और यह सब इसलिए हुआ क्योंकि जेलेंस्की ने संधिपत्र के एक अधिनियम पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया, पुतिन की आलोचना की (जिन्होंने कई मौकों पर जेलेंस्की को मारने की कोशिश की थी) और देश के ‘‘स्वयंभू राजा’’ ट्रंप के सामने घुटने नहीं टेके। सबसे बुरी बात यह है कि ट्रंप इतने लंबे समय से सत्ता में हैं कि उनका मूर्खतापूर्ण व्यवहार सामान्य हो गया है।

पहले समझदार रहे रिपब्लिकन अब या तो डरे हुए हैं या फिर ट्रंप के अधीन हो गए हैं। एलन मस्क का तथाकथित सरकारी दक्षता विभाग (डीओजीई) अमेरिका की सार्वजनिक सेवा व्यवस्था को खत्म कर रहा है और पेशेवरों की जगह चापलूसों को भर्ती कर रहा है जबकि उनकी सोशल मीडिया कंपनी ‘एक्स’ असल नव-नाजियों के विज्ञापनों को मंच मुहैया करा रही है।

पेंटागन में आत्म-विनाश के एक आश्चर्यजनक कदम के तहत रक्षा मंत्री पीट हेगसेथ ने अमेरिकी ‘साइबर कमांड’ को रूस को लक्ष्य करने वाले सभी अभियानों को रोकने का आदेश दिया है।

‘यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट’ (यूएसएआईडी) के वित्तपोषण में कटौती से अमेरिका की ‘सॉफ्ट पावर’ नष्ट हो रही है, जिससे एक शून्य पैदा हो रहा है जिसे चीन खुशी-खुशी भर देगा।

ट्रंप की रणनीति क्या है?

ट्रंप के विध्वंसकारी कदम का वैश्विक स्तर पर भूकंपीय प्रभाव पड़ रहा है। यूक्रेन के खिलाफ युद्ध शुरू करने के लिए रूस की निंदा करने वाले संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव के खिलाफ अमेरिका के मतदान ने उसे रूस, बेलारूस और उत्तर कोरिया के समूह में डाल दिया। यहां तक कि चीन ने भी इस प्रस्ताव पर मतदान से परहेज किया था।

ब्रिटेन में ‘यूगोव’ के सर्वेक्षण में पाया गया कि 48 प्रतिशत ब्रिटिश लोगों का मानना है कि अमेरिका के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने की तुलना में यूक्रेन का समर्थन करना अधिक महत्वपूर्ण है। केवल 20 प्रतिशत लोग यूक्रेन के बजाय अमेरिका का समर्थन करने के पक्ष में हैं।

ट्रंप ने चीन, रूस और अमेरिका द्वारा अपने-अपने रक्षा बजट को आधा करने का जो विचित्र प्रस्ताव दिया है, वह ताकत के बजाय निश्चित रूप से कमजोरी प्रतीत होता है। ऐसा प्रतीत होता है कि ट्रंप का उद्देश्य अमेरिकी व्यवसायों को उच्च शुल्क से घेरना तथा साथ ही रूस को चीन से दूर करना है।

ये तर्क आर्थिक रूप से निरक्षर और भू-राजनीतिक रूप से मूर्खतापूर्ण दोनों हैं।

अमेरिका के सहयोगियों के लिए इसका क्या मतलब है?

ट्रंप के कदमों ने अमेरिका के पारंपरिक प्रतिद्वंद्वियों को निस्संदेह मजबूत किया है लेकिन इसके मित्रों को कमजोर और चिंतित भी किया है।

सरल शब्दों में कहें तो, अब कोई भी अमेरिकी सहयोगी - चाहे वह यूरोप में हो या एशिया में - यह भरोसा नहीं रख सकता कि वाशिंगटन अपनी सुरक्षा प्रतिबद्धताओं को पूरा करेगा।

फरवरी में म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन में नाटो (उत्तर अटलांटिक संधि संगठन) के सदस्यों से अमेरिकी प्रतिनिधियों ने स्पष्ट रूप से कहा कि अमेरिका अब स्वयं को यूरोपीय सुरक्षा का मुख्य ‘गारंटर’ संभवतः नहीं मानता।

अमेरिका के तेजी से पीछे हटने का मतलब है कि यूरोपीय देशों को न केवल शीघ्रता से हथियार जुटाने की इच्छाशक्ति और साधन जुटाने होंगे, बल्कि यूक्रेन की सुरक्षा के लिए सामूहिक रूप से आगे आना होगा।

वे ऐसा कर पाएंगे या नहीं, यह अब भी स्पष्ट नहीं है। यूरोप का निष्क्रियता का इतिहास अच्छे संकेत नहीं देता।

एशिया में भी अमेरिकी सहयोगियों के सामने विकल्प हैं। जापान और दक्षिण कोरिया अब सभी विकल्पों पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं ताकि चीन को रोका जा सके।

आखिरकार, ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकम में इतने कम समय में जो अराजकता फैलाई है, वह अप्रत्याशित और हैरान करने वाली है। ‘अमेरिका फर्स्ट’ (अमेरिका प्रथम) की कोशिश में ट्रंप इसके पतन को और तेज कर रहे हैं। वह अमेरिका को अलग-थलग कर रहे हैं और उसके सबसे करीबी दोस्तों को उस पर भरोसा नहीं है।

ऐसा करके दुनिया के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र ने दुनिया को और भी खतरनाक, अनिश्चित और अंततः एक बदसूरत जगह बना दिया है।