नेपाल की संविधान सभा द्वारा देश का नया संविधान पारित किए जाने के बाद से ही नेपाल के तराई इलाके में अशांति बढ़ गई है। लेकिन अब तक असंतोष के इन स्वरों को वही मधेसी राजनीतिक दल आवाज दे रहे हैं जिन्हें नेपाल की अखंडता में विश्वास है और उनकी मांग सिर्फ नए संविधान में कुछ ऐसे संशोधन करवाने की है जिससे मधेसियों की पहचान बनी रहे और शासन प्रशासन में उनकी भागीदारी आबादी के अनुपात में बढ़े। लेकिन इससे अलग गुपचुप तरीके से नेपाल और भारत के बीच एक अलग और स्वतंत्र मधेस राष्ट्र की मांग का तानाबाना भी तेजी से शुरू हो गया है। इस मांग को धार और ताकत देने के लिए अलग देश का मानचित्र, झंडा और राष्ट्रीय गान तक तैयार करके उसे इंटरनेट और सीडी पोस्टर के जरिये प्रचारित-प्रसारित किया जा रहा है। इस अलग मधेस देश की मांग के सूत्रधार हैं तराई क्षेत्र के नेपाली कंप्यूटर इंजीनियर डॉ.सी.के. राउत। नेपाल के मधेस इलाके के सपतड़ी जिले में जन्मे राउत कंप्यूटर वैज्ञानिक, लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय से पीएचडी करने के बाद राउत ने अमेरिका में नौकरी की। बाद में नौकरी छोडकर 2011 में वह नेपाल लौट आए। ब्लैक बुद्धाज के निदेशक रह चुके राउत ने डिनायल टु डिफेंस (आत्मकथा), ए हिस्ट्री ऑफ मधेस और मधेस स्वराज जैसी किताबें लिख चुके हैं। नेपाल से बाहर रहने वाले मधेसियों के संगठन नॉन रेजीडेन्टस मधेसी एसोससएशन के संस्थापक अध्यक्ष हैं। कैंब्रिज विश्वविद्यालय के अलावा नेपाल के त्रिभुवन विश्वविद्यालय, जापान के टोकियो विश्वविद्यालय में भी पढ़े राउत को यंग नेपाली इंजीनियर अवार्ड, कुलरत्न स्वर्ण पदक और ट्रॉफीमेकॉफ एकेडेमिक अचीवमेंट अवार्ड के साथ नेपाल के आखिरी महाराजा ज्ञानेंद्र के द्वारा महेंद्र विद्या भूषण सम्मान प्राप्त हो चुका है।
राउत इन दिनों भारत में हैं और अलग मधेसी राष्ट्र की अपनी मांग के पक्ष में समर्थन जुटाने के लिए अलग-अलग स्तर पर संपर्क अभियान में जुटे हैं। भारत के राजनीतिक दलों के नेताओं, विदेश और गृह मंत्रालय समेत भारत सरकार के अधिकारियों, नागरिक समाज, मानवाधिकार संगठनों, थिंक टैंक संस्थानों और पत्रकारों आदि से निरंतर संवाद करके राउत अपनी कार्ययोजना का ब्यौरा दे रहे हैं।
राउत का तर्क है कि पृथक मधेस भारत के सुरक्षा हितों के अनुकूल है। वह कहते हैं कि जब से नेपाल ने चीनियों को वीजा मुक्त प्रवेश देने की नीति शुरू की है, चीनी सैनिक खुलेआम भारत सीमा पर रक्सौल तक घूमते देखे जा सकते हैं। जिस तरह नेपाल सरकार चीन के प्रति नरमी दिखा रही है, उसके लिए भी नेपाल और भारत के बीच एक ऐसा देश जरूरी है जो अपनी सामाजिक प्रकृति से ही भारत के साथ मैत्रीपूर्ण हो। इससे नेपाल में सक्रिय भारत विरोधी तत्वों को भी सीमा से दूर रखने में मदद मिलेगी। वहीं भारत सरकार और खुफिया एजेंसियां यह पता लगाने में जुटी हैं कि राउत की इस मुहिम के पीछे कौन शक्तियां हैं और उनका उद्देश्य क्या है। विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि स्वतंत्र मधेस देश की मांग अगर जोर पकड़ती है तो भारत से लगे नेपाल के तराई क्षेत्र की अशांति भारत को भी प्रभावित कर सकती है।
(लेखक इन्स्टीट्यूट ऑफ पीस एंड कानफ्लिक्ट स्टडीज के सीनियर रिसर्च फैलो हैं और नेपाल के मधेस इलाके के रहने वाले हैं।)