा है कि चीन के पास पाकिस्तान के पक्ष में जोरदार वकालत करने और भारत के खिलाफ कुटिल चाल चलने का पूरा मौका रहेगा। हालांकि सुरक्षा परिषद में सुधार करने और भारत को स्थायी सदस्य बनाए जाने की मांग लंबे समय से चली आ रही है।

संयुक्त राष्ट्र में पांच स्थायी और 10 अस्थायी सदस्य होते हैं

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पांच स्थायी और 10 अस्थायी सदस्य होते हैं। चीन, फ्रांस, रूस, यूनाइटेड किंगडम और अमेरिका स्थायी सदस्य हैं, जिनके पास वीटो पावर है। वीटो पावर का मतलब यह हुआ कि अगर किसी प्रस्ताव पर इन पांच देशों में से कोई एक भी विरोध करता है, तो वो प्रस्ताव सुरक्षा परिषद में पास नहीं होता है। इसके अलावा बेल्जियम, जर्मनी, इंडोनेशिया, कुवैत, पेरू, पोलैंड, साउथ अफ्रीका, इक्वेटोरियल गिनी, आइवरी कोस्ट और डोमिनिकन गणराज्य अस्थायी सदस्य हैं। अस्थायी सदस्य दो साल के लिए चुने जाते हैं।

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