पाकिस्तान के हुक्मरान वर्षों से इनकार करते आ रहे हैं कि भारत में हो रही आतंकी घटनाओं के पीछे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उनका हाथ है, लेकिन दुनिया भर के लोग इससे नावाकिफ नहीं हैं। दरअसल वहां की सियासत की यह कड़वी सच्चाई है, जिसे पाकिस्तान स्वीकार करने को तैयार नहीं, भले ही उसे इसका भारी खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। यह एक ‘ओपन सीक्रेट’ है कि वहां की फौज और आइएसआइ का सबसे अहम एजेंडा सिर्फ और सिर्फ भारत विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देना है। जब कभी भारत में दहशतगर्दी का कोई वाकया होता है, तो आम तौर पर शक नहीं, यकीन की सुई उसी ओर इशारा करती है। इसके बावजूद पाकिस्तान भारत में हुई किसी भी आतंकी घटना में अपनी संलिप्तता से साफ इनकार करता रहा है। उसके नेता जोर देकर कहते हैं कि उनका देश तो खुद लंबे समय से आतंकवाद का शिकार है। इस बार भी जब 22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम में 26 लोगों को आतंकियों ने गोलियों से भून डाला और घटना के पीछे पाकिस्तान पोषित आतंकी संगठन का हाथ होने की खबरें आने लगीं तो पाकिस्तान फिर वही पुराना राग अलापने लगा। वहां के नेता तो यहां तक इल्जाम लगाते रहे हैं कि भारत अपनी खुफिया एजेंसियों के जरिए पाकिस्तान में दहशतगर्दी को अंजाम देता रहा है।
प्रथम दृष्टि, वे ऐसे आरोप महज अपनी सियासत को चमकाने के लिए लगाते हैं। पाकिस्तान की राजनीति भारत विरोध की धुरी के इर्दगिर्द घूमती है, खासकर कश्मीर मसले पर। जुल्फिकार अली भुट्टो ने शायद इसी वजह से भारत के साथ एक हजार साल के युद्ध की बात की थी। पाकिस्तान में हुकूमत किसी भी दल की हो, भारत और कश्मीर पर सभी की राय एक ही होती है। वहां लोगों की चुनी गई सरकार का कोई प्रधानमंत्री अगर कश्मीर मसले से इतर देश की तरक्की के लिए कोई पहल करने की कोशिश करता भी है, तो उसे भारी कीमत चुकानी पड़ती है। देश के बंटवारे के बाद जबसे पाकिस्तान अस्तित्व में आया है, वहां की सियासत में अधिकतर समय फौज का ही दखल रहा है। हालिया घटनाओं से इस बात की पुष्टि होती है कि वहां अभी भी फौज सरकार पर हावी है।
आखिर इसके क्या कारण रहे हैं? बीसवीं सदी में सामरिक शक्ति प्रदर्शन की होड़ में दुनिया भर के देश मुख्य रूप से दो गुटों में बंटे हुए थे। शीत युद्ध के काल में पाकिस्तान अमेरिका का प्रमुख सहयोगी था, जिसकी बदौलत उसे अपनी सामरिक शक्ति बढ़ाने का मौका मिला। लेकिन उसकी पूरी ऊर्जा सिर्फ और सिर्फ भारत विरोध में खर्च होती रही। उसने न सिर्फ समय-समय पर भारत से युद्ध लड़ने का जोखिम मोल लिया बल्कि अपने देश को उन सभी आतंकी संगठनों का घर बना दिया, जो भारत में दहशतगर्दी की घटनाओं को अंजाम देने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार थे। इसी एजेंडे के तहत भारत में मुंबई और कई अन्य बड़े शहरों में एक के बाद एक आतंकी वारदातें हुईं, जिनमें बड़ी संख्या में निर्दोष लोग मारे गए। पिछले दिनों भारतीय सेना के पाकिस्तान और पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर स्थित कई आतंकी संगठनों के ठिकानों पर ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हमले में ऐसे कई लोग मारे गए, जिनका आतंकी घटनाओं में हाथ था। उनके जनाजे में पाकिस्तान फौज और स्थानीय प्रशासन के कई आला अधिकारी पहुंचे, जिसकी तस्वीर दुनिया भर में वायरल हुई। उन तस्वीरों से पाकिस्तान की यह सच्चाई एक बार फिर उजागर हुई कि उसकी सरजमीं का इस्तेमाल भारत में आतंकी घटनाओं को अंजाम देने के लिए किया जाता है। लेकिन, आतंकवादियों को अपने यहां ठिकाना देकर पाकिस्तान को हासिल क्या हुआ? क्या भारत ऐसी घटनाओं से कमजोर हुआ या उससे पाकिस्तान की ताकत में इजाफा हुआ?
आखिर पाकिस्तान कब तक इस भ्रम में रहेगा कि वह भारत में आतंकी घटनाओं को अंजाम देने वालों को बढ़ावा देकर कुछ हासिल कर सकता है? ऑपरेशन सिंदूर के बाद उसे यह समझ आ जाना चाहिए कि ऐसे मंसूबे पाल कर वह भारत का नहीं, खुद का नुकसान कर रहा है। भारतीय सेना ने जिस तरह से पाकिस्तान स्थित आतंकियों के ठिकानों और वहां के एयर बेस पर हमले कर भारी नुकसान पहुंचाया, वह हुक्मरानों को समझाने के लिए काफी होना चाहिए। अगर उन्हें अपने मुल्क की अवाम के लिए अमन चाहिए तो उन्हें भी विकास का वही रास्ता अपनाना पड़ेगा जो भारत ने चुना। इसकी बदौलत भारत दुनिया की चार बड़ी आर्थिक शक्तियों में शामिल हो रहा है। भारत ने युद्ध के बजाय शिक्षा की महत्ता समझी। यहां की प्रतिभाओं की कदर दुनिया में होती है। पाकिस्तान के हुक्मरानों को सोचना चाहिए कि देश की बदहाली के लिए जिम्मेदार अपने पुराने एजेंडे को छोड़कर क्या उन्हें नई शुरुआत नहीं करनी चाहिए?
 
                                                 
                             
                                                 
                                                 
                                                 
			 
                     
                    